द्वापर युग के समाप्ति के बाद हनुमान जी गंधमदन पर्वत पर राम भक्ति में लींन थे, कुछ समय पश्चात् वे भारत भूमि में वापस आये तो उन्होंने देखा की चारों और अत्याचार-अनाचार छाया हुआ है और वे इसे मिटाने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं ! तो ये व्याकुल हो कर कैलाश पहुंचे और शिव जी को पुकारने लगे, परन्तु बहुत पुकारने के बाद भी शिव जी प्रकट नहीं हुए तो हनुमान जी ने विशेष तपस्या करना प्रारम्भ किया और तपस्या के फलस्वरूप शिव जी प्रकट हुए !
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हनुमान जी शिव जी को देख कर व्याकुल हो कर बोले प्रभू चारों और ये क्या हो रहा है ये अत्याचार अनाचार देख कर सहा नहीं जा रहा है और मैं अपना शक्ति बल प्रयोग नहीं कर पा रहा हूँ !
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तो शिव बोले वत्स हनुमान कलियुग में दैवीय शक्तियाँ गुप्त ही रहेंगी और बहुत ही आवश्यकता होने पर भक्ति की शक्ति के कारण मानव की सहायता के लिए प्रकट होगीं, कलियुग में भक्ति की शक्ति और ईश्वर प्रार्थना ही सबसे बड़ी शक्ति होगी, अत: भक्ति के द्वारा ही शक्ति प्राप्त की जा सकती है ! हनुमान तुम पर मानव के अन्दर भक्ति भाव जगाने का उत्तरदायित्व है !
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तब से हनुमान जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग बंद कर दिया और राम भक्ति में लींन हो गए, जब भी कोई हनुमान जी को सच्चे मन से पुकारता है तो हनुमान जी उसकी सहायता के लिए शक्ति प्रयोग करते हैं ! कलियुग में हनुमान जी को अमर रहने और मानव की सहायता करने के लिए ही अमर रहने का वरदान दिया है !