नौशाद का मन तो पूरी तरह संगीत में बसता था

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पुण्यतिथि   नौशाद

पूरा नाम नौशाद अली
जन्म 25 दिसंबर, 1919
जन्म भूमि लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 5 मई, 2006
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार
मुख्य रचनाएँ ‘प्यार किया तो डरना क्या..’, ‘ओ दुनिया के रखवाले..’, ‘मधुबन में राधिका नाचे रे..’ आदि
मुख्य फ़िल्में बैजू बावरा, मुग़ल-ए-आज़म, अनमोल घड़ी, शारदा आदि।
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फालके पुरस्कार, पद्म भूषण, लता मंगेशकर सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फ़िल्मों में ही संगीत दिया।
घरवालों का मुख्य काम था मुंशीगीरी, लेकिन बालक नौशाद का मन तो पूरी तरह संगीत में बसता था। जब वे नौ साल के थे, तब लखनऊ के अमीनाबाद के मुख्य बाज़ार की एक दुकान, जहाँ वाद्ययंत्र बिकते थे, के क़रीब वे रोज जाने लगे। जब कई दिनों तक ऐसा हुआ, तो मालिक ने एक दिन पूछ ही लिया। बातचीत के बाद नौशाद ने वहाँ काम करना स्वीकार लिया। उनका काम हुआ दुकान खुलने के समय से लेकर अन्य स्टाफ के आने से पहले की साफ-सफाई। नौशाद को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी। वे रोज समय से आते और दुकान खुलवाकर सभी वाद्ययंत्रों की अच्छी तरह सफाई करते और उन्हें जी भर कर छूते। कुछ वक्त तो ऐसे ही बीत गया।
एक दिन दुकान खोलने वाले स्टाफ ने नौशाद से कहा, भइया.., तुम जब तक साफ़ सफाई करो, मैं तब तक चाय पीकर आता हूं। नौशाद ने कहा, जी ठीक है। वे उधर गए, नौशाद ने मौका देखकर वाद्ययंत्रों पर हाथ आजमाना शुरू कर दिया। एक दिन उस साज पर तो दूसरे दिन दूसरे और फिर तीसरे दिन तीसरे साज पर..। इसी तरह हर रोज़ स्टाफ चाय पीने जाता और नौशाद रियाज़ में लग जाते। यह रोज का काम हो गया। यह सब महीनों तक चला।
एक दिन वह भी आया, जब मालिक समय से पहले आ धमका और नौशाद हारमोनियम बजाते पकड़े गए। नौशाद डरे हुए थे, उनकी हालत खराब थी। ठंड के समय में पसीना आ निकला था, लेकिन मालिक ऊपर से गुस्सैल बना रहा, वह अंदर से खुश था। पूछताछ के बाद अंत में मालिक ने वह पेटी यानी हारमोनियम नौशाद को दे दी और कहा, अच्छा बजाते हो, खूब रियाज़ करना..। नौशाद जी हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। पहली फ़िल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फ़िल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्याबल से कहीं आगे होती है। भारतीय सिनेमा को समृद्ध बनाने वाले संगीतकारों की कमी नहीं है लेकिन नौशाद अली के संगीत की बात ही अलग थी। नौशाद ने फ़िल्मों की संख्या को कभी तरजीह नहीं देते हुए केवल संगीत को ही परिष्कृत करने का काम किया।आज भी “मन तड़पत हरि दरशन को आज” सुनने वाले श्रोता संगीत की गहराई अनुभव करते हुए समाधि की स्थिति में पहुँच जाते हैं।

सुदेश चंद्र शर्मा

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