गहलोत के “राहत शिविर” या राठौड़ बाबा के “चाहत शिविर”

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खाली रहा दौराई का पहला राहत शिविर! अधिकारियों ने डाला बाहेती की रैली में डेरा!
तो क्या गांधी बाबा कल बड़े थे आज बड़े हैं राठौड़ बाबा?

मुझे तो लगता है कि ये राठौड़ बाबा आठों विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की पुंगी बजा कर ही दम लेंगे। कोहनी में शहद और सिर पर साफा लादे रखने का शगल इनको चुनाव से पहले ही मंत्री बना देगा। इनको तो जो हुआ हो गया मगर इन जिÞले भर के अधिकारियों को क्या हो गया है जो ये अपनी सारी प्रतिभाओं को बाबा जी के चरणकमलों में समर्पित किये बैठे हैं।

आइए दोस्तों ! कल का पूरा प्रसंग भी जान लीजिए। मुख्यमंत्री गहलोत का ड्रीम प्रोजेक्ट और मास्टर स्ट्रॉक है ‘मंहगाई राहत शिविर!’ वह खुद स्वयं कड़ी धूप की परवाह किए बिना जगह जगह राहत शिविरों में पहुंच रहे हैं।

गहलोत इन शिविरों को कामयाब करने के लिए अजमेर भी आ चुके हैं। जाहिर है कि उनकी जीत के लिए ये शिविर प्राण वायु साबित हो रहे हैं।

कल ऐसा ही शिविर दौराई में आयोजित हुआ। शिविर में पूर्व विधायक नसीम अख़्तर ठीक समय पर पहुंच गईं। तहसीलदार प्रीति चौहान पहले से मौजूद थीं। गांव वाले जब शिविर में पहुंचे तो वहाँ कोई अधिकारी मौजूद नहीं था। दोपहर दो बजे तक शिविर में कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। नसीम अख़्तर साहिबा को बताया गया कि सभी अधिकारी रीट कार्यालय में अपनी हाजरी बजा रहे हैं। दरअसल वहां डॉ श्री गोपाल बाहेती जी का गांधीवादी कार्यक्रम चल रहा था। ग्रामीणों की रैली निकालनी थी। दम खम दिखाने के लिए भीड़ की जरूरत थी। भीड़ बेचारे बाहेती जी के पास कहाँमगर “साथ में जब हो हनुमत बीरा, नासे रोग हरे सब पीरा!” जिसके साथ राठौड़ बाबा हों उसके लिए भीड़ की क्या कमी?

रैली के पहले लोगों की भीड़ आने लगी। भीड़ के उद्गगम का पता लगाया भैया इंसाफ अली ने। अधिकारियों ने नरेगा से आठ आठ मेट हर पंचायत से बुलवा लिए थे।गांधीवादी फौज में दिहाड़ी मजदूरों की जुगाड़ हो गई।

बाबा की मेहरबानी हो और भीड़ इक्कठी न हो सम्भव नहीं! कोहनी पर लगा शहद और मुख्यमंत्री के नजदीक होने का ड्रामा सब अधिकारियों और चिल्गोजों को अपनी तरफ खींचता है।बाबा के आकर्षण का ही प्रभाव है कि “जाना होता है और कहीं तेरी ओर चला आता हूँ! तेरे चेहरे में वो जादू है, बिन डोर खींचा जाता हूँ।”

ताज्जुब की बात यह हुई कि दौराई के राहत कैम्प पर राठौड़ का “चाहत कैम्प” भारी पड़ा। दौराई में ग्रामीणों ने कैम्प का लिखित में बहिष्कार कर दिया। शिकायत जयपुर तक पहुंचा दी गयी।

गुस्साये इंसाफ अली अपनी बैटर हाफ नसीम साहिबा को लेकर रीट दफ़्तर जा पहुंचे। बी डी ओ सहित सारा सरकारी लबाजमा वहाँ मौजूद मिला। बाबा जी गांधीवाद का पाठ पढ़ा कर जा चुके थे। नसीम साहिबा ने जब अधिकारियों को आड़े हाथों लेना शुरू किया तो जुगाड़ के तहत बुलाये मेट एक एक करके बाहर आ गए। पूछने पर कुछ ने तो साफ कहा कि वह भाजपा के समर्थक हैं। दिहाड़ी के चक्कर में बोर होने के लिए आ गए। किसने क्या कहा एक अक्षर समझ नहीं आया।

जानकारी मिली कि नसीम और इंसाफ ने न केवल अधिकारियों को बल्कि रैली के आयोजकों को भी जम कर फफेडा। उनका तर्क था कि जब पूरी रैली ग्रामीण क्षेत्र में थी तो उनको क्यों नहीं बुलाया गया। चलिए उनको न बुलाया गया तो कोई बात नहीं मगर दौराई के राहत शिविर में अधिकारी क्यों नहीं पहुंचे।

अब नसीम अख़्तर को कौन समझाए कि अजमेर के बेताज मुख्यमंत्री कौन हैं किनके इशारे पर प्रशासन सोता जागता, दौड़ता भागता है! कौन सर्वव्यापी है।

सुना है कि राठौड़ बाबा ने अब एक और शपथ ले ली है। जब तक अजमेर की आठों विधानसभा सीट्स कांग्रेस के खाते में नहीं जाएंगी तब तक वह सर पर स्वाफा और गले मे मालाएं नहीं पहनेंगे।

मालाएं फूलों की ही होंगी या किसी और तरह की यह उन्होंने नहीं बताया। आप गलत न सोचें दूसरी मालाएं सूत की भी होती हैं।

कोई बाबा जी से पूछे कि यह बंदिश चुनावों तक की है या हारने के बाद की भी।आठों विधानसभाओं में यदि कांग्रेस जीतेगी तो भाजपा क्या मूँगफली बेचेगी।

कभी कभी तो मूर्ख नेताओं पर हंसी आती है ! कभी तरस।

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