पहले कनक का अर्थ धतूरा है जिसे खाने से बुद्धि भ्रमित होती है किन्तु दूसरे कनक का अर्थ ‘सोना’ है जिसे देखने से ही बुद्धि भ्रमित होती है। चोर देख ले तो चोरी का भाव प्रबल होता है, ठग ठगने की सोचता है, कहीं पहन कर जाओ तो लुटेरे लूट लें, विरोध करो तो जान ले लें, परिवार के लोग देखें तो ईष्यार्लु हो जाएँ, घर में रखो तो चोरी का खतरा नींद भी न आये, मुसीबत में सोना बेचो तो सुनार खूब ठगता है, सरकार से रेड का खतरा, और तो सब छोडो जिस औलाद के लिए यह सब जोड़ा वह भी सोना पाने को व्याकुल होते हैं, उनसे भी खतरा पैदा होता है।
यह तथ्य स्वयं शंकराचार्य ने लिखा है की धन का ऐसा कुप्रभाव है कि अपनी संतान से भी भय हो जाता है। मुझे बचपन की एक सत्य घटना याद है। बहुत धनी की मृत्यु हुई, उसने बहुत ही कीमती अंगूठी पहन रखी थी जो आसानी से नहीं उतरी तो उंगली काट कर निकाली गई। मृत देह बाहर पडी है अन्दर बंटवारे होते देखे गए हैं। चेन और चूड़ी आदि उतार लेना तो आम बात है। उस पर बाद को स्वामित्व के झगडे भी आम हैं। गरीब गले मिलकर दु:ख बांटते है, अमीर धन बांटते हैं। सोने ने कटुता, विकार और जड़ता को ही बढाया है।
इतिहास उठा कर देख लो जितनी बुद्धि सोने के आकर्षण ने भ्रमित की उतनी किसी ने नहीं की। देश लुटे हैं, मंदिर टूटे है, आपसी बंधुत्व और अपनापन टूटा है -सब हुआ है लेकिन सोने का मोह टूटने की जगह बढ़ ही रहा है। एक और आश्चर्य की बात है की ज्यों-ज्यों सोना महँगा हो रहा है त्यों-त्यों इसके खरीदने वाले बढ़ रहे हैं।
सोने की दुकानों में पहले से कहीं अधिक भीड़ आपको देखने को मिलेगी। दिनों दिन मानसिकता और अधिक बौरा रही है, जैसे सोना नहीं अमरत्व खरीद रहे हैं। सोने के आकर्षण ने मनुष्य का जितना नैतिक, चारित्रिक हनन और आंतरिक पतन किया जो काले अक्षरों में लिखा है जिसकी चरम सीमा का प्रमाण आज हर पल घटित होती घटनायें साक्षी हैं। एक तोला सोने का लालच सभी चारित्रिक सिद्धांतों से भारी हो जाता है। मनसा,वचना और कर्मा तीनों ही तरह के पतन का कारण यह सोना ही है।
सीता को भी सोने की चमक वाला मृग ही चाहिए था, जिसे अपने राम को ही लेने भेज देती है। सोने की चमक और सोने का नाम ही मति भ्रमित करता है, कहीं सोने का भी मृग होता है क्या? हम सबका राम भी सोने में खो जाता है जो सीता रूपी शांति का हरण कर लेता है। हम भूल जाते हैं कि सोने की लंका ही होती है अयोद्ध्या नहीं। जलती भी सोने की लंका ही है। हिरण्य कश्यप जिसका अर्थ है हिरण्य (सोना) कश्यप (तकिया ) और प्रहलाद की कथा भी सर्व विदित है। कितनी बिडम्बना है कि बुद्ध और महावीर जो राजपुत्र हैं,स्वर्ण और वैभव त्याग कर सत्य और आत्मतत्व की खोज में, शाश्वत तत्व की खोज में वीतरागी बन गए। साईं बाबा जिनका दूर-दूर तक सोने से कोई संपर्क नहीं था, इन सबकी मूर्तियाँ सोने की बनी हैं। श्रद्धा का प्रतीक भगवान् भी सोने का ही बना दिया। जब की भगवान शब्द की यदि व्याख्या की जाए तो
भ –भूमि
ग –गगन
व –वायु
अ –अग्नि
न –नीर
इन पाँचों तत्वों के अधिष्ठाता का संयुक्त नाम भगवान है जिनकी सत्ता कण-कण, अणु-अणु में व्याप्त है।