तो क्या हाथियों द्वारा घास कुचलने के मामले की जांच खरगोश करेगा?

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* सरकार की जीरो टोलरेंस नीति का डंका पीटकर आई पी एस और आई ए एस के विरुद्ध दर्ज मारपीट कांड मुकदमे की जांच करेंगे आर पी एस
* देखते ही सैलूट ठोकने की मजबूरी में कैसे होगी निष्पक्ष जांच
* मुख्यमंत्री के निर्देश पर हुई जांच क्या एफ आर लगाने के लिए है

…….और लीजिए राजस्थान पुलिस में अब एक और चमत्कारी फरमान जारी हो गया है। जिन बड़े अधिकारियों ने पिछले दिनों अजमेर के पास मकराना राज ढ़ाबे में कर्मचारियों के साथ शक्ति प्रदर्शन किया था उनके क्रियाकलापों की जांच उनके अधीनस्थ पुलिस अधिकारी करेंगे। ठीक उसी तरह जैसे किसी मंत्री की जांच उन्ही के मंत्रालय का कर्मचारी करे।

अजीब विडंबना है कि आई पी एस सुशील विश्नोई और आई ए एस गिरधर की जांच उनको देखते ही सैलूट ठोकने वाले आर पी एस को सौंपी गई है। वह अजमेर के ग्रामीण सी ओ हैं। अभी हाल ही में उन्होंने पद भार ग्रहण किया है। स्वभाव से संत! ये पुलिस अधिकारी किस तरह अपने उच्चाधिकारियों को बयान लेने के लिए बुलाएंगे? किस तरह उनसे तीखे सवाल जवाब करेंगे? उनको कानूनी गिरफ़्त में लेंगे? किस तरह सी सी टी वी के फुटेज पर रिपोर्ट तैयार करेंगे??आप और हम आसानी से सोच सकते हैं मगर पुलिस हाईकमान इस मामूली बात को नहीं सोच पा रहे।

निलंबित उच्चाधिकारियों और कर्मचारियों को बचाने के लिए शायद यह जांच अधीनस्थ अफसर को सौंपी गई है। एक तरफ तो दोषी अधिकारियों को गिरफ़्तार करने की बात भाजपा के बड़े नेता उठा रहे हैं। कानून के जानकार ताल ठोंक कर कह रहे हैं कि आरोपियों को गिरफ़्तार होने से कोई बचा नहीं सकता। दूसरी तरफ आई पी एस की जाँच सौंपी गयीं है एक “आर पी एस” को।

राजपूत समाज ने ज्ञापन देकर मामले में सरकार से सख्त कदम उठाने की दरख्वास्त की है। मुख्यमंत्री गहलोत ने खुद इस मामले में सरकार की जीरो टोलरेंस नीति की मंशा प्रदर्शित करते हुए पुलिस के आला अधिकारियों को इस काण्ड की निष्पक्ष जाँच के सख़्त निर्देश दिए हैं। फिर भी……….!

यह सफेद सच है कि यदि मकराना राज ढ़ाबे में यही अपराध किसी और ने कारित किया होता तो अब तक उसे जेल की हवा खिला दी जाती। वारदात में यदि कोई मामूली पुलिस कर्मी भी शामिल होता तो उसे अनुशासन हीनता के आरोप में बर्खास्तगी की फाइल चला दी जाती।

जगजाहिर है कि मामले की जानकारी प्रभावशाली नेता ने मुख्यमंत्री को दी। पुलिस अधिकारियों पर आई पी एस और आई ए एस अधिकारी के विरुध्द मुकद्दमा दर्ज़ करने का दवाब बनाया गया और गेगल थाने के मामूली थानाध्यक्ष को मजबूरन रिपोर्ट दर्ज़ करनी पड़ी। पुलिस कप्तान तक को मामले में कार्यवाही करने को मजबूर होना पड़ा।

ऐसे में जरा सोचिए कि सी ओ ग्रामीण (आर पी एस) कैसे और किस तरह से दूध का दूध पानी का पानी कर पाएंगे?

बेचारे दो पाटों के बीच पिस जाएंगे। एक तरफ पब्लिक! राजपूत समाज! मीडिया! कानून! सेल्फ रेस्पेक्ट ! तो दूसरी तरफ अपने उच्चाधिकारी!राजनीतिक दवाब! और सैलूट करने की विवशता।

आखिर कैसे कोई ईमानदारी से जाँच कर पाएगा?

यहाँ एक और जानकारी मित्रों आपको देना चाहता हूं। प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी संघ ने भी इस कांड की कड़े शब्दों में निंदा की है। संघ के सचिव डॉ समित शर्मा ने साफ तौर में मारपीट काण्ड में लिप्त इन अधिकारियो के इस कृत्य को गलत मानते हुए सभी अधिकारियों को अनुशासन और छवि के प्रति सजग रहने के दिशा निर्देश जारी किए हैं।

इतने बड़े कांड और दवाब के बीच कोई अदना अधिकारी कैसे निष्पक्ष जांच कर सकता है?

मैं यहाँ अजमेर ग्रामीण सी ओ की योग्यताओं पर कोई सवाल नहीं उठा रहा! जानता हूँ कि वह भले ही सेवाओं में नए हों लेकिन उनकी बेदाग छवि जगजाहिर है! उनकी कर्तव्य निष्ठा भी अपनी जगह सम्मानीय है! मगर सवाल उनसे भी वही कि क्या उनकी हैसियत अपने से ओहदे में कहीं ऊंचे अधिकरियों की कॉलर पर हाथ डालने जितनी है?

क्या वह बिना मानसिक दवाब के निष्पक्ष और निडर जांच कर सकते हैं?

मुझे पता है कि जांच अधिकारी खुद को दुविधा में फंसा महसूस कर रहे होंगे। न जांच के लिए मना कर सकते होंगे न जांच करने के लिए खुद को सक्षम मान रहे होंगे।

डी जी पी पुलिस उमेश मिश्रा को चाहिए कि वह इस बहुचर्चित कांड की जांच पुलिस के किसी सीनियर अधिकारी से करवाने के निर्देश दें! पूरे देश में गूंजने वाले इस कांड की जांच वास्तव में वही अधिकारी कर सकता है जो आरोपियों को सैलूट करके अभिवादन न करे।

यदि ऐसा नहीं हुआ तो संदेश यही जाएगा कि गुंडों का किरदार क्यों कि पुलिस और प्रशासन के उच्चाधिकारियों ने निभाया इसलिए उनकी जांच छोटे अधिकारी से करवा कर केवल खाना पूर्ति कर दी गई। मामले में आज नहीं तो कल एफ आर तो लगनी ही है मगर कानून संगत एफ आर ही मान्य होगी।

…और इसके लिए जांच संवेदनशील डी जी उमेश मिश्रा को अपने व्यक्तिगत निर्देशन में पुलिस मुख्यालय के ही किसी वरिष्ठ अधिकारी से करवानी होगी।

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