माँ का कोई विकल्प नहीं फिर माँ के लिए दिन विशेष कैसे हो सकता है.?

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माँ अपनी सन्तान के लिए सारे साल काम करती है कोई दिन निर्धारित नहीं करती फिर हम माँ की सेवा के लिए अथवा स्मरण के लिए कोई दिन विशेष कैसे निर्धारित कर सकते हैं.?
कटु सत्य लिख रहा हूँ. किसी को आहत करना मेरा उद्देश्य नहीं है.
मैं भारतीय सनातन संस्कृति से आप सबको अवगत कराना चाहता हूँ
‘मदर्स डे’ मई के दुसरे रविवार को ही क्यूँ मनाया जाता है, विचारणीय प्रश्न है.?
वास्तविकता यह है कि यह पश्चिमी संस्कृति की विकृति है जो हमारे समाज में आधुनिकता की आड़ में घर कर गयी है.
पश्चिमी देशों के लोग जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ आते हैं उन्हें माँ बाप की याद दिलाने के लिए इस दिन की शुरुआत की गयी थी|
रविवार इसलिए कि रविवार वहां छुट्टी का दिन होता है. इस बहाने पश्चिमी देशों में साल में एक बार माँ बाप को याद कर लिया जाता है.
हमें किसी मदर्स डे की आवश्यकता नहीं है क्यूंकि माँ हमारे ह्रदय में है, हमारी आत्मा है, सदैव हमारे साथ है.
अपने आसपास नजर उठाकर देखिये, सैकड़ों बेटे अपनी माँ के लिए हर रोज बीवियों से झगड़ लेते हैं, मदर्स डे मनाने वालों की तरह मातापिता को वृद्धाश्रमों में धक्का नहीं देते.!
हमारा देश भारत ही विश्व का एकमात्र देश है जहाँ राष्ट्र को भारत माता कहा जाता है और वन्दे मातरम् कहकर माँ को सर्वोच्चता दी जाती है.
हमारे सनातन धर्म ने हमें यह संस्कार दिए हैं कि हम माता पिता के साथ रहकर उनकी सेवा करें|
हमारे धर्म ग्रंथों में माँ को स्वर्ग से बढ़कर बताया गया है, इसी सन्दर्भ में कुछ सूक्तियां अवश्य पढ़िए…
रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से ‘माँ’ को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। वे कहते हैं-
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’
(अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।)
महाभारत में जब यक्ष धर्मराज युधिष्ठर से सवाल करते हैं कि ‘भूमि से भारी कौन?’ तब युधिष्ठर जवाब देते हैं-
‘माता गुरुतरा भूमेरू।’
(अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।)
इसके साथ ही महाभारत महाकाव्य के रचियता महर्षि वेदव्यास ने ‘माँ’ के बारे में लिखा है-
‘नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।’
(अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।)
तैतरीय उपनिषद में ‘माँ’ के बारे में इस प्रकार उल्लेख मिलता है-
‘मातृ देवो भवः।’
(अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।)
संतों का भी स्पष्ट मानना है कि ‘माँ’ के चरणों में स्वर्ग होता है।’ आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी कालजयी रचना ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के प्रारंभिक चरण में ‘शतपथ ब्राह्मण’ की इस सूक्ति का उल्लेख कुछ इस प्रकार किया है-
‘अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।’
(अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।)

सुदेश चंद्र शर्मा

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