बहुत दिनों से लिखा नहीं था क्योंकि… बड़ी तसल्ली से बैठा शहर में हो रही नौटंकी देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर चल क्या रहा है?
मधुकर कहिन
पिछले दिनों शहर में सबसे बड़ी घटना थी गुरु और चेले की लड़ाई। गुरु डॉ. गोपाल बाहेती और उनके प्राचीनतम शिष्य इंसाफ अली की लड़ाई। हाजी इंसाफ अली और डॉ. बाहेती के बीच मैंने वह दिन भी देखा है, जब इंसाफ अली डॉ. बाहेती के साथ पुष्कर की गली गली नाप चुके थे। एक रोज प्रचार के दौरान डॉ. बाहेती के काफिले के साथ गाड़ी भगाते भागते उनकी गाड़ी एक गड्ढे में उतर गई। मुझे अच्छी तरह याद है कि तब इंसाफ अली गुरु बाहेती के लिए जान पर खेलने तक को हाजिर रहते थे। गुरु के साथ घूमते घूमते इंसाफ अली ने पुष्कर में अपना पर्सनल जनाधार तैयार किया। क्यूँ भाई? क्यूँकि डॉ बाहेती का सपना सदा से अजमेर उत्तर से चुनाव लड़ कर विधायक बनने का था। तो संभव है यही सोच कर इंसाफ अली ने पुष्कर में अपनी जमीन तैयार कर ली की बॉस तो अब उत्तर से विधायक बनेंगे, और ऐसा हुआ भी।
डॉ. बाहेती के सपनों का विमान दो बार सिंधी समाज के एकमुश्त वोट करने के चलते अपनी उड़ान पूरी नहीं कर पाया और क्रैश हो गया। वही उनके शिष्य इंसाफ अली की धर्मपत्नी नसीम अख्तर इंसाफ ने न केवल जीत हासिल की बल्कि उस समय कांग्रेस सरकार में मंत्री के पद पर भी रह ली। जिसकी पीड़ा शायद डॉक्टर बाहेती के मन में आज तक भी होगी। परंतु उन्हें अपने पुराने चेले मधुकर की तरह यह समझना चाहिए कि – राजनीति सिर्फ परफॉर्मेंस नहीं भाग्य का भी खेल है। खैर ….फिर मैं तो लगभग हर ब्लॉग में यही लिखता आया हूँ कि – पालिटिक्स बड़ी कुत्ती चीज है। जहां भाई भाई का नहीं रहता, बाप बेटे का नहीं रहता, तो गुरु – डॉ बाहेती और शिष्य इंसाफ अली कैसे सदा एक दूसरे के रहने वाले हैं।
अजमेर में नई कॉंग्रेस ५/२ पुरानी कॉंग्रेस
डॉ बाहेती के नेतृत्व वाली अजमेर शहर की पुरानी कांग्रेस की वैसे भी शुरू से ही यह समस्या रही है कि – वह अपने साथ चलने वालों की प्रतिभा को पहचान कर सही समय पर उस प्रतिभा का सही इस्तेमाल करना नहीं जानते। और उनकी बत्ती तब जलती है जब उनके साथ चलने वाला साथी उनसे दुश्मनी की हदों तक रुष्ट होकर सामने उठ कर खड़ा हो जाता है। वर्ना…. तब तक तो यह बहुत ही मंझे हुए खिलाड़ियों की तरह अपने साथ चलने वालों के सब्र का इंतिहान लेते रहते हैं। और देखते रहते हैं कि कोई आखिर किस हद तक ज्यादती बर्दाश्त कर सकता है। लेकिन ऐसी अव्यावहारिक गलतियां राजनीति में अक्सर महंगी पड़ती है क्योंकि … योग्यता किसी के सर्टिफिकेट की मोहताज नहीं होती। जो योग्य व्यक्ति होगा वह अपनी जगह खुद बनाएगा। यदि कोई भी नेता या समूह अपनी ताकत के बल पर सैकड़ों योग्य व्यक्तियों को दबा कर किनारे लगाने की कोशिश करेगा तो वह खुद एक दिन अकेला पड़ जाएगा।* कुछ ऐसा ही हुआ है अजमेर की पुरानी कांग्रेस के साथ।
अजमेर में पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस में यही एक फर्क है। जिसको समझना बहुत जरूरी है। सच तो यह है कि अगर पुरानी कांग्रेस सही वक्त पर सही लोगों को सही जगह पर बिठा देती तो आज पायलट समर्थित विद्रोही और निरंकुश नई कांग्रेस कभी खड़ी ही न हो पाती। विजय जैन हो यहां प्रताप यादव, हेमंत भाटी हो या महेंद्र सिंह रलावता, मैं तो कहूँगा की अजमेर में पूरे के पूरे पायलट ग्रुप का जन्म अजमेर शहर की पुरानी गहलोत समर्थित कॉंग्रेस के नेताओं की मनमानी और लोगों के तिरस्कार की वजह से ही हुआ है।
काँटों के तार पर चल रहे है धर्मेद्र राठौड़
पायलट समर्थक राठौड़ के साथ सार्वजनिक दुर्व्यवहार करवाने की फिराक में
आरटीडीसी अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह राठौड़ के अजमेर आने से लगता है कि कुछ दशा और दिशा में बदलाव जरूर आएगा। अब चाहे आगामी चुनाव में अजमेर से उनके चुनाव लड़ने की इच्छा के चलते ही सही… लेकिन लगता है कि आने वाले समय में धर्मेंद्र राठौड़ अजमेर की मरी हुई कांग्रेस के लिए एक वरदान साबित होने जा रहे हैं।
जिस तरह से राठौड़ का व्यवहार है, वह देखकर लगता है कि उन्हें सबको साथ लेकर चलने का हुनर बखूबी आता है। जिस संवेदनशीलता से राठौड़ इस वक्त लोगों के संपर्क में आ रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि वह पुरानी और नई कांग्रेस में तालमेल बिठाने में सफल हो जाएंगे। यदी वह इन दिनों अपने साथ घूम रही पुरानी कॉंग्रेस द्वारा दी जा रही सभी सलाहों को बस सुन लें और उन्हें अपनी ताकत जमीनी स्तर पर लगाते रहने हेतु प्रेरित करते रहे।
साथ ही नई कॉंग्रेस से जुड़े क्रांतिकारियों का भी मन बहलाने का प्रयास करें ताकि सबकी शक्तियों का लाभ मिल सके। और सबसे जरूरी… जब फैसला करें तो केवल अपने विवेक और अनुभव की आवाज सुनकर ही करें।
ये सफर नंगे पैर कांटों के तार पर चलने जैसा होगा। लेकिन यदि अजमेर की मृत कांग्रेस को जीवित करना है तो किसी न किसी को तो ये करना ही होगा। अजमेर के लोकल नेताओं ने स्वार्थ से लिपटकर नहीं किया लेकिन अब राठौड़ ही सही। आखिर किसी न किसी सच्चे कांग्रेसी के खून की आहुति तो लगेगी ही न भाई, और राजपूत समाज के तो इतिहास में ही अपनों के लिए खून की आहुति देकर दुनियाँ को जीवित रखने की परंपरा सदा से रही है। सो इस बार नियती ने धर्मेंद्र सिंह राठौड़ को ये मौका अजमेर में दिया है।
लेकिन कॉंग्रेस के अंदर खाने से जो आहटें सुनाई दे रही हैं वो बहुत सुहानी नहीं लगती। हाजी इंसाफ अली और बाहेती प्रकरण के चलते नाराज पायलट प्रेमियों द्वारा प्रायोजित मुस्लिम समुदाय की नाराजगी को आड़ बना कर कभी भी कोई भी अप्रिय घटना अजमेर में घटित होने की संभावना प्रबल लग रही है। अगर अजमेर के कांग्रेसी अपनी ऐसी पौराणिक आदतों से बाज न आए और राठौड़ के साथ ही कोई हरकत कर बैठे? तो फिर भैया! अजमेर की कांग्रेस लाइलाज घोषित हो जाएगी जिसका खामियाजा कॉंग्रेस के छोटे बड़े सब भुगतने को तैयार रहें।