हिंदी पर तमिलनाडु फिर आग बबूला

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हिंदुस्तान में ही हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं
हिन्दीभाषी राज्यों में हिन्दी का ज्ञानाभाव, विरोधी राज्यों में अपनी भाषा का प्रभाव

अशोक शर्मा, पत्रकार, अजमेर

केन्द्र सरकार ने हाल ही तमिलनाडु में फिर हिन्दी का राग आलाप कर शांति में अशान्ति की तीली सुलगा दी, यह ठीक नही, क्योंकि हिन्दी की हवा आते ही वहां पुन: विद्रोह के तीखे स्वर फूट पडे। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इस बात पर कडी आपत्ति दर्ज करा दी कि न्यू इंडिया इंश्योरेंस का सर्कुलर उन्हें इस बार हिन्दी में क्यों भेजा गया। स्टालिन ने इंश्योरेंस कंपनी की चेयरमैन नीरजा कपूर से इस बात पर कडी आपत्ति जता दी। इसे कहते हैं ठहरे हुए पानी में कंकर मारना।यद्यपि यहां अमित शाह का प्रयास कहीं गलत नहीं था, उन्होंने 2019 में भी हिन्दी दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में हिन्दी को लेकर “एक राष्ट्र एक भाषा” की आवाज बुलंद की थी, चूंकि हर राष्ट्र की अपनी एक राष्ट्र भाषा होती है, लेकिन तब चार राजनीतिक दलों ने इसका प्रबल विरोध किया।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि इससे देश की एकता पर असर पड़ेगा। अयासुद्दीन औवेसी ने कह दिया कि हिन्दी सभी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है, इसे थोपें नहीं, यही अच्छा होगा। अनुच्छेद 29 हर भारतीय को अलग भाषा, लिपि और संस्कृति का अधिकार देता है। उधर ममता बनर्जी ने कहा कि सभी भाषाओं का सम्मान करें, यही ठीक होगा। एमडीएमके चीफ वाइको ने सपाट-वे में कह दिया कि हिन्दी थोपी तो देश के दो टुकडे हो जाएंगे। हालात विपरीत देख कर अमित शाह को अपनी यह इच्छा मन में ही दबानी पडी, जबकि उनके अपने गुजरात में हिन्दी की बेकद्री है। वहां हिन्दी को कहीं स्थान ही नही है,शहर से लेकर गांवों तक में दुकान, मकान, सरकारी, गैर सरकारी हर संस्थान के साइन बोर्ड गुजराती और अंग्रेजी भाषा में ही लिखे हुए हैं, कहीं-कहीं हिन्दी है तो न के बराबर।

सरकारी, गैर सरकारी हर काम की भाषा गुजराती ही है। यहां यह अफसोस की बात है कि भारत में हिन्दी अब तक राज भाषा है, राष्ट्र भाषा नहीं, जबकि देश को आजाद हुए 76 साल हो गए, हर साल देशभर में हिन्दी दिवस, हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है, लेकिन राज भाषा का, राष्ट्र भाषा का नही, चूंकि ये सरकारी खानापूर्तियां हैंं, बस! और कुछ नही।यहीं यह और भी अफसोस की बात है कि देश के जो राज्य हिन्दी बाहुल्य हैंं, वहीं के लोग न तो ठीक से अच्छी हिन्दी बोलना जानते हैं, न ही सही-सही हिन्दी लिखना, फिर भी प्रति वर्ष 10 जनवरी को देश भर में हिन्दी दिवस मनाए जाने की औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं और दूसरे दिन उसे लपेट कर रख दिया जाता है। दो टूक बात है कि भारत में अधिकांश सांसदों और विधायकों तक को स्पष्टत: हिन्दी बोलनी नहीं आती।

यकीन न आए तो जब कभी वे भाषण दें तो उनका भाषण सुन लें, पता चल जाएगा कि वे किस स्तर की हिन्दी बोलते हैं। देश में दिल्ली, यूपी, राजस्थान, हरियाणा, एमपी, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड ये आठ राज्य ऐसे हैं, जहां हिन्दी प्रमुखता से बोली जाती है, जबकि तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, मिजोरम, पश्चिमी बंगाल में हिन्दी का प्रबल विरोध है, तथा अरूणाचल प्रदेश और सिक्किम जो कि भारत के ही राज्य हैंं, वहां हिन्दी नहीं बोली जाती। गत वर्ष अमित शाह ने देश के पूर्वोत्तर राज्यों की स्कूलों में हिन्दी की अनिवार्यता का प्रस्ताव रखा था, लेकिन असम, पश्चिम बंगाल और मिजोरम के लोग उग्र हो गए, अनेक संगठनों ने आपत्तियां दर्ज करा दी, तब जाकर यह प्रस्ताव ठहर गया। अब यहां एक प्रश्न कि गुजरात में यह अनिवार्यता क्यों नहीं है? वहां तो अदालतों के काम भी गुजराती भाषा में ही संपादित होते हैं, हिन्दी में नहीं।

याद करें राहुल गांधी का “मोदी ” मुद्दे वाला केस जिसमें मजिस्ट्रेट ने अपना फैसला हिन्दी में नहीं, गुजराती भाषा में लिखा था, जिसे इंग्लिश में ट्रांसलेट कराने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।तमिलनाडु में 1967 में पहली बार कांग्रेस ने हिन्दी थोपने की कोशिश की थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस तमिलनाडु से ही साफ हो गई। तब द्रमुक सरकार सत्ता में आई उसके बाद कांग्रेस अब तक वहां पैर नहीं जमा पाई। उस दौर के तमिल साहित्यकार ए आर वेंकटचलापति ने कहा था कि सभी भाषाओं को बराबरी का दर्जा देकर ही हम देश की सांस्कृतिक एकता को मजबूत कर सकते हैंं। 1967 में जब हिन्दी का विरोध हुआ तब कई जगह दंगे हुए, कई जानें गई। बाद में तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री इन्दिरा गांधी ने राज भाषा अधिनियम में संशोधन कर हिन्दी के साथ अंग्रेजी को सहायक भाषा का दर्जा दिया। हिन्दी भारत में राज भाषा है, राष्ट्र भाषा नहीं।

संवैधानिक रूप से यह राज भाषा है, बस! यद्यपि एथनोलोग के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संविधान ने किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया, अत: भारत की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है। यद्यपि 10 जनवरी 2006 पहली बार विश्व हिन्दी दिवस के रूप मे मनाया गया था। और इस फैसले की घोषणा करने वाले थे तब के पीएम मनमोहन सिंह। देश में एक तरफ जहां नेता मिक्स हिन्दी बोलते हैं जिसमें हिन्दी, इंग्लिश, प्रादेशिक और घरेलू सब भाषाओं का मिक्सचर होता है, वहीं हिन्दी लिट्रेचर के टीचर तक साफ और शुद्ध हिन्दी नहीं बोल पाते, और बच्चों का हाल यह है कि वे न ढंग से लिख पाते हैं, न ही बोल पाते हैं, बावजूद अगली कक्षा में प्रमोट कर दिये जाते हैं और आगे कॉम्पीटिशन एग्जाम में पेपर लीक की बदौलत पास भी हो जाते हैं, और क्या चाहिए। सरकारें कांग्रेस की हो या भाजपा की, सभी हिन्दी दिवस पर सरकारी कामकाज हिन्दी में करें की खानापूर्ति कर हाथ धो लेती हैं, ताकि अपोजिशन उंगली न उठा सके, स्कूलों में स्लोगन लिखा दिये जाते हैं, रैलियां निकाल ली जाती हैं, ताकि ऊपर से एक्सप्लेनेशन लैटर न आ सके।ये है हमारे देश में हिन्दी का हाल, और हिन्दी के प्रति हमारी जागरूकता का हाल।

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