मकराना राज के आरोपी वर्दी वाले गुंडे

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पुलिस पर उठती उंगलियां!
राजपूतों की आवाज! और पीरदान!

पत्रकारिता में बताया जाता है कि कुत्ता यदि आदमी को काटे तो न्यूज नहीं होती। हां, यदि मामला उल्टा हो यानि आदमी कुत्ते को बटका भर ले तो न्यूज बन जाती है।

यहाँ इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने पुलिस के बारे में सोचा। मकराना राज ढ़ाबे में पुलिस की गुड़ागर्दी वाली खबर जब पढ़ी तो लगा कि कुत्ते वाला फार्मूला पुलिस पर लागू नहीं होता। पुलिस वाले गुंडों को ठोकें तो भी न्यूज होती है और गुंडे यदि पुलिस वालों को कूटें तो भी न्यूज होती है।


अजमेर की पुलिस तो सारे फार्मूलों की हवा निकालने के लिए काफी है। अखबारों में पढ़ा तो मालूम चला कि जयपुर रोड के एक ढ़ाबे में आई ए एस और आई पी एस ने दारू के नशे में जम कर तोड़ फोड़ की। ढ़ाबा कर्मचारियों को भी तोड़ा मरोड़ा। सी सी टी वी कैमरों ने चुगली कर दी और मामला फिलहाल निलंबन तक तो पहुंच चुका है। गिरफ़्तारी तक भी पहुंच सकता है।

अखबार की खबरों से पता चला कि निलंबित अधिकारियों ने दो पारियों में मार पीट की। पहली बार वे ढ़ाबे से चले गए। फिर दूसरी बार गेगल थाने से अपने हितैषीयों को लेकर पुन: पधारे। पुन: मार पीट के दृश्य शूट करवाए।

मुझे लगता है कि पहली बार आई ए एस और आई पी एस को ढ़ाबे वालों ने जम कर कूट दिया था। संख्या बल उनके पास जो था। अपमान का घूँट पीकर वे गेगल थाने से लठैतों को लेकर वापस आए और फिर उन्होंने अपने अपमान का बदला लिया।

सच्चाई कुछ भी रही हो मगर सवाल तो उठाए जाने स्वभाविक ही हैं। मैंने कभी एक उपन्यास पढ़ा था। “वर्दी वाला गुंडा”। शायद गुलशन नन्दा का था। मकराना राज ढ़ाबे की घटना से उस उपन्यास की याद आ गई।

पहले गैंगवार की घटनाएं माफियाओं के बीच हुआ करती थीं। आजकल गुंडों की जरूरत ही नहीं पड़ती। पुलिस वाले ही उसका रोल अदा कर देते हैं।

सुना है ढाबा कर्मियों से मुठभेड़ करने वाले एक पुलिस अधिकारी पर पहले भी कोई रेप वाला मामला दर्ज़ हो चुका है। यदि ऐसा है तो बन्दा जरूरत से जिÞयादा काबिले तारीफ है। पुलिस का आई पी एस अधिकारी यदि विभागीय अधिकारी बनने से पहले ही रेप का अनुभवी रह चुका हो तो इसे चयनकतार्ओं और चयन प्रणाली के लिए अदभुत माना जाएगा।

आम आदमी यदि चपरासी की नौकरी के लिए भी अप्लाई करता है तो पुलिस थाने के कर्मचारी उनकी खाट खड़ी करने घर आ धमकते हैं। सारी जन्मपत्री खोल ली जाती है। और तो और कानून की नजरों में पाक साफ रहने वाले लोगों को भी जेब गर्म करके पुलिस थाने से निरापत्ती प्रमाण पत्र हांसिल करना पड़ता है।

सवाल यह है कि गेगल थाना क्षेत्र में गुंडागर्दी करने वाला पुलिस अधिकारी प्रशासनिक सेवा में आ कैसे गया।

कभी जब मैं मंचों पर हास्य व्यंग्य की कविताएँ पढा करता था तब एक व्यंग्य अक्सर पढा करता था।

“थानेदार के बेटे ने माँ से पूछा कि माँ ये बलात्कार क्या होता है।

माँ ने कहा बेटा! अपने पिताजी से पूछ, उन्ही के थाने में होता है।”

थाने में क्या नहीं होता, सब जानते हैं। पड़ौसी के यहाँ चोरी हो गई। उसने रिपोर्ट नहीं लिखवाई। कारण पूछा तो उसने कहा कि थाने में रिपोर्ट लिखवाने से क्या होगा। पहली बात तो चोरी पकड़ी नहीं जाएगी। पकड़ भी ली गई तो कौनसा पूरा सामान वापस मिल जाएगा। लिखाएँगे हुलिया चौकोर वापस मिलेगा त्रिकोण।

दोस्तो! एक बार मैंने एक पुलिस विभाग के विरुद्ध कविता पढ़ दी। कह दिया कि पुलिस वाले नम्बर एक के गुंडे होते हैं। कविता पढ़ने के बाद जैसे ही मंच से उतरा एक थानेदार ने आकर मेरी कॉलर पकड़ ली। बोला तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारी पुलिस के बारे में इतना घटिया बोलने की।

मैंने हाथ जोड़ कर कहा कि “मालिक ! मैने तो पाकिस्तान की पुलिस को घटिया बताया था”। थानेदार ने डंडा उठाया और बोला “मुझे क्या इतना मूर्ख समझता है।क्या मैं इतना भी नहीं समझता कि इतनी घटिया पुलिस कहाँ की होती है।”

अजमेर पुलिस के बारे में कुछ भी बुरा कहना, मैं उचित नहीं समझता क्यों कि यहाँ के अधिकतम अधिकारी संजीदा हैं पर कुछ अपवाद भी हैं ही? दोस्तों! मुझे इसी शहर में घूमना फिरना पड़ता है। क्या पता किस वर्दी धारी में किसी गुंडे की दुरात्मा प्रवेश कर जाए।

यहां आपको बता दूँ की मेरे पिता जी पुलिस अधिकारी थे और अपनी ईमानदारी के लिए पूरे विभाग में मशहूर थे। निहायत शरीफ होने के बावजूद कई बार उनकी काया में कोई दुरात्मा प्रवेश कर जाती थी और तब हम सब भाई बहनों की जम कर कम्बल परेड होती थी। माँ हमें बचाने में टूट फूट जाती थी।

बाद में बड़े हुए तो सुना “पुलिस वालों की दोस्ती भी बुरी, दुश्मनी भी बुरी।”

अब जबकि पिताजी नहीं रहे तब सोचता हूँ कि पुलिस वालों को चौरासी हजार योनियों से बाहर का क्यों माना जाता है।

सुना है मकराना राज ढ़ाबे के मालिक राजपूत समाज की सम्मानित हस्ती हैं। निश्चित रूप से बहुत ही बड़े व्यक्ति होंगे वरना कितने ढ़ाबे वाले हैं जो इतने बड़े पुलिस अधिकारियों से पंगा लेते हैं।

मकराना राज के राज पुत्र! तुमने तो कमाल ही कर दिया! इतने बड़े अफसरों को निलंबित करवा दिया! अब उनको कानून की गिरफ़्त में भी लिया जा सकता है! गजब यार गजब!!

वाकई तुम महान हो ! जरा देखो उस राजपूत पीरदान को! राजपूत तो वह भी खानदानी ही है।उसके साथ जितना बुरा हुआ शायद ही किसी राजपूत के साथ हुआ हो। घर मे घुस कर मारपीट हुई। उसकी होनहार बेटियों के वर्तमान को कुचल कर भविष्य बिगाड़ दिया गया! न्याय पाने के लिए उसने अकेले दम पर कितनी लंबी लड़ाई लड़ी।

सवाल यह है कि हे मकराना राज के राजपूत मालिक! आपके लिए सारे राजपूत एक होकर सरकार को झुकाने में कामयाब कैसे हो गएहे राठौड़ बाबा! हे ताकतवर राजपूतों! कभी मिलकर उस पीरदान की पीर को भी तो हरो।

देखो उस पीरदान को! खुल कर हर मूंछ तानने वाले राजपूत को खुले आम चुनौती देता है। महाराणा प्रताप की दुर्दशा के लिए तत्कालीन राजपूत राजाओं को कोसता है। क्या कभी कोई राजपूत उसको भी न्याय दिलाने के लिए आगे आएगा।

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