एफबीआई के गायब नोटों पर बैंक की सफाई, कौन सच है और कौन झूठ यह एक उलझी पहेली
अशोक शर्मा, पत्रकार, अजमेर
भारतीय रिजर्व बैंक के 88 हजार करोड रुपये गायब हो गए, वह भी सरकारी टकसाल से छप कर रिजर्व बैंक तक पहुंचने के बीच के मार्ग से। है ना घोर आश्चर्य की बात। इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात यह कि पहले आरबीआई प्रवक्ता ने इस विषय पर कोई भी टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया था लेकिन बाद में बैंक ने आधिकारिक रूप से जानकारी दे दी कि आरटीआई डालने वाले से यह कैलकूलेशन में गलती थी और कुछ नही। यह जो खबर उडी है यह सही नहीं है। जानकारी जुटाने वाले शख्स से यह गलती अलग-अलग प्रेस से जानकारी जुटाने की वजह से हुई है।
याचिका कर्ता ने नई सीरीज के आंकड़ों को ही लिया है,बस इस वजह से यह गलती हुई। फ्री प्रेस जनरल ने इसे विश्व की सबसे बड़ी डकैती कहा था। सरकारी टकसाल ने 500 के नये नोट के 8,810 .65 करोड पीस छापे थे, लेकिन आरबीआई को सिर्फ 7,260 करोड नोट ही मिले, अर्थात पांच सौ के 155 करोड से ज्यादा नोट ट्रांजिट में गायब। फ्री प्रेस जर्नल ने इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बडा नुकसान बताया सरकारी टकसाल और आरबीआई के बीच रास्ते इतनी बड़ी रकम कैसे गायब हुई, इस विषय पर पहले सब चुप थे। सन 2015 से 2016 के बीच नासिक मिंट द्वारा 21 करोड पीस जोडे गए थे, लेकिन इसके साथ ही 500 के 1,76. 65 करोड नोट रहस्मय तरीके से गायब हो गए। गायब हुए नोटों की कीमत 8,810.65 करोड रुपये है।
1999-2010 के बीच रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया में 339.95 मिलियन अधिक नोट जमा किये जाने का मामला प्रकाश में आया था, तब जितने नोट जमा किये गये, उनकी संख्या प्रिंटिंग प्रेसों द्वारा प्रिंट किये गये नोटों से काफी अधिक थी, लेकिन इस बार मामला बिल्कुल उलट था। इस बार प्रिंटिंग प्रेस ने पांच सौ के नये डिजाइन के 8,810.65 मिलियन नोट जारी किये, मगर आरबीआई तक 7,260 मिलियन नोट ही पहुंचे। फ्री प्रेस जर्नल में प्रकाशित हुई रिपोर्ट के मुताबिक इस बारे मे किसी को कोई जानकारी नहीं। यह कैसे संभव है? फ्री प्रेस ने जानकारी चाही, लेकिन आरबीआई के प्रवक्ता ने गायब नोटों के बारे मे कुछ भी कहने से साफ मना कर दिया।
भारत में नोट छापने की तीन सरकारी प्रिंटिंग प्रेस हैंं, पहली रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया पी लिमिटेड बैंगलुरू, करेंसी नोट प्रेस नासिक तथा देवास। नोट यहीं प्रिंट किये जाते हैं। इसके बाद आगे डिस्ट्रीब्यूशन के लिए रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया को भेजे जाते हैं। आरटीआई एक्टिविस्ट मनोरंजन रॉय ने सूचना के अधिकार के तहत जो डेटा हासिल किये उसमें नासिक प्रेस की तरफ से बताया गया कि पांच सौ के 375.45 मिलियन नये नोट प्रिंट किये गये थे, लेकिन आरबीआई के रिकॉर्ड में अप्रेल 2015-16 के बीच केवल 345 मिलियन नोट ही पहुंचे।
पिछले महिने एक अन्य आरटीआई के जवाब में करेंसी नोट प्रेस नासिक ने बताया कि फाइनैंशियल ईयर 15-16 के लिए पांच सौ के 210 मिलियन नोट आरबीआई को सप्लाई किये गये थे, तब रघुरामराजन आरबीआई गवर्नर थे। नासिक प्रिंटिंग प्रेस का कहना है कि नए नोट के बारे मे आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में सार्वजनिक डोमेन करेंसी मैनेजमेंट में नये नोट प्राप्त करने के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।फ्री प्रेस में प्रकाशित हुई इस खबर के अनुसार शीर्ष बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था को होने वाले बहुत बडे नुकसान के प्रति उदासीनता बरत रहा है, जो पूरी अर्थव्यवस्था में भूचाल ला देने वाला झटका होगा। अब इस विषय में कौन सच बोल रहा है और कौन सफाई दे रहा है,यह लडाई लम्बे समय तक चलेगी।