मत्स्यावतार भगवान विष्णु का अवतार है जो उनके दस अवतारों में से एक है।
विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है अत: वह ब्रह्मांड की रक्षा हेतु विविध अवतार धरते हैं। जब संसार को किसी प्रकार का खतरा होता है तब भगवान विष्णु अवतरित होते हैं।
एक हज़ार महायुग मिलकर एक कल्प होता है। एक कल्प ब्रह्मा का एक दिन होता है (रात का व़क्त इसमें शामिल नहीं है) दिन के समाप्त होते ही उन्हें नींद आ जाती है।
वही कल्पांत है। उस व़क्त चारों ओर गहरा अंधेरा छा जाता है। विष्णु से निकली संकर्षण की अग्नि सब को जला देती है। झंझावात चलने लगते हैं,
तब भयंकर काले बादल हाथी की सूंडों जैसी जलधाराएँ लगातार गिराने लगती हैं। महासमुद्र में आसमान को छूनेवाला उफान होता है। भू, भुवर और स्वर्ग लोक डूब जाते हैं।
चारों तरफ़ जल को छोड़ कुछ दिखाई नहीं देता। यही ब्रह्मा के सोने की रात प्रलयकाल है। ब्रह्मा जब नींद के मारे पहले जंभाइयाँ ले रहे थे, तब उनके चारों मुखों से सफ़ेद, लाल, पीले और नीले रंगों में चमकनेवाले चार वेद बाहर निकले और नीचे गिर गये।
हयग्रीव ने उन वेदों को उठा ले जाकर समुद्र के अन्दर छिपा दिया। हयग्रीव देवताओं और विष्णु का भी दुश्मन था। वेदों के बिना ब्रह्मा सृष्टि की रचना नहीं कर सकते थे।
हर एक कल्प में विष्णु अच्छाई को बढ़ावा देकर उसका विकास करना चाहते थे। उनके इस संकल्प को बिगाड़ देना ही हयग्रीव का लक्ष्य था।
तब भगवान विष्णु अपने प्राथमिक अवतार मत्स्य के रूप में अवतीर्ण हुए और स्वयं को एक छोटी, लाचार मछली बना लिया।
सुबह सत्यव्रत सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे तभी एक मछली नें उनसे कहा कि आप मुझे अपने कमंडल में रख लो।
दया और धर्म के अनुसार इस राजा ने मछली को अपने कमंडल में ले लिया और घर की ओर निकले, घर पहुँचते तक वह मत्स्य उस कमंडल के आकार का हो गया, राजा नें इसे एक पात्र पर रखा परंतु कुछ समय बाद वह मत्स्य उस पात्र के आकार की हो गई। अंत में राजा नें उसे समुद्र में डाला तो उसने पूरे समुद्र को ढँक लिया।
उस सुनहरी-रंग मछली ने अपने दिव्य पहचान उजागर की और अपने भक्त को यह सूचित किया कि उस दिवस के ठीक सातवें दिन प्रलय आएगा
तत्पश्चात् विश्व का नया श्रृजन होगा वे सत्यव्रत को सभी जड़ी-बूटी, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि को इकट्ठा करके प्रभु द्वारा भेजे गए नाव में संचित करने को कहा।
फिर यह अति-विशाल मछली हयग्रीव को मारकर वेदो को गुमनाम होने से बचाया और उसे ब्रह्मा को दे दिया। जब ब्रह्मा अपने नींद से उठे जो परलय के अन्त में था, इसे ब्रम्ह की रात पुकारा जाता हैं, जो गणना के आधार पर
4320000000 सालो तक चलता है। जब ज्वार ब्रम्हांड को भस्म करने लगा तब एक विशाल नाव आया, जिस पर सभी चढ़े।
मत्स्य भगवान ने उसे सर्पराज वासुकि को डोर बनाकर बाँध लिया और सुमेरु पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
रास्ते में भगवान मत्स्य नारायण ने सत्यव्रत को मत्स्य पुराण सुनाया और इस तरह प्रभु ने सबकी प्रलय से रक्षा की, तथा पौधों तथा जीवों की नस्लों को बचाया और मत्स्य पुराण की विद्या को नवयुग में प्रसारित किया।