अगले चुनाव तक अजमेर के कांग्रेसी एक दूसरे को निर्वस्त्र न कर दें! सब मेरे साथ प्रार्थना करें?

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* “फिल्म जानी दुश्मन” का दूसरा पार्ट फिल्माया जा रहा है
* ब्लॉग में वर्णित सब नाम काल्पनिक हैं! किसी से मिलान हो जाना दुखद संयोग है

राजस्थानी में एक कहावत है “आ रे म्हारा सम्पटपाट! मैं तने चाटुं तू म्हने चाट!” इसका अर्थ वही होता है जो अजमेर कांग्रेस में हो रहा है। इतनी बुरी कुश्तम पछाड़ तो अजमेर के इतिहास में कभी नहीं हुई। आगे नहीं होगी यह भी गारंटेड है। इतनी गुटबाजी तो राजस्थान कांग्रेस में भी नहीं। जबकि पायलट और गहलोत कांग्रेस डुबोने में कोई कमी नहीं रख रहे। अब उनके बीच सुलह के फार्मूलों का जुगाड़ किया जा रहा है मगर अजमेर के पहलवान तो किसी के ताबे ही नहीं आ रहे। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है।

सोचा था अब बाबा जी आ गए हैं सब ठीक ठाक हो जाएगा। मगर बाबा जी ने तो कांग्रेसी नेताओं के हाथ में चिमटे ही पकड़ा दिए। पिछले एक महीने में बाबा जी और उनके चेलों ने यह तय कर दिया है कि आठों विधानसभाओं में भाजपा को किसी मजबूत उम्मीदवार के खड़ा करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

देवनानी, अनीता भदेल, शंकर सिंह रावत, सुरेश रावत, रामस्वरूप लाम्बा तो बहुत बड़े नाम हैं यदि भाजपा ने छोटे मोटे गली कूंचों के चिल्गोजों को भी खड़ा कर दिया तो कांग्रेस की सारी मरकरी लाइट्स गोदामों में पहुंच जाएंगी।

बाबा जी के हाथ में टुल्लू ही रह जाएगा। समझ में नहीं आता कि आठों विधानसभाओं से विधायक जितवाने का दावा करने वाले बाबा जी ने क्या सोच कर यह शपथ ले ली कि वह आठों विधानसभा से यदि विधायक नहीं जितवा पाए तो गले में फूलों की (सिर्फ फूलों की) माला और सर पर स्वाफा नहीं पहनेंगे। उनके आचरणों से तो मामला उलटा ही लग रहा है।

हो सकता है मुझे ही मतिभृम हो गया हो! बाबा जी के प्रति मेरा ही कोई दुराग्रह काम कर रहा हो! मगर यहाँ तो जिसे देखो बाबा जी की पुंगी बजा रहा है।

मेरे पत्रकार मित्रों को ही देख लीजिएगा! ब्लॉगर एस पी मित्तल! ओम माथुर! गिरिधर तेजवानी! प्रेम आनन्दकर! नरेश राघानी “मधुकर”! अशोक शर्मा! रमेश शर्मा! और भी। कई नामधारी! इच्छाधारी! चमत्कारी! पत्रकार! बाबा जी को कांग्रेसी फूट के लिए गाजर का बीज मान रहे हैं।

उधर पायलट के सारे भंवरे बाबा जी को मिल कर लपेट रहे हैं इधर बाबा जी के सारे चेले मोहतरमा और उनके पतिदेव के लिए मानव बम बने हुए हैं।

बाबा जी के इन्ही तिलकधारी नेताओं ने एक प्रेस वार्ता में जम कर जहर उगला। मोहतरमा और उनके पति को कल तक गिरफ़्तार करने की मांग करने वाले इन इच्छाधारी नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस में यह सिद्ध करने की कोशिश कर दी कि मोहतरमा और उनके पति कांग्रेस के साथ नाइंसाफी कर रहे हैं।

दूध के देवता ने तो यह आरोप लगा दिया कि मोहतरमा और उनके पति! हजारों करोड़ रुपये की अवैध सम्पत्ति के मालिक हैं।

मैंने जनाब मोहतरमा के पति से बात की। पूछा कहाँ छिपा के रख रखी ही इतनी धन दौलत? तो उच्चस्तरीय गाली बकते हुए उन्होंने कहा कि “उस वाइफ के भाई (साले) ….की माँ.. से पैदा हुए लाल के इलेक्शन में लगाऊंगा सारी दौलत! बहुत मुंह धोकर बैठा है सांसद बनने के लिए!”

मैंने कहा “जनाबे आली ! दो हजार करोड़ रुपये तो बहुत होते हैं!इतने कमाए कहाँ से!”

उन्होंने कहा यह मेरा वकील पूछेगा उस दूधिए से! मानहानि का जब दावा होगा! अभी जयपुर हूँ! आकर मानहानि का दावा करता हूँ”।

सुन कर चुप हो गया मैं! कैसे पूछता कि 2 हजार करोड़ रुपये का मालिक बता कर आपकी तो भले मानुश ने इज्जत ही बख्शी है ! मानहानि तो तब होती जब वह आपको दो कौड़ी का खानाबदोश बता देता। खैर!

मैं दुग्ध वीर को भली भांति जानता हूँ। जरूर उनके पास इंसाफ भैया की प्रॉपर्टी के पूरे कागजात होंगे। पास बुक की जेरॉक्स होगी। दो हजार करोड़ रुपये कम तो नहीं होते! अजमेर का शायद ही कोई नेता हो जिसके पास इतनी दौलत हो।

ऐसा भी नहीं कि अजमेर के सारे नेता सत्यवान हों। किसी ने एक पैसा न बनाया हो। जहां नेताओं की इनकम मंथली लिफाफे लेकर आती हो। सफाई के ठेकेदार जिनका खर्च चलाते हों। जिनकी करतूतें वालिया गिरी जैसी हों! बीस बीस हजार की रिश्वतों से जिनकी रसोईयां चलती हों उस शहर के नेता दो हजार करोड़ कमा लें ! मुझे तो यकीन नहीं होता।

मुझे लगता है कि जरूर दूध वाले भैया को गलतफहमी हो गयी होगी। फिर लगता है की इंसाफ भैया यदि डेयरी में नेतागिरी कर रहे होते तो उनका क्या होता?

दो हजार करोड़ वाला आरोप यदि सच है तो इसकी तो न्यायिक जांच होनी ही चाहिए।

इस ब्लॉग को लिखते समय मुझे बाबा जी का चेहरा याद आ रहा है। कोरोना काल से पहले उनको अजमेर में कोई जानता तक नहीं था। अचानक बादल गरजे! मोर बोले! बारिश हुई! और मेंढक पैदा हो गए! मेरा मतलब ये नहीं कि मैं बाबा जी को बरसाती मेंढक कहना चाहता हूँ मगर ये सच है कि उनका अजमेर की सूखी जमीन पर आना घोर आश्चर्यजनक रहा। वह आए तो जमीन गीली हो गई। उपजाऊ भी।

जिस नेता ने जय को पाला! विधायक बना! जिस गोपाल जी ने पुष्कर में विधायक लीला दिखाई! जिसने मिनी मुख्यमंत्री होने का खिताब अर्जित किया! जिसने दूध क्रांति का बिगुल बजाया! ये सब बाबा जी के पिस्सु कैसे हो गए?

अजमेर के नेताओं में यदि सच में ही खुद का कुछ वजूद होता! खुद्दारी होती! तो वे बाबा जी का अधिपत्य स्वीकार नहीं करते! सारे लोग मिल कर गर्व से नहीं कहते कि हम पांडू हैं।

इलायची बाई को नमन करते हुए मैं उनसे प्रार्थना करता हूँ कि वह अजमेर कांग्रेस को कोई ऐसा वरदान दें कि उसके बदतमीज नेता, अगले चुनाव तक एक दो अधोवस्त्र धारण किए रखें। जिस तरह कपड़े फाड़ने का उपक्रम चल निकला है उससे तो लग रहा है कि कोई किसी से कम नहीं। हो सकता है चुनावों तक दोनों गुट एक दूसरे का चीर हरण करते हुए निर्वस्त्र घूम रहे हों।

हे ईश्वर इनको माफ करना ये नहीं जानते कि पार्टी की इज्जत क्या होती है? इसे कैसे बचाया जाता है?

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