मामले दो! नतीजा एक
क्या बाबा जी ! हो गए हैं दोनों मामलों में निस्तेज?
मामले झूंठे हैं या सच्चे यह तो जांच ही बता सकती है मगर जांच जब इंच भर भी आगे न बढ़े तो आप क्या कहेंगे।
मैं यहां अजमेर के उन दो मामलों की बात करूंगा, जो पिछले दिनों खबरों के केंद्र में रहे। दोनों ही मामलों को दर्ज करवाने में राजनीतिक दवाब की बात कही गई। दोनों ही मामलों में कांग्रेस के एक नेता पर अलग अलग अंदाज में आरोप लगाए गए।
जी हाँ! आप ठीक ही समझे हैं। दो उच्च अधिकारियों क्रमश: गिरिधर और सुशील विश्नोई पर लगाई गई आपराधिक धाराएं! गेगल थाने में दर्ज मुकदमा! और पूर्व मंत्री और वर्तमान प्रदेश उपाध्यक्ष नसीम अख़्तर के खिलाफ सिविल लाइन्स थाने में दर्ज मुकदमा! ये दोनों मुकदमे जाहिराना तौर पर अलग अलग धाराओं और लोगों के विरुद्ध माने जा सकते हैं मगर दोनों पर अभी तक कोई कार्यवाही नही होने का मामला एक जैसा है। दोनों मामले गैर मामूली लोगों पर मामूली अंदाज में लगाये गए हैं। मजेदार बात यह है कि जिन्होंने दोनों मुकदमे दर्ज़ कराने में गायबाना भूमिका निभाई वह कछुए की तरह अपने खोल में मुंह छिपाए बैठे है।
पुलिस अधिकारी आई पी एस सुशील विश्नोई और भारतीय प्रशाशनिक सेवा के अधिकारी निलंबित होने के बाद पूरी तरह से खामोश हैं। जांच क्यों कि उनके अधीनस्थ अधिकारी को तर्कसंगत नहीं होने के बावजूद दी गई है, अत: उनसे जाँच आगे बढ़ाने की उम्मीद नहीं की जा सकती। छोटा अधिकारी बड़े अधिकारी की खटिया कैसे खड़ी कर सकता है।
यही वजह है मकराना राज ढ़ाबे के मालिक महेंद्र सिंह दर्ज मुकदमे में कार्यवाही किये जाने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे। जिस कांग्रेसी नेता ने नेतागिरी के जोम में राजपूती तेवर दिखा दिया था वह भी कार्यवाही किए जाने के लिए कुछ दवाब नहीं डाल रहे। जैसे उनकी तमन्ना सिर्फ प्रभावशाली राजपूतों को अपना जलवा दिखाने भर की थी, जो उन्होंने अधिकारियों को निलंबित करके दिखा दिया। इससे आगे न तो वह कुछ कर सकते हैं न करना ही चाहते हैं। मकराना राज ढ़ाबे के जिन कर्मचारियों ने वर्दी धारी और सफेदपोश अधिकारियों पर मार पीट के आरोप लगाए थे वह भी ठुक पिट कर अपनी राधा को भज रहे हैं। अपने अपने गांव जाकर हाथियों के पैरों से घास की तरह कुचलना नहीं चाहते।
ढ़ाबे के मालिक को भी ढ़ाबे को आगे चलाना है। वह भी तालाब में रह कर मगरमच्छ से बैर नहीं रखना चाहते। उन्होंने जो गर्मा गर्मी में कर लिया उसके लिए ही उनको घबराहट हो रही होगी।
इधर निलंबित अधिकारियों ने घटना को झुठला दिया है। खाना खाने गए थे। कर्मचारियों ने दुर्व्यवहार किया। मारपीट की। यानि “मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो!”
उधर दूसरे मामले की भी कमोबेश यही स्थिति है। मुकदमा दर्ज़ जरूर हो गया है मगर जांच अधिकारी यहाँ भी टस से मस्स नहीं हुए हैं। अब तक मामला जहाँ का तहां पड़ा है। जिस बी डी ओ के काँधे पर मशीनगन रख कर कुछ नादान नेताओं ने एक शातिर नेता के कहने पर मुकदमा दर्ज करवा दिया था वे भली भांति समझ गए हैं कि अपाहिज मामला ज्यादा दूर तक नहीं ले जाया जा सकता। झूठ के पाँव नहीं होते।
कहने को राठौड़ बाबा के इशारे पर डॉ श्री गोपाल बाहेती, रामचन्द्र चौधरी, राजकुमार जयपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नसीम अख़्तर और उनके पति पर अश्रु गैस के गोले तो दाग दिए मगर उनके खुद की आंखों से आँसू निकलते नजर आ रहे है।
कल बड़ी संख्या में कांग्रेसी महिलाओं ने कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया। राज्य के अन्य हिस्सों में भी। प्रदर्शन हो रहे हैं। मुस्लिम समाज के लोग नसीम के समर्थन में सामने आ रहे हैं। “लड़की है तो लड़ेगी” के नारे उछल रहे हैं। मित्रों! मामला लड़की का नहीं बल्कि उससे दो कदम आगे एक “औरत”का है। बाबा जी इस औरत को कमतर ले रहे हैं। बाबा जी की करतूतों को हाई कमान तक पहुंचा दिया गया है। मुख्यमंत्री गहलोत दोनों ही मामलों में बाबा जी का कहना तो मान गए मगर अब सोच रहे हैं कि ये पंगे कांग्रेस को हर हर गंगे! पूरे नँगे करके मानेंगे।
नसीम अख्तर के खिलाफ हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ बाहेती ने कहा उनके साथ नसीम अख्तर ने धक्का मुक्की करी। दुर्व्यवहार किया। इस बात को सिर्फ़ वह कह सकते हैं। सिद्ध नहीं कर सकते। कोई गवाह ऐसा नहीं जो कहे कि नसीम या उनके पति ने किसी के साथ मारपीट की! सच्चाई तो यह है कि जिस समय सभाकक्ष से बाहर लड़की (औरत) लड़ रही थी! उसके पति अधिकारियों की यह कह कर फीत उतार रहे थे कि आप लोग मंहगाई राहत शिविर में पब्लिक को राहत पहुंचाने क्यों नहीं पहुंचे। यहां नरेगा के श्रमिकों को लेकर सरकारी कोष का धुआं क्यों निकाल रहे हो जब गुस्से में दोनों पति पत्नी शरीर से बाहर आ रहे थे! तब अंदर डॉ बाहेती बुरी तरह से डरे हुए थे! वह एक नेता जी के वाहन में पीछे के रास्ते से सभा विसर्जन कर भाग छूटे थे! ऐसा मैं नही लोग कह रहे हैं। खुद नसीम और इंसाफ कह रहे हैं।
चलिए सब तर्क वितर्क छोड़िए! कोई यह बता दे कि क्या दोनों ही मामले में कोई मेरे जैसा आम आदमी होता तो पुलिस क्या करती।
दोस्तों! आम आदमी तो पुलिस के लिए लंगड़ा आम होता है जिसे मजे ले लेकर निचोड़ा और चूंसा जाता है। मकराना राज की गुंडागर्दी की यदि यही धाराएँ किसी आम आदमी के विरुध्द लगी होतीं! यदि अधिकारियों ने ये धाराएं ढ़ाबे के मालिक या श्रमिकों के विरुद्ध लगाई होतीं तो अब तक केंद्रीय कारागार में, दिल के अरमाँ आंसुओं में बह रहे होते।
नसीम अख़्तर तो खुद चाहती हैं कि उनको पुलिस गिरफ़्तार करे मगर कोई करने नहीं आ रहा। उन्होंने न तो अग्रिम जमानत करवाई है न वे फरारी काट रही हैं।
सच तो यह है कि समरथ को नहीं दोष गोंसाईं! कानून के हाथ कितने भी लंबे हों ताकतवरों तक नहीं पहुंचते। यही बात सिद्ध हो रही है अजमेर में। यही बात सिद्ध हो रही है दिल्ली में, जहां महिला पहलवान अपने साथ हुई शारीरिक छेड़ छाड़ के दर्ज मामलों में इंसाफ मांग रही हैं।