क्यों पिछड़ रहा है ब्राह्मण। यह बात आज एक बार फिर समझ में आ गई,जब विद्याधर नगर स्थित परशुराम सर्किल से भगवान परशुराम जी की शोभायात्रा शुभारंभ का कार्यक्रम हुआ। होना तो यह था कि ब्राह्मण समाज यहां यह संदेश देता कि वह अपने आप में बहुत मजबूत है, लेकिन कुछ लोगों ने राजनीतिक निहितार्थ अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए ब्राह्मण समाज के वरिष्ठजनों को नकारकर एक राजपूत नेता ( राजेंद्र राठौड़ ,जोकि विद्याधर नगर में खुद के लिए जगह बना रहे हैं ) और 1 वैश्य ( सीताराम अग्रवाल जोकि चुनाव हारे हुए हैं ) को मंच संभला दिया।
ऐसा नहीं है कि उस दौरान मौके पर ब्राह्मणों के वरिष्ठजन मौजूद नहीं थे, लेकिन कुछ लोगों को समाज को इस्तेमाल करके अपनी राजनीति करनी थी। ऐसे में उन्होंने सिर्फ ब्राह्मण समाज के वरिष्ठजनों को ही नहीं भुलाया, बल्कि भगवान परशुराम के नाम पर जयकारा लगाने की बात करने वाले भगवान परशुराम को राजपूत और वैश्य नेता के सामने भूल गए। जो लोग समाज को इस्तेमाल करके राजनीति करना चाहते हैं वे राजपूत और वैश्य नेताओं के साथ लेकर फोटो खिंचवाने में व्यस्त रहें। ऐसे में जिन भगवान परशुराम जी को सबसे पहले याद करना चाहिए था,वह राजपूत नेता के जाने के बाद याद आए और तब उनकी पूजा हुई, तब तक आधी शोभायात्रा आगे निकल चुकी थी। ऐसे में समझा जा सकता है कि ब्राह्मण समाज क्यों कर लगातार पिछड़ता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि कुछ लोग अपने राजनीतिक निहितार्थ स्वार्थों के चलते हमेशा समाज को इस्तेमाल करते हैं और जिस एक अच्छे अवसर को ब्राह्मण समाज अपनी ताकत दिखा कर भुना सकता था, उसके स्थान पर इस कार्यक्रम को विवादित बनाने का काम किया और ऐसा होने पर समाज के कई लोगों की तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। ऐसे में यदि ब्राह्मण समाज खुद को मजबूत मानता है और आगे बढ़ना चाहता है,तो यह मानना होगा कि उनके लिए सबसे पहले भगवान परशुराम जी हैं और उसके बाद समाज के वरिष्ठ लोग हैं और जिन लोगों को अन्य समाज के नेताओं के साथ राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने हैं,वह उनके साथ जाकर अपने राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करें,किसी को कोई परेशानी नहीं है,लेकिन ब्राह्मण समाज के मंच पर अन्य समाज के नेताओं को वह भी परशुराम जी की शोभायात्रा या आरती के दौरान आगे रखना समाज के लिए किसी भी स्थिति में सही नहीं माना जा सकता।