जो भी पीएम पुष्कर आया, उसकी कुर्सी गई

0
(0)
* भ्रम या मिथकों का डर,भीड और आपसी खींचतान पर पंजाब केसरी ने भी चटखारे लिये
अशोक शर्मा, लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार

पिछले दिनों पीएम अजमेर आए थे और वे पुष्कर भी गये लेकिन वहां उन्होंने झील की न पूजा की न ही स्नान किया, लेकिन उनके पुष्कर आने ने पुष्कर के पुरोहितों समेत अजमेर के राजनीतिक गलियारों में इस मिथक को जन्म दे दिया कि जो भी पीएम पुष्कर आया, वह अगले चुनाव में अपनी सत्ता खो बैठा। पुष्कर के पुरोहितों के अनुसार राजीव गांधी पुष्कर आए, उनकी सत्ता चली गई, देवेगौड़ा आए, उनकी भी सत्ता चली गई, नरसिम्हा राव आए, उनकी भी सत्ता चली गई। इस विषय पर मेरे सीनियर साथी सुरेन्द्र चतुवेर्दी विस्तार से लिख चुके हैंं।

ये मिथक मात्र हैंं, लेकिन लोग इन्हें मानते हैं क्योंकि कुछ घटनाएं ऐसी घटी कि उन्होंने इन पर विश्वास करने पर मजबूर कर दिया। अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह से भी ऐसे ही कुछ मिथक जुडे हुए हैं कि जो भी पीएम दरगाह शरीफ आया, वह अगले चुनाव में अपनी सत्ता खो बैठा। ऐसे ही कुछ मिथक मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी को लेकर हैंं कि जो भी नर्मदा नदी के ऊपर से हेलीकाप्टर लेकर आया, उसकी कुर्सी चली गई। ऐसे ही नोएडा को लेकर भ्रम है कि जो भी सीएम नोएडा गया, उसकी कुर्सी चली गई, लेकिन इस भ्रम को योगी आदित्य नाथ ने तोडा। वे कई बार नोएडा गए, लेकिन उनके साथ ऐसा कुछ भी नही हुआ।

चलिये मुद्दे की बात पर आते हैं। आस्था में अटूट विश्वास रखने वाले ब्यावर के एक वयोवृद्ध समाजसेवी ललित मोहन अग्रवाल ने मुझे बताया कि पीएम पुष्कर सरोवर की पूजा कर लेते तो श्रेष्ठ होता। किसी भी आस्था की चौखट पर चढ़कर उसकी पूजा न करना अच्छा नहीं है। उन्होंने मुझे बताया कि 21 अप्रैल 1980 को संजय गांधी पुष्कर आए थे। उन्हें सरोवर की पूजा करने के लिए कहा गया तो उन्होंने पूजा करने की जगह सरोवर का जल अपने उल्टे पैर से उछाल दिया। बाद में उनकी दर्दनाक मौत हो गई। ऐसे ही इन्दिरा गांधी के स्वर्ण मंदिर परिसर में आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सेना स्वर्ण मंदिर परिसर में जूते पहने चली गई, परिणाम इन्दिरा गांधी को भोगना पडा, जब उसी के सुरक्षाकर्मियों ने उनकी हत्या कर दी। जबकि 16 मार्च 1921 को मोतीलाल नेहरू पुष्कर आए थे और उन्होंने सरोवर में स्नान किया।

23 अक्टूबर 1945 को जवाहरलाल नेहरू अपनी पुत्री इन्दिरा गांधी के साथ पुष्कर आए थे। उन्होंने भी सरोवर में स्नान किया। 17 मई 1980 को श्रीमती इन्दिरा गांधी पीएम बनने के बाद पुष्कर आई थी, उन्होंने भी यहां पूजा-अर्चना की। यह तो हुई पुष्कर की बात। अब अजमेर में पीएम के कार्यक्रम में आए श्रोताओं की संख्या की बात, तो कुछ भाजपाईयों ने चार लाख भीड पहुंचने की घोषणा कर दी, लेकिन सिर्फ हजारों में थी। यह मैं ही नही कई समाचार-पत्र भी लिख चुके हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ लीडर धर्मेन्द्र राठोड ने तंज भी कस दिया कि बताया गया था कि भीड लाखों में आएगी लेकिन यहां तो संख्या कुछ हजारों में ही थी। आज के पंजाब केसरी अखबार में जंतर-मंतर कॉलम के दिल्ली के लेखक योगेन्द्र भदौरिया जो उस दिन अजमेर ही थे, ने अजमेर में पीएम के कार्यक्रम में भीड और मंच पर प्रदेश भाजपा नेताओं की आपसी खींचतान पर करारे कटाक्ष किये हैं, लेकिन उन्हें लेखन की समझ रखने वाले ही समझ पाएंगे। मंच पर एक तरफ पीएम और वसुंधरा के बीच दूरियां साफ नजर आ रही थी। उन्होंने एक बार भी वसुंधरा का नाम नहीं लिया। दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेता राजेन्द्र राठोड और घनश्याम तिवाडी पीएम को प्रभावित करने में लगे रहे। वसुंधरा के साथ-साथ होने के बावजूद उससे कन्नी काट कर चल रहे थे।

पुष्कर में पीएम के साथ घनश्याम तिवाडी थे, लेकिन ब्रह्मा जी की पूजा करते समय पीएम ने घनश्याम तिवाडी को दूर ही रखा। कुछ पुरोहित पीएम से मिलना चाहते थे, लेकिन पीएम ने उन्हें घनश्याम तिवाडी की तरफ इशारा कर दिया, जिससे पुरोहितों को दुख: हुआ। अजमेर में कायड विश्राम स्थली पर सभा के दौरान प्रेस गैलेरी में पीएम के सुरक्षाकर्मी बैठे थे, फलत: प्रेस रिपोर्टर्स को खड़े-खड़े रिपोर्टिंग करनी पडी। इलेक्ट्रानिक मीडिया को ऊपर का मंच कवर करने के लिए दिया जिससे पीछे बैठे लोगो को मंच पर कुछ भी नही दिख रहा था। इसी तरह प्राइवेट टीवी चैनल वाली गर्ल्स को कभी कुर्सी पर खडे होकर तो कभी नीचे उतर कर कवरिंग करनी पड रही थी। कीचड में कुर्सियां पडी थी, इसलिये उन पर कोई बैठ भी नही रहा था। पीने के पानी के लिए लोग इधर-उधर देख रहे थे, लेकिन वह कहीं नजर नही आ रहा था ।कुल मिलाकर व्यवस्था के नाम पर बद इंतजामियां ही थी।

क्या आप इस पोस्ट को रेटिंग दे सकते हैं?

इसे रेट करने के लिए किसी स्टार पर क्लिक करें!

औसत श्रेणी 0 / 5. वोटों की संख्या: 0

अब तक कोई वोट नहीं! इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

Leave a Comment