आनासागर तेली और माली समाज के लोगों के हक़ों की हत्या के बाद बिकने को तैयार ‼️

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* ख़तरनाक ब्लॉग

* ज़मीन खातों में किसी के बाप दादाओं की होती रहे ! दादाओं की दादागिरी से हो रही है उनके बाप दादाओं की!

* बिना मुआवज़े की रस्म अदायगी से ए डी ए के नाम खुल गया “म्यूटेशन”!!बिना मालिकों की सहमति के बना दिया गया “पाथ- वे”

 * टापू के आली जनाब टीपू सुल्तान!! बाहुबली नेता,शीर्ष अधिकारियों और बदनाम चेहरों को साथ लेकर हड़पना चाहते हैं पूरा आनासागर!

*पहले ज़मीन पर क़ब्ज़ा! फिर पानी पर!और अब वेट लेंड बनाम कृत्रिम ज़मीन पर!

               *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                    *आनासागर किसी के बाप का है क्या❓ यह सवाल कोई अगर मुझसे पूछे तो मैं कहूंगा हां !! वह शहर के तेली और माली समाज के सैकड़ों लोगों का है ।और बाक़ायदा है ।सबूतों के साथ है। ठसके के साथ है ।
                      *फिर मुझसे अगर कोई पूछे कि क्या किसी के बाप की ज़मीन पर कोई अनाधिकृत रूप से क़ब्ज़ा कर सकता है❓ तो मैं कहूंगा कानून के हिसाब से तो नहीं! मगर बाहुबली और रसूखदार लोग चाहें तो किसी के बाप की ज़मीन पर क्या ताजमहल पर भी क़ब्ज़ा कर सकते हैं‼️
                      *तो दोस्तों!! बेवकूफी वाले ये सवाल पिछले कई सालों से आना सागर को लेकर पूछे जा रहे हैं‼️ आनासागर जब तक भरा हुआ है सिंचाई विभाग और मत्स्य विभाग का है…. मगर उसका जो हिस्सा सूखा हुआ है वह तेली व माली समाज के खातेदारों का है ….लेकिन इस पर नाजायज़ क़ब्ज़ा किए जाने का सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है। तबसे जबसे “सिटीजन काउंसिल संस्था”के आह्वान पर तत्कालीन ज़िला कलेक्टर श्रीनिवासन ने अपने समय मे सागर में खुदाई का काम शुरू किया गया था।
                          *इतिहास गवाह है कि आनासागर पूरी तरह सूख गया था! उस समय भी बाप दादों की ज़मीन के हक़दारों को पीछे धकेल कर खुदाई के नाम पर इसे श्रमदान से गहरा किया गया।
                         *बहुत प्यार उमड़ा था तब दिग्गज पत्रकार दीनबंधु चौधरी जी का!  उनके भागीरथी प्रयासों से पूरा अजमेर हर सुबह गैंती, फावड़े और तगारी लेकर आना सागर पहुंच जाता था। हज़ारों टन मिट्टी जिसके मालिक माली और तेली थे, से बिना अनुमति लिए आना सागर की मिट्टी को न केवल निकाला गया बल्कि ट्रैक्टरों से दूर दराज़ क्षेत्रों तक पहुंचा दिया गया। जो लोग इसके मालिक थे उनसे अनुमति लेना भी उचित नहीं समझा गया। उनकी महानता रही कि ज़मीन खोद कर ले जाने का उन्होंने विरोध नहीं किया।
                     *शायद वो आने वाले समय मे अपनी ज़मीन पर ख़ूबसूरत झील का सपना देख रहे होंगे।
                *झील ख़ुद गई।बहुत बड़ा श्रम यज्ञ हो गया मगर इसी के साथ ‘टापू..’ ओह सॉरी टीपू सुल्तान का युग प्रारम्भ हो गया।
                 *ज़मीन को जब खोदा जा रहा था तब ही उसे बड़ी दूरदर्शिता के साथ झील के बीचों बीच मलबे के ढेर में तब्दील भी किया जा रहा था।टापू के रूप में।यज्ञ रंग लाया।इंद्र देवता ने झील को लबालब भर दिया।टापू तैयार हो ही चुका था।लोग चीख़ते रहे कि ये टापू हमारे बाप दादाओं की ज़मीन पर बना है।नाजायज़ है मगर इस पर क़ब्ज़ा संस्था विशेष का बना रहा। इस तरह किसी के बाप दादा की ज़मीन “किसी के” बाप दादा की हो गई।।
                   *फिर ये ज़मीन संस्था ने एक धुरंदर को किराए पर दे दी। किराया दिया जाता रहा और इस बीच धुरंदर ने संस्था को भ्रम में रखकर ज़मीन की अपने नाम रजिस्ट्री भी करवा ली। मेरे हिसाब से संस्था को तो अभी तक इसका भान भी नहीं है।
                 *ज़मीन हथियाने का खेल यहाँ भी ख़त्म नहीं हुआ। अब तक क़ब्ज़ा मिट्टी पर था अब खेल पानी हथियाने का शुरू हो गया। इसके लिए नावों के ठेके का खेल शुरू हो गया। ज़मीन किसी की ,पानी किसी का मगर क़ब्ज़ा टीपू सुल्तान का। पानी पर व्यवसाईक खेल शुरू हो गए।शहर के माफियाओं को पार्टनर बना लिया गया। नावों का ठेका हुआ तो पानी भी टीपू का हो गया।टापू पर बिना गंदे पानी और कचरे की निकासी का उचित प्रावधान किये रेस्टोरेंट बना लिया गया । कमरों का निर्माण कर लिया गया। नावो से आने-जाने से कमाई का सिलसिला शुरू हो गया ।
                 *इधर स्मार्ट सिटी योजना आ गई ।माफ़ियाओं के अच्छे और आनासागर के और बुरे दिन लेकर।  स्मार्ट अधिकारियों ने आनासागर के आसपास की आस पास की ज़मीनों को हथियाना शुरु कर दिया।
              *वही लोग जो टीपू सुल्तान के यार थे स्मार्ट सिटी योजना के अधिकारियों से जुड़ गए। ज़िले के एक बहुत बड़े नेता के चिलगोजे कहे जाने वाले इन लोगों ने हर आने वाले  जिला कलेक्टर को निर्देशित करना शुरू कर दिया।गौरव गोयल! फिर विश्वमोहन!फिर राजपुरोहित सभी को नेता जी के प्रभाव में ले आया जाता रहा।ज़िला प्रभारी अधिकारी देथा भी इनके ख़ास होते रहे। जिले के दिग्गज मंत्री की अनुकंपा से भू माफियाओं ने तहलका मचा दिया।
                    *आनासागर के आसपास की सूखी ज़मीन जो किसी के बाप की दादाओं की थी पर ,सरकारी मदद से कब्जे किए जाने लगे। उन की खरीद-फरोख्त होने लगी।आस पास टीपू सुल्तान और उनके दोस्तों ने होटल्स बना लीं।मॉल्स बना लिए। आशियाने बना लिए। और तो और इस सुल्तान ने वैशाली नगर पेट्रोल पंप क सामने बने ‘पाथ वे’ से अपनी अनासागर की ही कब्ज़ाई ज़मीन का रास्ता तक निकाल लिया और उस ज़मीन पर आने जाने क लिए इस कथित “पाथ वे” पर इंसानों की जगह वाहन दौड़ते हुए देखे जा सकते हैं।
                   *सरकार ने जो ज़मीन अवैध रूप अवाप्त कर ली थीं अब उन ज़मीनों को अवप्ति से निकाल कर बेचे जाने का खेल शुरू हो चुका है।
                          *जो ज़मीन खातेदारों की है। उनके खातों में बोल रही हैं। उनको अब अवाप्त कर मुआवजे की प्रक्रिया चल रही है।
                        *घोर बात तो ये है कि ज़मीन का मुआवजा चुकाए बिना एडीए के भ्रष्ट अधिकारियों ने म्यूटेशन खुलवा लिया है ।
                     *स्मार्ट सिटी के कुछ हरामी अधिकारियों ने किसी के बाप दादाओं की ज़मीन वालों को ठेंगा दिखाकर भू माफियाओं की तर्ज पर “पाथ वे” बना दिया है।
                    *झील संरक्षण और भूमि का अवार्ड जारी होने के बावजूद खातेदारों को मुआवज़ा नहीं दिया गया है ।भूमि अवाप्ति अधिकारी खातेदारों की ज़मीन का कब्जा तक नहीं ले सके हैं लेकिन सारे कानूनों का गला घोट कर रख दिया गया है ।सारे कानूनों के पलीता लगा कर खातेदारों की ज़मीन पर निर्माण कर दिए गए हैं। अब राज्य सरकार से 80 करोड़ 28 लाख रुपए   अनुदान मांगा जा रहा है।
                           *बेचारा आनासागर!बेचारे बाप दादाओं की ज़मीन के असली हक़दार !नक़ली दादाओं के गिरोह के आगे निरीह और निहत्थे खड़े हैं। ख़बर मिली है कि नए ज़िला कलक्टर अंशदीप जी ने इस टीम (गिरोह नहीं) के एक मज़बूत पिलर को वापस अपने मूल विभाग में भेज दिया है।अविनाश शर्मा का वापसी टिकिट आप मेरे एफ बी अकॉउंट पर देख सकते हैं।
                    *मैं जानता हूं।मुझे पता है कि मेरे आज के ब्लॉग से मेरे कई हमदर्द दुश्मन मुझ को धमकियां देंगे ।मुझे तरह-तरह से खामोश रहने की हिदायतें देंगे ..और वह सब कुछ करेंगे जो उनके हाथों में है….मगर मैं आज फिर कह दूं कि अगर मेरी मौत कुत्तों के काटने से लिखी है तो वह कुत्तों के काटने से ही होगी।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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