पहली : कांग्रेस का अन्य राष्ट्रीय पार्टियों से ताल मेल!
दूसरी:-सचिन -गहलोत सुलहनामा!
फार्मूर्ला क्या? पढ़ें आज का ब्लॉग!
कांग्रेस के भाग्य विधाता राहुल गांधी आज भारत पधार रहे हैं। विदेश में लंबी पारी खेल कर। यहाँ उनकी बेताबी से प्रतीक्षा की जा रही है। विपक्षी दलों के आपसी सामंजस्य और गठबंधन के लिए! सचिन की लंबी प्रतीक्षा को प्रतिफल में बदलने के लिए।
आज अपने ब्लॉग में मेरा ध्यान सचिन और गहलोत के सुलहनामे पर केंद्रित है! विगत 11 जून को सचिन ने यह तो तय कर ही दिया है कि वह नई पार्टी बनाने का जोखिम तो नहीं उठाएंगे! अन्य पार्टी में शामिल भी नहीं होंगे! यह सच पूछो तो उन्होंने बहुत ही दूरदर्शिता का निर्णय लिया है। अलग पार्टी बनाते या किसी पार्टी को जॉइन करते तो उनका हर मोड़ पर नुकसान होना तयशुदा था। उन्होंने अपने सब्र का इम्तिहान देना बेहतर समझा ! यह अच्छा हुआ! इसके परिणाम सुखद ही होंगे।
सचिन से इस मुद्दे को लेकर बात हुई। वह अब समझदार हो गए हैं!जल्दबाजी और बदहवासी उनके व्यवहार से पीछा छुड़ा चुकी है। बेबाक बयानी और बड़बोलापन भी कम हुआ है। सीरियस पॉलिटिशियन जैसा अंदाज। उनके सोच में शामिल हो गया है। इसी बात का इंतजार मुझे मुद्दत से था। मेरे ब्लॉग्स में उनकी इन्ही कमियों को लेकर छटपटाहट थी।
बातचीत में उन्होंने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी तीनों मांगों पर कायम रहेंगे। हर स्तर पर वह मांग उठाएंगे मगर इन मांगों से पार्टी को नुकसान होने से बचाएंगे।
उनकी पार्टी के महामंत्री वेणुगोपाल से सार्थक और दो टूक चर्चा हो चुकी है। चुनावों में वह गहलोत को साथ में लेकर तालमेल बैठाएंगे। उनको यकीन है कि उनके साथ गहलोत का व्यवहार सकारात्मक होगा। वह अपना मन साफ कर चुके हैं और ऐसी ही उम्मीद गहलोत साहब से भी करते हैं।
वेणुगोपाल ने उनको आश्वासन दिया है कि राहुल गांधी आने के बाद सुनिश्चित फार्मूला सामने रख कर चुनावों में जीतने का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा।
दोस्तो! सचिन पायलट अब नादान नहीं रहे यह तो तय हो गया है मगर गहलोत के मन को कोई कथावाचक नहीं पढ़ सकता। उनका सोच आसमानी है। वह स्वीमिंगपूल के नहीं समन्दर के तैराक हैं। पानी के अंदर साँसें रोक कर तैरना उन्होंने पता नहीं किस तैराक से सीखा है। ये तो गनीमत है कि सचिन जैसे नाइट वाचमैन अब तक क्रीज पर बैटिंग कर रहे हैं वरना इतनी हिम्मत के साथ उनकी बम्पर बोलिंग का सामना अच्छा भला खिलाड़ी नहीं कर सकता। उन्होंने अच्छी तरह से हाईकमान की सारी चालों का पूवार्नुमान लगा लिया है। उनको पता है कि राहुल कितनी दूर ले जाकर उनको गहराई में खड़ा करेंगे। इसलिए उन्होंने अपनी कुर्सी और अपने लोगों के वजूद को सुरक्षित करने के सारे इंतजाम कर लिए हैं।
आज मैं राहुल, खड़गे और वेणुगोपाल के तैयार किये गए सुलहनामे पर बात करना चाहूँगा। खुल कर आपसे राय भी जानना चाहूँगा।
यह साफ है कि मुख्यमंत्री पद से गहलोत नहीं हटेंगे! चुनावों में अगले मुख्यमंत्री होने के लिए अपना चेहरा सामने रखने की जिद भी उनकी बनी रहेगी। अपने सभी कट्टर समर्थकों को टिकट दिए जाने के लिए भी वह अड़ियल रूख इख्तियार करेंगे। जब इतना सब कुछ वह हाईकमान के सामने परोस देंगे तो सुलह का फामूर्ला कैसे बनेगा।
सचिन पायलट क्या इतने पीछे आकर बैटिंग करेंगे
क्या वह सब कुछ गहलोत के इशारों पर खेलने को मजबूर हो जाएंगे
मित्रों! बहुत हो लिया अब ऐसा नहीं होगा। कोई बदलाव पदों को लेकर नहीं आएगा। न अध्यक्ष पद से गोविंद डोटासरा हटेंगे न कोई और पद सृजित होगा।
इस बार सचिन और गहलोत से टिकिटों की सूची मांगी जाएगी। किस नेता को कहां से चुनाव लड़वाना चाहते हो दोनों नेता बता दो!सचिन अपने चहेतों की सूची थमाएँगे गहलोत अपने । दोनों सूचियों पर हाईमान अंत समय पर फैसला करेगा। फैसले पर पुनर्विचार तो होगा मगर फैसला हाईकमान यानि राहुल गांधी और खड़गे का ही मान्य होगा। सिंबल सिर्फ़ खड़गे देंगे।
सिंबल देने के लिए चुनावों में आखरी समय ही इस्तेमाल होगा ताकि कोई जिÞयादा तीन पांच न करे।सचिन और गहलोत को टिकट दिए जाने वाले लोगों की योग्यताओं का फरमान पहले से ही थमा दिया जाएगा। इस फरमान में सारी शर्तें और योग्यताओं का ब्यौरा होगा।शर्तों में नए चेहरों के लिए विशेष जगह होगी। विवादस्पद और बूढ़े चेहरों को सन्यास धारण करने की सलाह दी जाएगी। कुछ चेहरों को चुनाव के बाद महत्वपूर्ण पद दिए जाने का लॉलीपॉप चुसाया जाएगा। ज्यादा लपक झपक करने वाले नेताओं को हाईकमान कर्नाटकी अंदाज से निबटेगा।
ऐसे लोगों की भी फेहरिस्त बना ली गयी है जो टिकिट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसे लोगों को रोकने और समझाने की कोशिश की जाएगी मगर जिÞद्दी नेताओं को मझधार में छोड़ने की रणनीति भी बना ली गई है।
सचिन पायलट ने कल दिल्ली में महामंत्री वेणुगोपाल से अपने दिल की सारी बात और आने वाली आशंकाओं पर चर्चा कर ली है। आज वेणुगोपाल राजस्थान में एक विवाह समारोह के बहाने आ रहे हैं। सिर्फ विवाह में आना ही उनका मकसद हो यह राजनीति में होता नहीं। आएंगे तो आस पास की मिट्टी साफ करवा कर भी जाएंगे।
राहुल गांधी विदेश से लौटते ही सबसे पहले राष्ट्रीय पार्टियों से तारतम्य बैठा कर अगले चुनाव की रणनीति को अंतिम रूप देंगे फिर सचिन-गहलोत विवाद सुलझाएंगे।
सचिन को यकीन है कि उनके साथ हाईकमान इस बार तहे दिल से साथ होगा। किसी भी समझौते में वह अपने समर्थकों के हित सुरक्षित रखेंगे। खास तौर से टिकिट दिए जाने के मामले में।
देखना यह होगा कि अशोक गहलोत किस तरह अपने लोगों के हित सुरक्षित रख पाते हैं। लगभग 40 सीट्स ऐसी होंगी जहां सचिन और गहलोत के बीच की रोटी को दिल्ली के बंदर बांटेंगे।