आपका मल दुनिया बचा सकता है। शरीर से निकलने वाले मल-मूत्र की बात आते ही अक्सर लोग नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं। कचरे के तौर पर ही नहीं बल्कि बातों में भी इसे अनहाइजीनिक (गंदा) समझा जाता है।
लेकिन, हमारे शरीर से निकला ये कचरा बहुत काम का है. ये इतना शक्तिशाली है कि ये इंसान का भविष्य बचा सकता है. आपको बताते हैं कैसे- औसतन एक व्यस्क हर साल 91 किलो मल और 730 लीटर मूत्र विसर्जित करता है. लेकिन, उसका क्या होता है, क्या उसका इस्तेमाल किया जा सकता है?
इसका इस्तेमाल आज ही नहीं बल्कि प्राचीनकाल से ही होता आ रहा है. प्राचीन रोम में मानव अपशिष्ट (मल-मूत्र) को बर्बाद नहीं किया जाता था. अनुपचारित मल को बाग में खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. वहीं, मूत्र का उपयोग कपड़े के निर्माण में होता था.
इंग्लैंड के राजा हेनरी आठवें (सन् 1509 से 1547) के समय पर ‘ग्रूम आॅफ द स्टूल’ देश के अहम पदों में से एक था. इस पद पर मौजूद व्यक्ति राजा की नित्य क्रियाओं में मदद करता था. उसे राजा का काफी नजदीकी माना जाता था.
गॉन्ग किसान (मल के बर्तन/हौदी खाली करने वाले) अपशिष्ट को रात में ही खाली करके स्थानीय किसानों को बेच देते थे. मूत्र को इकट्ठा करके लेदर को मुलायम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.
हम क्या कर सकते हैं
तो इस तरह हम भी मल-मूत्र के उपयोगी निपटान को लेकर अपने पूर्वजों से सीख ले सकते हैं. ये हमारी कई मौजूदा समस्याओं का समाधान दे सकता है.
सबसे पहले बात करते हैं हमारी ऊर्जा जरूरतों की.
माना जाता है कि पेट की ठीक से सफाई के लिए फाइबर युक्त चीजें ज्यादा खानी चाहिए. इससे कब्ज की समस्या नहीं होती.
यानी ये एक ऐसा संसाधन है जिसकी आपूर्ति हमेशा बनी रह सकती है. ऐसे में ऊर्जा के लिए पानी, हवा या अन्य संसाधनों की आपूर्ति की निरंतरता से तुलना करें तो ये ज्यादा विश्वसनीय है.
सीवेज को संसाधित करने के बाद जो कीचड़ बच जाता है वो मीथेन पैदा करने के लिए एक अच्छे कच्चा माल के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है.
यहां तक कि आधुनिक उपचार संयंत्रों में इसमें बैक्टीरिया मिलाकर इससे बायोगैस बनाई जाती है जो घरो में पाइप के जरिए पहुंचाई जाती है या गाड़ियों में ईधन के तौर पर इस्तेमाल होती है. ये पेट्रोल या डीजल के मुकाबले कहीं ज्यादा स्वच्छ ईंधन है.
इस तरह हम मल के जरिए पेट्रोल, डीजल और एलपीजी पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं. इससे जहां मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम पड़ेगा वहीं, ये पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन को भी कम करेगा.
मूत्र कितना उपयोगी
इसी तरह मूत्र भी इंसान के लिए फायदेमंद हो सकता है. दरअसल, दुनिया का 72 प्रतिशत पानी कृषि में इस्तेमाल होता है. आने वाले समय में बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन पानी की मांग को और बढ़ाएंगे.
एक दशक में कुछ देशों में ऐसी भी स्थिति हो सकती है कि पानी की कमी के कारण लोग वो जगह छोड़कर ही चले जाएं.
ब्रिटेन में प्रत्येक व्यस्क रोजाना 90 लीटर मूत्र विसर्जित करता है. इसके अलावा वो घर में उपयोग होने वाले 140 लीटर पानी को इस्तेमाल करके नाली में बहा देता है.
क्या इस पानी को रिसाइकल (पुनर्नवीनीकरण) करके पृथ्वी को खतरनाक सूखों से बचाया जा सकता है? इसका जवाब है, हां. इसके लिए तकनीक भी उपलब्ध है और पहले से ही इस्तेमाल हो रही है.
वर्तमान में इसराइल इस्तेमाल हो चुके 90 प्रतिशत पानी को रिसाइकल करके कृषि के लिए सलाना 56 हजार ओलंपिक स्विमिंग पूल जितना पानी बना लेता है.
अपशिष्ट का इस्तेमाल
कृषि की बात करें तो कोई भी सजीव वस्तु जीने के लिए फॉस्फोरस पर निर्भर करती है. लेकिन, अत्यधिक खनन के कारण ये तेजी से कम होता जा रहा है और इसकी दुबारा पूर्ति नहीं हो सकती. अमेरिका, चीन और भारत अपनी अगली पीढ़ियों में इसकी कमी का सामना कर सकते हैं.
खेती में फॉस्फोरस के बिना इंसान अभी के मुकाबले सिर्फ़ आधी पैदावार ही उत्पादित कर सकते हैं. इस मामले में हम अपने पूर्वजों का अनुकरण कर सकते हैं और अपशिष्ट का इस्तेमाल मिट्टी में कर सकते हैं. जैसे कंपोस्टिंग शौचालय या बायो-गैस उत्पादन से बचे पोषक तत्वों से भरपूर सूखे अवशेषों का इस्तेमाल करके.
शौचालय में बदलाव
शौचालय के पुनर्निर्माण से उन 4 अरब 20 करोड़ लोगों के लिए बड़ा बदलाव हो सकता है जिन्हें स्वच्छ शौच की सुविधा नहीं मिल पाती. बिना पानी के चलने वाले शौचालय हर दिन पांच साल से कम उम्र के करीब 800 बच्चों को मौत से बचा सकते हैं.
माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के सह संस्थापक बिल गेट्स ने कहा था कि शौचालय का बढ़ता बाजार ना सिर्फ़ जिÞंदगी बचाने वाला है बल्कि कारोबारी नजरिए से फायदेमंद भी है. साल 2030 तक शौचालय का बाजार छह अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा. हर डॉलर पर पांच डॉलर की कमाई होगी.
इसलिए आपका मल कोई हंसी या परेशानी की बात नहीं है. अगर हम अभी से काम करें तो इससे पृथ्वी को बचाया जा सकता है. (स्त्रोत- बीबीसी हिन्दी)