सचिन की आग, सोनिया ने की राख

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* सचिन के मंसूबों पर हाईकमान ने पानी फेरा
* अल्टीमेटम चैप्टर क्लोज

वो दहाड कर जंग के लिए उठे ही थे कि फांस चुभ गई,
जोश में समझ ही नही पाए कि भरोसे ने ही चाल चली है।

अशोक शर्मा, पत्रकार, अजमेर

दौसा में राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम+शक्ति प्रदर्शन सभा में सचिन पायलट ने दो बातें कही, पहली कि आज नहीं तो कल, नीली छतरी वाला न्याय जरूर करेगा और दूसरी यह कि राजनीति में भ्रष्ट लोगों की और भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नही। सचिन की पहली बात यद्यपि आध्यात्म से जुडी है, लेकिन इसी बात में साफ संकेत भी है कि हाईकमान और शीर्ष नेतृत्व ने सचिन के मंसूबों पर स्पष्ट रूप से पानी फेर दिया, और सचिन शायद इसी से हताश होकर अब नीली छतरी वाले की बात कर रहे हैंं। शायद इसीलिए सचिन के इस बार के भाषण में वो जोशोखरोश नहीं था जो पूर्व के उनके कई भाषणों में दिखाई दिया। इस सारे गेम की मास्टर माइंड सोनिया गांधी है, लेकिन सचिन उन्हें कभी भी समझ नहीं पाए, न ही समझ पाएंगे।

2020 के राजनीतिक संकट के समय ही हाईकमान ने स्पष्ट कर दिया था कि समय रहते श्री गहलोत ने चतुराई नहीं दिखाई होती तो राजस्थान से कांग्रेस की सत्ता जा चुकी होती, तब का यह जवाब ही सचिन के लिए लक्ष्मण रेखा बन गया था। सोनिया की पावर पॉलिटिक्स को लेकर पीएम मोदी ने बहुत पहले ही कह दिया था कि खडगे सिर्फ नाम के हाईकमान हैंं, असली पावर सोनिया गांधी ही है। अब सचिन को नीली छतरी वाले पर भरोसा है, अगर उनकी यही विचारधारा थी और है तो दो साल पहले मानेसर से लेकर अब तक जो भी एक के बाद एक दांव उन्होंने चले उन सब की जरूरत ही नही थी। नीली छतरी वाला है ना! एक न एक दिन जरूर न्याय कर देता, लेकिन तब सचिन को इस सीख पर नहीं, अपने दांव-पेंच पर विश्वास था, लेकिन अब सचिन के इस जवाब ने साफ कर दिया है कि अब वे हताश हो गए हैंं। अब उनकी दूसरी बात यह कि राजनीति में भ्रष्ट लोगों की और भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नही, यहां सचिन गलत हैंं ।

पाक-साफ एक-आध राजनीतिज्ञ का इतिहास में तो उल्लेख है, लेकिन मौजूदा राजनीति में कितने हैंं यह ईडी ही बता सकती है, क्योंकि ईडी ने कई-कई भ्रष्टों को गंगा स्नान करा दिया है, जिन्होंने अब तक नहीं किया, ईडी उनके पीछे पडी हुई है ही, आज नहीं तो कल वो स्नान कर ही लेंगे, नहीं करेंगे तो लालू की तरह अंदर चले जाएंगे। सचिन को लेकर कई कलमकारो ने अपनी-अपनी कलम के हुनर दिखाए, कुछ ने गोद में बैठ कर लिखा तो कुछ ने सपाट कलम चलाई। अब मुद्दे की बात पर आते हैं। गहलोत, हाईकमान और भाजपा के बीच की रस्साकशी में सचिन ने कई पैंतरे बदले वे सब सभी समाचार-पत्रों में दो साल से छपते आ रहे हैंं। रही नई पार्टी बनाने की बात तो अंतिम दौर में यह बात हवा हुई, उससे पहले नहीं। हवा क्यों हुई यह मैं अपने 8 जून के ब्लॉग में साफ-साफ लिख चुका हूं। अपने पिता को श्रद्धांजलि सभा में अपनी वोटर्स ताकत दिखाने का सचिन का प्रयास तो पूरा हो गया, लेकिन इसका उन्हें कोई फायदा नहीं मिलेगा, क्योंकि जो उन्हें उकसाने वाले थे, उनके मंसूबों पर पानी फिर गया, दूसरा सचिन ने अब तक के घटनाक्रमों में अपनी छवि को इतना क्लिष्ट कर लिया है कि अब उन पर न कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भरोसा कर रहे हैंं, न ही कोई प्रदेश भाजपाई तथा न ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ।यहां सचिन ने कहा था कि वे 20-22 सालों से राजनीति में हैंं, पर आश्चर्य कि उन्हें 20-22 सालों में कांग्रेस और भाजपा के शासन काल में भ्रष्टाचार का कोई मामला नजर नही आया। बस ले-देकर पिछले एक साल के ये मामले ही उन्हें नजर आए, वो भी अब! जरूर दाल में काला है।

एक पेपर लीक और वसुंधरा के खान घोटाला और इन दोनों पर वे एक साल से रुके हुए हैं, ऐसा क्यों? इन दो मामलों के अलावा कोई और घोटाला या भ्रष्टाचार की बात ही नहीं। भाजपा के केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के करोडों रुपए के घपले का मामला पिछले एक साल से सभी समाचार-पत्रों की सुर्खियां बना हुआ है, रंधावा ने भी सचिन को याद दिला दिया था, बावजूद वे कुछ नही बोले। हकीकत यह भी है कि अब रंधावा सचिन से कोई बात तक नहीं करते, न ही सचिन उनसे, जबकि रंधावा राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी हैंं, सचिन की उनसे बात करना जिम्मेदारी है। लेकिन नहीं सचिन दिल्ली जाकर वेणुगोपाल से बात कर सकते हैंं, खडगे से मिल आते हैं, लेकिन रंधावा से नहीं। इनसे पहले वाले प्रभारी अजय माकन से वे हर बात शेयर करते रहे हैंं। अत: यहां सचिन गलत हैंं।

रही बात 20-22 सालों के भ्रष्टाचार की, तो यह सचिन गूगल पर ही सर्च कर लेते तो दोनों पार्टियों के शासनकाल के दौरान काफी-कुछ हुए भ्रष्टाचार के दर्जनों मामले मिल जाते। ये जो अकेले दो या तीन मुद्दों पर सचिन का अटका रहना कहीं न कहीं गडबड का संकेत है। सचिन के न इरादे नेक हैंं, न राहें सही, और यह सब हाईकमान तथा गहलोत बखूबी समझ रहे हैंं, इसीलिये वे सचिन से नपा-तुला व्यवहार कर रहे हैंं ।सचिन की जैसी दुर्गत राजस्थान की राजनीति में अब तक किसी की नहीं हुई, न कांग्रेस में किसी की, न ही भाजपा में किसी की ।और इस दुर्गत के जिम्मेदार वे खुद हैंं। गलत लोग उन्हें भडकाते रहे और वे भी उनके गाए-गाए चलते रहे, परिणाम सामने है कि आज कांग्रेस में उनकी वैल्यू घट गई तो उधर भाजपा में भी उनकी जम कर किरकिरी हुई।

दौसा में आयोजित सभा में भी उनकी आवाज और अंदाज में वो जोशोखरोश नहीं था जो पूर्व की कई सभाओं में दिखाई दिया । इसमें कोई शक नही कि वे काबिल हैंं, मेहनती हैं और मृदु भाषी हैंं, लेकिन गलत लोगों के इशारे पर कुछ कदम चल दिये, अब परिणाम वो भोग रहे हैंं, जबकि उकसाने वाले अब दूर तक नजर नही आ रहे । इतिहास ने एक सबक दिया है कि फूंक से शंख बोलता है या,,,,,,,,,,।मैं जानता था कि सचिन को अंतत: निराशा हाथ लगेगी ।इसी मुद्दे से संबंधित ब्लॉग में मैंने कई बार लिखा है कि सचिन सोनिया को समझ ही नही पाए हैं ।खडगे, वेणुगोपाल या कोई और सभी, सोनिया के हाथ के पत्ते भर हैंं, और कुछ नही ।

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