सीबीएसई के नए पाठ्यक्रम में मुगलों के इतिहास को सीमित कर दिया गया है। अब मध्यकालीन भारत के विषय में छात्रों को सीमित जानकारी दी जाएगी। इसकी जगह पर उन्हें राष्ट्रवाद के नायकों और उन घटनाओं के बारे में ज्यादा पढ़ने को मिलेगा, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। पाठ्यक्रम में कितना बदलाव किया गया है, इस पर विस्तृत जानकारी तो तब मिलेगी जब पुस्तक छपकर लोगों के हाथ में आ जाएगी, लेकिन वामपंथी इतिहासकार अभी से इसे शिक्षा का भगवाकरण करार दे रहे हैं। सरकार पर लग रहे ये आरोप कितने सही हैं और इतिहास को पढ़ने का सही तरीका क्या होना चाहिए, इस बारे में जानकारों की अलग अलग राय है।
समग्र दृष्टिकोण आवश्यक
इतिहासकार जयप्रकाश वर्मा ने कहा कि वर्तमान में जो घटनाएं हमारे सामने घट रही हैं और जिनकी सत्यता से हम बहुत अच्छी तरह परिचित हैं, उनको पेश करने में भी एक दृष्टिकोण विशेष को ज्यादा प्रमुखता दी जा रही है। ऐसे में इस बात को स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि पहले भी जब घटनाएं घटी होंगी, तब उन्हें पेश करने के संदर्भ में भी सत्ता की मंशा के अनुरूप इस तरह की कोशिश की गई होगी।
लेकिन इतिहास पढ़ते समय हमें सभी तथ्यों-पक्षों को समझने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे हम घटना की सच्चाई तक पहुंच सकें। इस दृष्टि से विद्यार्थियों के सामने सभी दृष्टिकोण तथ्यों के साथ पेश किया जाना चाहिए, जिस पर चिंतन कर वे सही निष्कर्ष तक पहुंच सकें।
प्रोफेसर जयप्रकाश वर्मा उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि आज हमें बताया जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने 1199 ईसवी में आग के हवाले कर दिया था। इसमें बौद्ध और आयुर्वेद पर लिखी लाखों पुस्तकें तीन महीने से ज्यादा समय तक जलती रहीं। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि बख्तियार खिलजी एक आक्रमणकारी लुटेरा था। वह धन लूटने के लिए भारत आया था। उसका पुस्तकों से क्या वास्ता? खिलजी को पुस्तकों को जलाने में भला क्या रुचि हो सकती थी?
यह ठीक वही काल था जब सनातन धर्म के कुछ लोगों को बौद्ध धर्म से अपने ऊपर खतरा महसूस हो रहा था। वे जगह-जगह बौद्ध धर्मावलंबियों का विरोध कर रहे थे। कुछ इतिहासकारों का मत है कि बौद्ध धर्म की पुस्तकों को जलाकर उनका इतिहास नष्ट करने की कोशिश इस धर्म विशेष के कुछ लोगों द्वारा ही की गई थी, जबकि इसका आरोप खिलजी पर मढ़ दिया गया। उन्होंने कहा कि इस तरह किसी इतिहास का अध्ययन करते समय समकालीन समाज का पूर्ण अध्ययन हमें घटना को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है।
संस्कृत की प्राचीनता पर भी प्रश्न
उन्होंने कहा कि इसी तरह संस्कृत को सबसे पुरानी भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन यह समझने की कोशिश की जानी चाहिए कि सम्राट अशोक के शिलालेखों तक कहीं संस्कृत भाषा दिखाई नहीं पड़ती। इसका सबसे पहला प्रामाणिक साक्ष्य जूनागढ़ अभिलेख में दिखाई पड़ता है, जो दावे के विपरीत बहुत बाद के समय का है। ऐसे में संस्कृत की प्राचीनता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े होते हैं। इसीलिए किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इतिहास को समग्रता के साथ पढ़ा जाना चाहिए और सरकारों का दायित्व है कि वे विद्यार्थियों के सामने संपूर्ण तथ्य रखें।
हिंदू-मुस्लिम एकता
सांप्रदायिकता फैलाने और भारत के विभाजन का दोष अकसर मुसलमानों के सिर मढ़ दिया जाता है। लेकिन इस बात को ध्यान रखना चाहिए कि आधुनिक इतिहास में 1857 तक हिंदू-मुस्लिम विवाद की कोई बड़ी घटना नहीं घटी थी। हिंदू-मुस्लिम सभी साथ मिलकर रह रहे थे और आजादी के आंदोलन में अपनी भूमिका निभा रहे थे। 1857 की क्रांति की सफलता के बाद ही अंग्रेजों को लगने लगा था कि यदि इस तरह का कोई और विद्रोह हुआ तो भारत पर शासन करना मुश्किल हो जाएगा।
ऐसे में जब 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई और इसके नीचे हिंदू-मुस्लिम सभी इकट्ठे होने लगे, तब अंग्रेजों को अपने साम्राज्य पर खतरा महसूस होने लगा। इसके बाद ही उन्होंने एक साजिश के तहत मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी। मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें अलग देश का सपना दिखाना शुरू कर दिया। इसके लिए पूरी रणनीति के साथ खुलकर पक्षपात भी किया जाने लगा जिससे हिंदुओं के मन में उनके प्रति द्वेष पैदा हो सके।
सरकार की मंशा पर सवाल
राजधानी कॉलेज, दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर सिद्धेश्वर शुक्ला ने अमर उजाला से कहा कि इतिहास बेहद संवेदनशील विषय होता है। वर्तमान की किसी समस्या का हल खोजने के लिए हमें उसके इतिहास को बेहद बारीकी से समझना जरूरी होता है। इतिहास हमें इसी काम में मदद करता है। यही कारण है कि इतिहास के तथ्यों को बेहद सावधानी के साथ रखा और पढ़ा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मुगलकाल में भारत में भव्य निर्माण हुए। यह केवल तभी हो सकता था जब देश आर्थिक तौर पर बेहद मजबूत हो। इससे यह साबित होता है कि मुगलकाल में भारत की आर्थिक स्थिति पश्चिम के आज के विकसित देशों से कहीं ज्यादा बेहतर थी। उन्होंने कहा कि केवल सीबीएसई के सिलेबस से हटा देने से मुगलों का योगदान भारत के इतिहास से गायब नहीं किया जा सकता।
नए तथ्यों से नए इतिहास का निर्माण
प्रोफेसर कपिल कुमार कहते हैं कि इतिहास तथ्यों के आधार पर चलता है। किसी भी घटना के संदर्भ में नया तथ्य सामने आने पर पूरे इतिहास का संदर्भ बदल जाता है। विभिन्न कारणों से कई बार इतिहास के तथ्य भी लोगों के सामने नहीं आने दिए जाते। लेकिन बदली परिस्थितियों में उन तथ्यों को जनता के सामने लाया जाना आवश्यक है।