सांसद चौधरी! विधायक देवनानी! भदेल! डॉ बाहेती! क्या हुआ तुम्हारे आक्रामक रूख का?
लग गया न वापस “यूजर्स टैक्स”
व्यापारियों को छोड़ों! अब आप लोग बैठो आमरण अनशन पर!
किरकिरी आप लोगों की हुई है व्यापारियों की नहीं
आतिशबाजी बेकार गई। खुशियों का इजहार कुंठा में तब्दील हो गया। व्यापारियों की भावनाएं डस्टबिन की भेंट हो गईं। जनप्रतिनिधियों ने दादागिरी से जो फैसला कवाया था, उसे सरकार ने धत्ता बता दिया है। अजमेर शहर में जो “यूजर्ज चार्ज” लिया जा रहा था वह फिर से लागू हो गया है। यह हुआ पटाखे फोड़ने का परिणाम। दोनों ही पार्टियों के नेताओं की सिफारिशों का नतीजा।
दरअसल यूजर्ज चार्ज के मामले में व्यापारियों के जायज दर्द को नेताओं ने वोटों में तब्दील करने के लिए जानबूझकर वकालत की थी। राजनीति खेली थी।
सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, डॉ बाहेती या फला फला फला फला कांग्रेसी नेता। ये सभी नेता अच्छी तरह जानते थे कि वे जो जिद कर रहे हैं नकली है। दिखावटी है। यूजर्स चार्ज नहीं हटाया जा सकता। केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्य सरकार ने लगाया है।
सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक देवनानी और भदेल तीनों ही भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं। उन्हें पता था कि उनकी केंद्र सरकार के निर्देश पर यह चार्ज लगाया गया है। इसे किसी कीमत पर नहीं हटाया जा सकता। मगर यदि वे तीनों व्यापारियों की हां में हां नहीं मिलाते तो व्यापारी उन्हें खलनायक बना देते। उनके वोटों पर बर्फबारी हो जाती। उनके चुनाव क्षेत्र जोशीमठ बन जाते।
इसलिए उन्होंने व्यापारियों के साथ स्वर से स्वर मिलाए। झूठे ज्ञापन दिए। आंदोलन का झूठा समर्थन किया।
अजमेर के कांग्रेसी नेता भी व्यापारियों के सगे बने रहने के लिए भाजपा के नेताओं पर भारी पड़ना चाहते थे। डॉक्टर बाहेती सहित सभी कांग्रेसी व्यापारियों की टीम में शामिल हो गए।
अजमेर नगर निगम में जब यूजर्स टैक्स को हटाने का दबाव बनाया जा रहा था तब भी मैंने ब्लॉग लिखकर स्पष्ट कर दिया था कि नेताओं का यह प्रयास पब्लिक को मूर्ख बनाने के लिए किया जा रहा है। जब तक केंद्र सरकार इस चार्ज को वापस नहीं लेगी। तब तक राज्य सरकार उसके अनुरूप फैसले नहीं ले सकेगी। सांसद भागीरथ चौधरी हो। विधायक देवनानी हो या भदेल या भाजपाई पार्षद। सभी ने सिर्फ राजनीतिक शॉर्टकट का इस्तेमाल किया। नाटक रच कर व्यापारियों को झांसे में रखते रहें।
अजमेर नगर निगम की मेयर ब्रज लता हाड़ा और निगम के अधिकारियों को अच्छी तरह पता था कि भाजपा और कांग्रेस का उन पर दबाव नाटक का पहला भाग है। दबाव के आगे निगम प्रशासन भी झुक गया मगर अब वही हुआ जिसका डर था। जो डर ज्यादा दिन तक झांसा नहीं बन सकता था।
अब राज्य की कांग्रेस सरकार ने नगर निगम की साधारण सभा के प्रस्ताव को रद्द करते हुए निगम आयुक्त के “नोट आॅफ डीसेंट” का समर्थन करते हुए उन पर सहमति की मोहर लगा दी है।
यहां आपको याद दिला दूं कि नगर निगम की साधारण सभा विगत 12 जनवरी को आहूत की गई थी। इसमें भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के पार्षदों ने एक स्वर में वसूली का विरोध किया था। अकेले निगम आयुक्त सुशील कुमार ने पारित प्रस्ताव के खिलाफ नोट लगा दिया था। राज्य सरकार के स्वायत्त शासन विभाग ने निगम के पारित प्रस्ताव को अवैध करार देते हुए खारिज कर दिया है।
सवाल उठता है कि राज्य सरकार के फैसले पर अब भारतीय जनता पार्टी के नेता क्या करेंगे? कांग्रेसी नेताओं का क्या स्टैंड रहेगा?
व्यापारी तो अपनी मांग जायज बताते हुए, हो सकता है फिर आंदोलन की रूपरेखा बना लें। मगर यह कांग्रेसी नेता क्या करेंगे?
भाजपाई नेता क्या करेंगे?
इन नेताओं के दिल में यदि वास्तव में व्यापारियों से हमदर्दी है? यदि वे वास्तव में चार्ज हटाने के पक्ष में हैं? तो उनको एकजुट होकर आमरण अनशन पर बैठ जाना चाहिए?
सांसद। विधायक। दोनों पार्टियों के पार्षदों को अब एक जाजम बिछाकर आमरण अनशन पर बैठना चाहिए? इसके बिना न तो केंद्र सरकार अपने फैसले को बदलेगी न राज्य सरकार?
और यदि जिद छोड़कर इस आदेश की पालना ही करनी है तो बेकार में आंदोलन का समर्थन करने की जरूरत नहीं?
वोटों की राजनीति नहीं करनी चाहिए। व्यापारियों को गुमराह करके गर्म तवे पर रोटी नहीं सेकनी चाहिए।
व्यापारी भाइयों से मेरा आग्रह है कि इन नेताओं के झांसे में नहीं आएं। उनको यूजर चार्ज नहीं देना पड़ रहा। ये सिर्फ वोटों के लिए मौखिक क्रांति हैं। यदि मेरी यह बात गलत है तो मैं माफी मांगता हूं और उम्मीद करता हूँ कि दोनों ही पार्टियों के नेताओं को इस मुद्दे पर एक हो कर अब व्यापारियों की जगह, अपनी ताकत का इजहार करना चाहिए। इन्हें इस मुद्दे पर स्टैंड लेना चाहिए। इज्जत इनकी ही खराब हुई है, व्यापारियों की नहीं। हवा से भरे गुब्बारे फूट चुके हैं देखते हैं यह नेता इस मुद्दे पर अब क्या करते हैं।