ये मरेंगे पर सुधरेंगे नहीं

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“व्यवस्थाओं में खामियां,आदतें भी खराब”

कायदों की रौशनी से किताबें गुलजार हैंं,
पर,हमें कायदे से चलने की आदत नहीं।
अशोक शर्मा, पत्रकार, अजमेर

विश्व भर में रोज 13 लाख 50 हजार सडक दुर्घटनाएं होती हैं और उनमें रोज 3,700 लोग मर जाते हैं। इनमें अधिकांश दुर्घटनाएं तेज स्पीड से गाडी चलाने के कारण होती हैं। भारतीय परिवहन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार विगत वर्ष भारत में विभिन्न सडक दुर्घटनाओं में एक लाख 53 हजार 972 लोगों की मौत हो गई। ये आंकडे किसी भी महा युद्ध में मारे गए लोगों की संख्या से ज्यादा हैंं। इसी प्रकार पिछले एक दशक में सडक हादसों में 14 लाख लोगों की मृत्यु हो गई।

राजस्थान में भी ओवर स्पीड के कारण हर साल कम से कम दस हजार लोग मारे जाते हैं, जबकि सरकार हर साल रोड सेफ्टी के नाम पर 70 करोड रुपये खर्च करती है, बावजूद ये स्थिति है। वजह वही तेज स्पीड, ओवरटेक, ड्रिंक एण्ड ड्राइव और रैश ड्राइव। इनमें सर्वाधिक संख्या युवा वर्ग की है। सबसे ज्यादा निदेर्शों की अवहेलना यही वर्ग करता है, ड्रिंक एण्ड ड्राइव भी सर्वाधिक यही वर्ग करता है, न केवल युवक, बल्कि युवतियां भी। ये इनकी लाइफस्टाइल है। हवा में जीना और हवा में ही मर जाना, क्योकि ये नहीं सुधर सकते।

स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि भारत के चालीस प्रतिशत युवकों के ब्लड में अल्कोहल है, मतलब कि ये कीटेबाज हैंं यही प्रतिशत लडकियों का है। देश की चालीस प्रतिशत लडकियां टल्ली हैंं, कोई थोडी, कोई पूरी। ये वर्ग जब भी ड्राइव करता है, नशे में हवा से बातें करता है और एक्सीडेंट कर बैठता है। ऐसे हादसे सबसे ज्यादा दिन के तीन बजे से रात नौ बजे तक होते हैं। हर किसी को भागने की जल्दी रहती है और रैश ड्राइव के कारण हादसा हो जाता है। युवा वर्ग की स्थिति यह है कि तेज ड्राइव के कारण ये मरने को भी तैयार रहते हैं और किसी को कुचल कर मार देने से भी नहीं चूकते। कोई कुछ कहे, इन्हें बर्दाश्त नहीं। ये है इस देश का युवा।

जो किसी के समझाए, समझना ही नही चाहता। बस मनमर्जी! इसके लिए अकेला यह वर्ग ही जिम्मेदार नहीं, सिस्टम सबसे ज्यादा है। पिछले एक दशक के किसी भी राजनीतिक पार्टी के प्रदर्शन या रैली को देख लीजिए, बाइक पर सवार किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता के सिर पर हेल्मेट नहीं मिलेगा। पार्टी का ठप्पा है, शान से बगैर हेल्मेट के चलते हैंं। ट्रेफिक सिपाही की भी हिम्मत नहीं जो इन्हें टोक दे। पार्टी का ठप्पा जो लगा है। किसकी मजाल है जो इन्हें टोक दे। गवर्नमेंट के सारे कायदे-कानून आम लोगों के लिए हैंं, इनके लिए नहीं, क्योंकि ये सरकार की पार्टी के कार्यकर्ता हैंं, माई-बाप की सेना है। मैंने पिछले एक दशक में किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता को रैली या प्रदर्शन के दौरान हेल्मेट लगाए नहीं देखा।

टीवी सभी के घरों में हैंं चैनल भी सभी ने ले रखे हैं। किसी भी पार्टी के प्रदर्शन या रैली में खुद ही देख लें। दुर्घटनाएं होती हैं, लोग मरते हैं, लेकिन ठीकरा आम आदमी के सिर पर फोड दिया जाता है कि हेल्मेट नहीं लगाते, सीट बेल्ट नहीं बांधते, लेकिन सरकार खुद इन नियमों को फॉलो नहीं करती। जबकि किसी भी विदेशी रैली या प्रदर्शन को टीवी पर देख लें, सभी के सिर पर हेल्मेट लगा मिलता है। हम भारतीय हैंं ना! कायदे-कानून जेब में रख कर चलते हैं, यह हमारी शान है। फिर अपने कंधे बचाने के लिए आंकडे गिना दिये जाते हैं कि सडक दुर्घटनाओं में इतने लोग मर गए। अब आम शहरी को लीजिए, चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस को देख कर सिर पर हेल्मेट लगा लेते हैं, हेल्मेट लगाए नहीं चलते।

युवक-युवती, स्त्री-पुरुष आमतौर पर सभी का यही हाल है। कहीं चालान की लपेट में आ जाते हैं तो अपनी एप्रोच का बखान कर देते हैं, ट्रैफिक पुलिस की कागजी कार्रवाई वहीं रुक जाती है। इसके अलावा कई ट्रैफिक पुलिस के मुंह लगे लोग चाय-सिगरेट का सलाम कर बिना हेल्मेट के निकल जाते हैं, यह दस्तूर भी इन लोगों की शान है। अब देखिये ट्रैफिक पुलिस को, उनकी निगाह बस हेल्मेट पर टिकी रहती है, ओवरटेक या ओवर स्पीड पर नहीं। जैसे कि उन्हें ऊपर से सिर्फ हेल्मेट पर ही निगाह रखने के लिए कहा गया है, शेष नियमों पर नहीं। यह स्थिति हर शहर की है। सिर्फ कायदे-कानून की ऐसी खानापूर्ति से दुर्घटनाएं कत्तई नही रोकी जा सकती। चलते रहो, खानापूर्ति करते रहो, घायलों और लाशों को उठाते रहो, क्योंकि यही व्यवस्था है। हम सुधरना नहीं चाहते, दुर्घटनाएं रोकना चाहते हैं, कैसे संभव है? हम पार्टी कार्यकर्ता को छूट देते हैं, लेकिन आम आदमी को आदेश देते हैं, कैसे संभव है? हम विदेशियों के कपडे पहनना सीख गए हैंं, लेकिन उनकी तरह देश के कानून को फोलो करना नहीं सीखे। इसे नहीं सीखना चाहते, तो मरते रहो, यूं ही चलते रहो।

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