किस तरह चुनावों में जीते हुए प्रत्याशियों को हराया,प्रेस वार्ता में बताया!
भारत के लोकतांत्रिक नेताओं का ज़मीर कब जागेगा? जागेगा भी या नहीं?
पाकिस्तान के अधिकारियों का ज़मीर मरा हुआ है यह बात तो मानी जा सकती है मगर वहाँ के किसी अधिकारी का मरा हुआ ज़मीर फिर से ज़िन्दा हो जाना भारत जैसे मुल्क़ के लिए एक ख़बर है। सबसे पहले तो बता दूँ कि रावलपिंडी के कमिश्नर लियाक़त अली चट्टा ने चुनावों में जो धांधली की और करवाई उसके बाद उनका ज़मीर अचानक जाग उठा। उन्होंने आत्म हत्या की कोशिश की मगर फिर उनका ज़मीर बहादुर हो गया और उन्होंने प्रेस वार्ता कर सार्वजनिक रूप से बताया कि किस तरह से उन्होंने जीतने वाले नेताओं को ग़लत मतगणना कर हारा घोषित करवाया।
पाकिस्तान में रावलपिंडी के कमिश्नर लियाकत अली चट्टा ने आम चुनाव में धांधली के आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि इस धांधली में मुख्य चुनाव आयुक्त और मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं। उनके आरोपों पर आयोग ने कहा है कि वह इनकी जल्द जांच कराएगा। उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
रावलपिंडी क्रिकेट स्टेडियम में मीडिया से बात करते हुए कमिश्रर ने कहा, “मैं शांति से मरना चाहता हूं, मैं उस तरह की जिंदगी नहीं जीना चाहता जो मेरे साथ हो रहा है. इस डिवीजन के 13 एमएनए जिन्हें 70-70 हजार वोट मिले थे, वे हार गए थे, उन्हें नकली मुहरें लगाकर हराया गया।
उन्होंने कहा, “यह (सब) मुझे पसंद नहीं आया, इसलिए मैंने अपने पद से, अपनी नौकरी से, हर चीज़ से इस्तीफा दे दिया है.”कमिश्नर ने कहा, “मैंने जो किया है वह बहुत बड़ा अपराध है। मैं खुद को पुलिस के हवाले कर दूंगा। मुझे उसकी कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
दोस्तों! मेरे फेस बुक अकाउंट पर आप लियाक़त जी की लियाक़त का वीडियो देख सकते हैं।
दोस्तो! यह तय है कि आप लोग सोच रहे होंगे कि मुझे पाकिस्तान की इस ख़बर से क्या लेना देना। अनावश्यक रूप से मैं आपका समय भी क्यों बर्बाद कर रहा हूँ। तो आपको बता दूं कि ज़मीर हिंदुस्तान या पाकिस्तान या किसी भी मुल्क़ की सीमाओं में महदूद नहीं होता। ज़मीर का कोई मज़हब या वर्ग नहीं होता।दुनिया भर का ज़मीर एक तरह का होता है। मरता भी एक तरह से है जीवित भी एक ही तरह से होता है।
आज पाकिस्तान के किसी अधिकारी का जागा है , कल भारत के भी किसी महान व्यक्ति का जाग सकता है। भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का जिस तरह अवमूल्यन हो रहा है। आज़ादी का जिस तरह मज़ाक उड़ाया जा रहा है। सियासती काम क्रीड़ाएं जिस स्तर पर निर्वस्त्र हो रही हैं। संविधान पर जिस तरह घेर कर हमले हो रहे हैं, उसके मद्देनज़र भारत के लोगों का ज़मीर भी कभी जागने की उम्मीद की जा सकती है।
बस इंतज़ार करना है कि हमारे प्रजातांत्रिक राजा महाराजाओं का ज़मीर कब जागता है❓जागता भी है या नहीं❓
सुरेंद्र चतुर्वेदी
सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सियत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |
चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |
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