* काल्पनिक कहानी के नकली किरदारों की असलियत!
* मूर्खों के मजे ले रहे हैं बाबा जी!
किसी फिल्म का डायलॉग तो आपको याद ही होगा। एक मच्छर वाला। हां! हां! वही । अच्छे भले आदमी को किन्नर बनाने वाला! यह डायलॉग मुझे आज तब याद आया जब एक बाबा जी का जिÞक्र छिड़ा।
अजमेर में ये चमत्कारी बाबा ठीक वैसे ही इकलौते हैं जैसे डायलॉग में मच्छर। एक बाबा जी ने पूरी कांग्रेस को मस्त कर रखा है। फर्क इतना ही है कि फिल्म वाला एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बनाता है मगर ये बाबा जी जब से अजमेर की राजनीति में अवतरित हुए हैं तब से कांग्रेसी गुब्बारों में हवा भरती जा रही है।
बाबा जी पता नहीं किस चक्की का पिसा आटा खाते हैं कि इनसे जो मिलता है उसे अजीर्ण हो जाता है।
राजनीति में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के प्रयोग का अनुसंधान शायद इन्ही बाबा जी ने किया है। इनसे पहले भी आजादी के बाद कई प्रभा मंडल अजमेर में पैदा हुए मगर इन बाबा जी के आगमन से सब फीके पड़ गए।
बाबा जी उच्च कोटि के दयालु व्यक्ति हैं। हर नेता को जादुई चश्मा बांटते हैं। इनकी दयालुता कभी कभी तो झाँसे बाजों जैसी लगने लगती है। इनकी झोली में तरह तरह की आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां हैं। इनका नियमित सेवन करने से कोई खुद को पार्टी का भावी जिलाध्यक्ष समझने लगता है। कोई बुजर्ग संस्था का चेयरमैन बन जाता है। कोई देहात का अध्यक्ष! कोई कहीं का विधायक! कमाल है यार कमाल।
बाबा जी! आज तक किसी विधानसभा से चुनाव नहीं जीते! जब लड़े जमानत ही जब्त हुई! मगर मुआ कॉन्फिडेंस देखो। आठों विधानसभा से जब तक उनकी पार्टी के नेता विधायक नहीं बनेंगे तब तक वह सर पर दस्तार और गले में फूलों की माला नहीं पहनेंगे। गजब की कारीगरी! नायाब दस्तकारी।
ना बाबा जी आएंगे न घण्टा बाजेगा! यह कहावत अजमेर वाले बाबा जी ने शायद सुनी नहीं होगी। अजमेर से बाबा जी भी चुनाव लड़ने का मानस बना रहे हैं। मुझे लगता है आठों विधानसभा से वही चुनाव लड़ेंगे।
उन्होंने पहले पुष्कर में आना जाना बढ़ाया। पुष्कर को काशी विश्व नाथ बनाने की पुड़िया बाँटी। फिर लगा कि अजमेर उत्तर में वह देवनानी जी को नानी याद दिला देंगे। पुष्कर को लड़ता मरता छोड़ वह अजमेर पधार गए और फिर उन्होंने चुनाव लड़ने से पहले यहाँ भी अपनी पार्टी के नेताओं को ही आपस मे लड़ाना शुरू कर दिया। यह कहानी का दूसरा पार्ट है।
कहानी का पहला पार्ट पुष्कर में लिखा गया। पहले पुष्कर में पार्टी को कई फाडों में बांट दिया। आज वहां नों कांग्रेसी पार्षद एक जाजम पर हैं और सभी बाबा जी पर भाजपा का साथ देने का आरोप लगा रहे हैं। कह रहे हैं कि बाबा जी कमल की कथा के पाठक हैं। सभी ने हाईकमान को बाबा जी के खिलाफ पत्र लिख दिया है। एक पार्षद ने तो कल साफ कह दिया कि यदि बाबा जी ने पुष्कर से चुनाव लड़ा तो कोई कांग्रेसी उनके साथ नहीं होगा। ये सब वे पार्षद हैं जो कल तक बाबा जी के जयकारे लगा रहे थे आज जूतों की माला ले कर घूम रहे हैं।
उधर ऊपर गहलोत और पायलट जी गुत्थमगुत्था हो रहे हैं। सुलहनामे फेल कर रहे हैं। इधर ये चमत्कारी बाबा जी झाड़ फूंक में पार्टी का धुआं निकाल रहे हैं।
पहले गोविन्दम में रलावता जी के साथ कीर्तन करवाया। थाने कचहरी करवाए। कांग्रेसी जमानत पर छूटे। अब रीट कार्यालय पर फिर मुकदमेेंं बाजी करवा दी। मोहतरमा नसीम इंसाफ मांगने पर मजबूर हैं। रूपनगढ़ के भाकर जी ने बाबा जी पर खुल कर फूट डालने के आरोप लगाए हैं। मुस्लिम समाज मोहतरमा के पक्ष में मैदान में उतर आया है।
कल रन्धावा जी ने मोहतरमा को खुद फोन किया। शांत रहने की बात कही। धवन मैडम ने अमृत वाणी में कहा कि उनको पता है बाबा जी किस तरह लुटिया डुबो रहे हैं। आज मोहतरमा अपने सैंकडों समर्थकों के साथ सिविल लाइन्स थाने पर अपनी गिरफ्तारी देने जाने वाली थीं। रन्धावा जी ने मना कर दिया। शायद वह न भी जाएं।
मुख्यमंत्री के राहत कैम्प की 12 बजवाने वाले बाबा जी अब पार्टी की 12 बजाने पर उतारु हैं। तमगा ये कि आठों विधानसभाओं में जीतेंगे। स्वाफा और मालाएं दांव पर लगा दी हैं। आगे क्या होगा कालिया?
मित्रों! बाबा की महिमा अपरंपार है। कलेक्टर जी को मोहतरमा नसीम के खिलाफ ज्ञापन देने गए भाजपाइयों में बाबा जी का भाई कैसे शामिल हुआ? (मेरे पास फोटो है) यह भी खोज का विषय है।
क्या कांग्रेस किसी विधानसभा में खाता खोल पाएगी? इस सवाल का जवाब तो राजऋषि संत रघु ही दे पायेंगे। चलिए अपना व्यंग्य यहीं समाप्त करता हूँ। कहानी काल्पनिक नहीं है मगर किरदार काल्पनिक हैं। किसी की मानहानि हुई हो तो वह पूर्णतया स्वभाविक है। कथाकार की इसमें कोई जिÞम्मेदारी नहीं।