बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो खुद ही राख हो जाये
अजमेर में अब जो जल समस्या है उसकी तुलना किसी ऐसे घर से की जा सकती है जिसके दालान में मौजूद दस हजार लीटर का अन्डर ग्राउन्ड टैंक तो शुद्ध और मीठे जल से भरा हुआ है मगर ड्राइंग रूम में बैठा मेहमान इसलिये प्यासा है क्योंकि मेजबान के परिन्डे पर रखी मटकी में पानी नहीं है। मटकी में पानी इसलिये नहीं है क्योंकि छत पर रखी सप्लाई टंकी तक पानी नहीं पहुंचता। टंकी में पानी इसलिये नहीं पहुंचता क्योंकि पानी चढाने वाली मोटर एयर ले लेती है। मोटर एयर इसलिये ले लेती है क्योंकि गृहस्वामी को छत तक जा रही पाइप लाइन का लीकेज ठीक कराने की फुरसत नहीं मिलती।
पाठकों को याद होगा विगत मानसून के दौरान जब, लबालब भरे बीसलपुर बांध से एक एक दिन में एक एक महिने का पानी ओवरफ्लो हो रहा था अजमेर के मुहल्लों के लोग तब भी, एक एक बाल्टी पानी को तरस रहे थे। करीब 6 सौ करोड़ रुपये से बीसलपुर प्रोजेक्ट पूरा हो जाने व 50 करोड़ रुपये स्मार्ट सिटी योजना के दौरान पानी के नाम पर फुंक जाने के बावजूद जिस व्यक्ति को एक बाल्टी पानी के लिये एक बाल्टी पसीना बहाना पड़ रहा हो उसे सरकार, तंत्र और योजना जैसे शब्दों की परिभाषा पूछ ली जाये तो जवाब का पूवार्नुमान लगाया जा सकता है। स्मार्ट सिटी योजना के प्रीव्यू में 24 घंटे में एक बार पानी सप्लाई की झांकी दिखाई गई थी मगर हकीकत यह है कि अब भी आधे से अधिक शहर को 72 घंटे में एक बार व चौथाई से अधिक को 84 से लेकर 90 घंटे में (कभी वह भी नहीं) पानी दिया जा रहा है।
हाल के बजट में राज्य सरकार द्वारा पानी के मद में स्वीकृत 31.4 करोड़ रुपये के अलावा केन्द्र सरकार द्वारा अमृत 2 के तहत 186 करोड़ की योजना और लागू की जा रही है। अमृत 2 के दौरान उच्च जलाशय, स्वच्छ जलाशय व 4 पम्प हाउस प्रस्तावित हैं। बीसलपुर प्रोजेक्ट के आधारभूत मंतव्य में से एक भूजल पर निर्भरता कम करना था। इसी के तहत डेढ़ सौ किलोमीटर दूर से चल कर पाइप लाइनें अजमेर और जयपुर पहुंच गई मगर हैरत की बात है कि शहर के टेल एन्ड पर पानी पहुंचाने के लिये अब भी नलकूपों एवं हैण्डपम्पों से आस लगाई जा रही है। नई योजना के तहत 46 हजार मीटर पाइप लाइन भी बदली या डाली जा रही है जिसकी गुणवत्ता का प्रमाण आने वाला समय ही दे पायेगा।
आने वाली योजनाओं के अन्तर्गत लगने वाला दो से ढाई सौ करोड़ का यह नया बजट भी अजमेर के माथे पर बरसों से लगा जल शापित का बदनुमा दाग हटा पायेगा इसमें संदेह है। पिछले दिनों अजमेर के, अजयमेरू प्रैस क्लब में आयोजित एक संगोष्ठी के दौरान शहर के प्रबुद्धजन एवं विभागीय अधिकारियों के बीच हुई परिचर्चा में निकली पहेलियों का हल भावी योजनाओं में भी दिखाई नहीं देता। एक नजर पुन: इन पहेलियों पर। शहर के जल वितरण को प्रभावित करने वाली बिजली से बड़ी पावर, वार्ड पार्षद से लेकर विधायक- मंत्रियों तक का वह दखल है जिसकी वजह से कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे के हालात दिखाई देते हैं इसका क्या किया जाये।
जल आपूर्ति को प्रभावित करने वाली दूसरे नम्बर की पावर है इलैक्ट्रीसिटी। समाचार पत्र में छपी रपट के अनुसार पिछले दिनों 39 दिन में 71 बार बिजली की ट्रिपिंग हुई और नतीजतन 226 एम.एल.डी. पानी बीसलपुर से कम लाया जा सका। तीसरी समस्या है, जल वितरण व्यवस्था की फ्रन्ट लाइन ठेका कर्मचारियों के हाथ में है जिनकी मर्जी ही मुल्क का कानून है। पानी आने का समय बहुत कुछ इनकी सुविधा और मर्जी पर निर्भर करता है और इसी वजह से बिजली विभाग को सुचारू व्यवस्था के लिये सुनिश्चित समय नहीं दिया जा सकता। टेल एन्ड तक पानी न पहुंचने की चौथी बड़ी वजह पानी पथ के बीच आ रहे मुहल्लों में लगे अवैध जल कनेक्शन व अवैध बूस्टर हैं।
स्थानीय जल अधिकारियों के अनुसार इनका उनके पास इलाज नहीं इसलिये छीजत के नाम पर उन्हें 20 प्रतिशत पानी अतिरिक्त मिलना चाहिये।पांचवी और सबसे बड़ी पहेली हम सबकी कुछ ख्वाहिशें है मसलन पीने और नहाने के अलावा हमें अपने खेतनुमा गार्डन सींचने, पाइप से गाड़ियां धोने, स्वीमिंग पूल भरने, पामेरियन को नहलाने और नल चालू छोड़ कर सड़क की तराई करने के लिये उतनी ही मात्रा में पानी और मिलना चाहिये जितना कि वर्तमान में मिल रहा है। अब देखना यह है कि बजट में इन ख्वाहिशों को कब शामिल किया जाता है।