अजमेर भाजपा को अध्यक्ष डॉ. प्रियशील हाड़ा नहीं, सांसद चौधरी और विधायक भाई बहन देवनानी और भदेल चला रहे हैं?

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* अजमेर का भाजपा संगठन पार्टीनिष्ठ नहीं बल्कि व्यक्तिनिष्ठ होकर काम कर रहा है और आलाकमान ने साध रखी है चुप्पी।

* हाड़ा को “बाल” समझ कर नेता उन्हें टके में नहीं पूछ रहे! सड़कों की बदहाली को लेकर, कलेक्टर को ज्ञापन देने गए नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष हाड़ा को सूचना तक नहीं दी।
* हाड़ा अपमान का जहर क्यों पी रहे हैं वे जानें मगर कोई और होता तो इस्तीफा दे देता। * नए शहर जिÞला अध्यक्ष होंगे बर्फ़ में लगे नेता पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत! पार्टी ने कर लिया है फैसला! सिर्फ़ एलान बाकी।

  • सुरेन्द्र चतुवेर्दी

अजमेर में सांसद और विधायक भाई बहन संगठन के पलीता लगाने में एकजुट हो गए हैं। सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक भाई-बहन देवनानी और अनिता भदेल ने मिलकर संगठन के अस्तित्व को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया है। पार्टी से ऊपर हो गए हैं यह तीनों नेता।

यह बात मैं नहीं कह रहा। पिछले दिनों का घटना क्रम कह रहा है। पार्टी नया अध्यक्ष बना नहीं रही और यह तीनों नेता शहर जिÞला अध्यक्ष डॉ. प्रियशील हाड़ा को अपना अध्यक्ष मानने को तैयार नहीं। यही वजह है कि उन्हें अकेला छोड़ कर ये नेता लोग अपने कार्यक्रमों को अखबारों तक पहुंचा रहे हैं।

परसों मैंने जिले भर की सड़कों के बदहाल होने को लेकर ब्लॉग लिखा। केकड़ी, बिजयनगर, नसीराबाद, ब्यावर, किशनगढ़ और पुष्कर क्षेत्र की बारिश में सत्यानाश करवा चुकी सड़कों पर मैंने धुआंधार ब्लॉग लिखा।

जनप्रतिनिधियों की नपुंसकता पर सवाल उठाए तो अचानक सांसद भागीरथ चौधरी और विधायक देवनानी और में छुपा हुआ पुरुषार्थ जाग उठा । उन्होंने संगठन के बैनर पर जिÞला कलेक्टर को ज्ञापन दिया। मजेदार बात यह रही कि इन दोनों महान आत्माओं ने शहर जिला अध्यक्ष डॉ. प्रियशी हाड़ा और मेयर बृजलता को ज्ञापन देने जाने की अनुमति लेना तो दूर सूचना तक नहीं दी। जबकि शहर संगठन के कई पदाधिकारी और पार्षद इस शिष्टमण्डल में शामिल थे।

जाहिर है कि इन तीनों नेताओं ने इनको इस लायक भी नहीं समझा। डॉ हाड़ा पार्टी की दृष्टि में भले ही संगठन के प्रमुख हों, लेकिन सांसद और इन दोनों विधायकों की नजर में वे ऐसे बाल हैं जो जिस्म के किसी भी हिस्से में अपने आप पनपते रहते हैं। आदमी चाहे तो काटे ना चाहे तो बढ़ते रहने दे।

पार्टी में जो स्थान राष्ट्रीय स्तर पर जे पी नड्डा का है, राज्य में सतीश पूनिया का है, शहर में वही स्थान डॉक्टर हाडा का है। सभी संगठन के अपने-अपने क्षेत्र में सर्वे सर्वा हैं ….मगर अजमेर के नेता इस सच्चाई को सिरे से खारिज कर चुके हैं। पार्टी अध्यक्ष को वे कबाड़ खाने में पड़ा एक पद मानते हैं।

वैसे यहां मुझे यह भी समझ में नहीं आता कि जिला अध्यक्ष डॉ. प्रियशील हाड़ा इतना अपमान क्यों बर्दाश्त कर रहे हैं? ऐसी क्या मजबूरी है कि वह स्वयं कुछ नहीं कर पा रहे और जो लोग कुछ कर रहे हैं उन्हें टके में नहीं पूछ रहे। सच कहूं तो उनका नाम प्रियशील नहीं सहनशील हाड़ा होना चाहिए।

ऐसा नहीं कि उनका यह अपमान पहली बार हुआ है। अजमेर में पहले भी एक विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें और उनकी मेयर पत्नी को कलेक्ट्रेट के बाहर छोड़कर ये विधायक भाई-बहन कई छुटभईये नेताओं को लेकर ज्ञापन देने अंदर पहुंच गए थे। शहर अध्यक्ष और शहर की प्रथम नागरिक ‘मेयर’ दोनों बेचारे की मुद्रा में बाहर गुस्से का इजहार करते रहे।

डॉक्टर हाड़ा दुनिया की नजरों में भले ही अजमेर भाजपा को चला रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि उनका पार्टी में होना ना होना बराबर है।

हर बार वे अपने हाईकमान को शिकायत कर देते हैं और होता जाता कुछ नहीं । यही वजह है कि भाई बहनों ने पति पत्नी को पार्टी के हाशिए पर खड़ा कर दिया है।

यहां यह सवाल भी उठता है कि शहर की समस्याओं को लेकर हाडा खुद संगठन स्तर पर मुखिया होने के नाते प्रदर्शन, धरना, ज्ञापन या अन्य तरीके से जनता के दर्द को सामने क्यों नहीं रखते?

वे इतने बेसहारा, निस्सहाय और मजबूर क्यों हैं? यदि सच में उनके वश की बात नहीं तो उन्हें तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।

लगे हाथ यहां आपको एक और जानकारी दे दूं। यह जानकारी मीडिया का कोई भी प्लेटफार्म आपको नहीं देगा। मेरे सूत्र पुख्ता हैं और यहां आपको बता दूं कि शीघ्र ही अजमेर को नया अध्यक्ष मिलने जा रहा है।

दो बार मेयर रह चुके, शहर के सुप्रसिद्ध वकील, योद्धा वीर कुमार के वारिस, प्रशासनिक अधिकारियों को कई बार सबक सिखा चुके नेता धर्मेंद्र गहलोत शहर के नए अध्यक्ष घोषित होने वाले हैं।

धर्मेंद्र गहलोत भले ही पिछले दिनों से बर्फ़ में लगा दिए गए हैं। उनका उपयोग ना हाड़ा कर पा रहे हैं न सांसद भागीरथ चौधरी। ना ही विधायक भाई बहन। मगर उनका प्रोफाइल इतना मजबूत है कि पार्टी उन्हें अध्यक्ष बनाने का फैसला कर चुकी है। अब सिर्फ घोषणा ही बाकी है।

जाहिर है कि मुर्दा पड़ी भाजपा को धर्मेंद्र गहलोत जैसा मुखर और मजबूत नेता ही चाहिए। उन्होंने अपने दोनों मेयर कार्यकाल में जमकर बल्लेबाजी की। भारतीय प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी चिन्मई गोपाल को उन्होंने पानी पिला कर रख दिया। यह उन्हीं का हौसला था कि उन्होंने काला पीला जो करना था किया। तेरह उलझी हुई फाइलों का भूत आज तक उन्होंने सामने नहीं आने दिया है । शांति धारीवाल जैसे धुरंधर नेता को जो चिन्मयी गोपाल के पक्ष में एक वकील नेता को आड़े हाथ ले चुके थे, उन्होंने सम्मोहित कर सभी मामलों को दफना दिया।

आनासागर टापू को लेकर अपने मंत्री काल में भाऊ देवनानी ने विधानसभा तक में आवाज उठाई थी पर टापू सुल्तान जे पी दाधीच गहलोत के यहां हाजिरी लगाते हुए निहाल हो गए। देवनानी चाहकर भी उनका कुछ नहीं कर पाए। ऐसे महान नेता को पार्टी अपना नया अध्यक्ष बना दे (बनना तय है) तो सारा पापा ही कट जाए।

डॉक्टर हाड़ा को जिस तरह सांसद और इन विधायक भाई बहनों ने शरीर का फालतू बाल बना छोड़ा है, धर्मेंद्र गहलोत को उस तरह काबू नहीं किया जा सकता । यदि वे अध्यक्ष बना दिए जाते हैं (जो तय है) तो सांसद भागीरथ चौधरी और विधायक भाई बहनों का उनको मंत्रोच्चारण से वश में रखना नामुमकिन होगा।

हालांकि उन्हें बर्फ़ में लगाने के लिए इन्हीं नेताओं ने जी-जान लगाई थी। अब यही नेता उनके नेतृत्व में पार्टी का अनुशासन निभाएंगे।

दुर्भाग्य है कि भाजपा में फिलहाल तो धर्मेश जैन हो, शिव शंकर हेड़ा हो या श्रीकिशन सोनगरा कोई भी वरिष्ठ या पार्टीनिष्ठ नेता लाइम लाइट में नहीं है। उनके लम्बे राजनितिक अनुभव का लाभ पार्टी किसी भी स्तर पर नहीं ले रही है। बूथ अध्यक्ष पार्षद का चहेता है तो मंडल अध्यक्ष और संगठन के पदाधिकारी विधायकों के चहेते।

चुनाव नजदीक होने के बावजूद और जिला स्तर का समस्त घटनाक्रम पार्टी आलाकमान की जानकारी में होने के बाद भी आलाकमान की चुप्पी रहस्यमय है।

कल हाड़ा से फोन पर बात करनी चाही मगर उन्होंने बात करना उचित ही नहीं समझा। हो सकता है वो इसी सदमे में हों। यही वजह है कि आज का ब्लॉग मैं उन्हें समर्पित कर रहा हूं।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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