अजमेर को बर्बाद करने वाले ही कर रहे हैं बर्बादी का निरीक्षण! दोषी सुना रहे हैं फैसले!
वाह रे चक्रवात! वाह रे चक्रवर्ती सम्राटों!
धरा रह गया स्मार्ट सिटी! सारी स्मार्टनैस! दो दिनों में ही हो गई फुस्स। केन्द्र सरकार के अरबों रुपये नालियों में बह गए। पैसा वही काम मे आया जो अधिकारियों और राजनेताओं की जेब में गया। अजमेर और पुष्कर में विकास की गंगा बहाने के दावे करने वाले खुद विनाशकारी रौद्र रूप के सामने रिरियाते नजर आए।
आनासागर का गुस्सा देखने लायक है। उसकी हदों को मिट्टी डाल कर जब कृत्रिम जमीन बनाई जा रही थी तब आनासागर रो रहा था। भूमाफिया खिल्ली उड़ा रहे थे। स्थानीय जनप्रतिनिधि आंखों पर पट्टी बांध कर धृतराष्ट्र बने हुए थे। कमाल की बात तो यह थी कि कल नेहरू अस्पताल में पानी भर जाने पर अखबार बाजी करने वाले सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक वासुदेव देवनानी और उनकी टीम के फुकरे। सरकार को कोस रहे थे। ये सारे तीरंदाज तब कहाँ थे जब आनासागर की सीमाओं को कम किया जा रहा था। उसकी भराव क्षमता को 16 फीट से 13 फीट कर दिया गया था।
कैचमेंट क्षेत्र में मिट्टी डाल कर सातवें आश्चर्य की नींव डाली जा रही थी। बीचों बीच मिट्टी भर कर पाथ वे बनाया जा रहा था। तब तो देवनानी जी पाथ वे के निर्माण पर पोस्टर छपा रहे थे। अपनी पीठ थपथपा रहे थे। सांसद चौधरी को मैंने हजार बार कहा कि आनासागर को बर्बाद होने से रोको। देवनानी जी और उनके शार्गिद आनासागर को बर्बाद होते देखते रहे। किसी ने कुछ नहीं किया। करते भी क्या जिसकी पूंछ उठाओ वही मादा साबित हो रहा था। बेचारे धर्मेश जैन ने आवाज उठाई तो उनकी महावीर कॉलोनी को ही लपेटे में लिया गया।
….और तो और देश के पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव जो अजमेर की जमीन के ऋणी हैं, ने भी दावे तो बड़े ऊंचे ऊंचे किये मगर कर धेले भर नहीं पाए। दावों का कचूमर ही निकल गया।
मित्रों आनासागर के बीचों बीच आर्टिफिशियल जमीन पर बना टापू यदि नहीं होता तो मेरा दावा है कि आनासागर की चादर चलाने की नौबत नहीं आती। जनता के श्रमदान से उस समय यह कह कर मिट्टी इकट्ठी की गई थी कि आने वाले समय में उसे धीरे धीरे बाहर कर दिया जाएगा मगर इस पर टापू बनाकर संस्था विशेष को सौंप दिया गया। आश्चर्यजनक रूप से उस पर भू माफिया का कब्जा करवा दिया गया। व्यावसायिक गतिविधियाँ संचालित की जाने लगी। सब राजनेताओं और बाहुबलियों के बीच हुए समझौते का परिणाम था।
दोस्तों झील को प्रदूषित करने में मुख्य योगदान ही कृत्रिम टापू पर संचालित व्यावसायिक गतिविधियों का है। पर प्रशासन बाहुबलियों और राजनेताओं के दबाव में आँखे मूंदे बैठा है।
हाईकोर्ट द्वारा गठित हाई पावर कमेटी जिसके अध्यक्ष डॉ समित शर्मा थे उन्होंने सख़्ती दिखाई। कुछ अवैध निर्माणों पर लाल रंग के क्रोस भी लगाए गए। आनासागर की जद में हुए कुछ अवैध व्यावसायिक निर्माण सीज भी किये गए। (जो अब ना जाने कैसे सीज मुक्त होकर सुचारु रूप से संचालित हो रहे हैं) मगर समित शर्मा की कार्यवाही को भी आनासागर की जलकुंभियों के बीच डुबो दिया गया। समित शर्मा जैसे ईमानदार और निर्भीक अधिकारी के पर कतरवा दिए गए। राजऋषि को इस गंदगी का हिस्सा बना दिया गया।
खैर आनासागर अब खुद इस नपुंसक शहर से बदला ले रहा है। आगे भी देखिए क्या होता है?
कल शहर के सारे नेता बरसाती मेंढकों की तरह जिÞन्दा हो गए। जैसे इस शहर को उनके बयानों से बचा लिया जाएगा। जैसे वे पूरी तरह से निर्दोष हों।
भाजपाई नेताओं ने कांग्रेस सरकार को शहर की बर्बादी के लिए दोषी बताकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मर ली। तो कांग्रेस के नेता अपनी दयालुता को लेकर कृपायें बांटने के लिए छतरी। लगा कर, सड़कों पर उतर आए। और तो और राठौड़ बाबा का उत्साह तो देखने ही लायक रहा। बाकायदा उनके अजमेर पधारने की पूर्व सूचना प्रकाशित हुई। अखबार वालों ने भी उनके आगमन की खबरें यूँ छापीं जैसे बिपरजाय चक्रवात को निपटाने के लिए कोई चक्रवती सम्राट आ रहे हों।
राठौड़ बाबा आए तो गिरे हुए मकान वालों की सुधी लेने जा पहुंचे। हर पीड़ित के पास इस तरह दयालू हुए जैसे मुख्यमंत्री बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र का दौरा कर रहे हों। जिÞला प्रशासन भी इसी तरह साथ रखा जैसे गहलोत खुद बाबा जी के भेष में दौरा करने आये हों। मेरी स्मृति में आज तक आर टी डी सी का कोई चेयरमैन इतना पावरफुल नहीं रहा जो अपने अधिकार क्षेत्र से इतना बाहर जाकर व्यवहार करें। जनता के दुख दर्द कितने दूर होंगे यह तो वक्त बताएगा मगर राठौड़ बाबा ने आश्वासन बांटने में कोई कमी नहीं रखी।
आज अजमेर चक्रवात के चक्कर में पूरी तरह से तहस नहस हो चुका है। जनजीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो चुका है। सड़कें बनवाने का श्रेय लेने के लिए आए रोज नेताओं के बीच बयान युध्द होते थे। ये सड़क मैंने बनवाई। ये पाईप लाईन मैंने डलवाईं। जरा अब कोई नेता आगे आकर कहे कि उनकी बनाई सड़कों में कितनी घटिया सामग्री लगाई गई और उसका पैसा किसकी जेब में गया?
दोस्तों यही हाल पुष्कर का है। यहाँ भी राजनेताओं का भ्रष्टाचार सड़कों पर ओवर फ्लो हो रहा है। नागनाथ और साँपनाथ के बीच नेवले रेफरी बने हुए हैं। जनप्रतिनिधियों ने यहाँ आजादी के बाद से अब तक कुछ किया होता तो कम से पानी की आवक और निकासी के सिस्टम बन गए होते। बाहर से मौज मस्ती करने आने वाले बाबा जी अब जो इतनी ऊंची ऊची हांक रहे हैं खामोश होकर बैठे होते।
दोस्तो अंत मे इतना ही कहूँगा कि “आह भी भरने लगे हैं भेड़िए। वाह भी करने लगे हैं भेड़िए।”