काक:, काग, कागा, कागला, कौआ, कोवा, कव्वा सब एक ही पक्षी के पर्याय हैं । अंग्रेजी में यह क्रो कहलाता है। हमारे लिए यह जाना पहचाना पक्षी है । काग से ऋषि कागभुसुंडि की भी याद आती है जिन्होंने अपनी सुमधुर आवाज से रामायण पाठ किया और पक्षीराज गरुड़ महाराज श्रोता बने थे ।
कौआ हमारे सामाजिक जीवन में रचा बसा पक्षी है । इसका रंग काला होता है । कौए और कोयल की तुलना मनुष्य सदियों से करता आया है । पता नहीं क्यू्ँ मनुष्य को इससे एलर्जी है कि कोयल की मीठी कूक सुनते ही उसके अवचेतन मन से कोए की काँव काँव का शोर सुनाई देने लग जाता है । यह एक सच्चाई है कि जहाँ कोयल की मीठी कूहुक हमारे मन को शांति प्रदान करती है वहीं पर कौए की काँव काँव एक वितृष्णा पैदा करती है मन में । आप गर्मियों की भरी दोपहर में अपने घर आँगन या अमराई में नींद की झपकी ले रहे हैं और पास में ही पेड़ की डाल पर बैठे कौए की अवांछित काँव काँव आपके कान में कड़वे तेल की भांति महसूस होती है । आप तुरंत उसको मन से गाली देते हुए पत्थर फैंकते हुए उड़ा देते हो ।
कौआ और कोयल एक ही प्रजाति के पक्षी हैं । और तो और कोयल का प्रजनन भी ग्रीष्म ऋतु में होता है, कोयल के बच्चे सयाने हो कर उड़ने लगते हैं । और कोयल द्वारा बनाये गये घौंसले में ही कौआ अपने अंडे देता है । कौए के बच्चे वर्षा ऋतु में उड़ने लायक हो जाते हैं । भादों और आश्विन मास में कौए खूब शोर मचाते हैं, आकाश में इनके झुंड खूब उड़ान भरते हैं । सर्द ऋतु में पहाड़ी कौए भी नीचे मैदान में उतर आते हैं । पहाड़ी कौआ थोड़ा बड़े साइज़ का होता है।
कौआ सारे भारतीय उप महाद्वीप में पाया जाता है । इसके अतिरिक्त अफ्रीका, सुदूर पूर्व, मध्य एशिया, युरोपियन देशों में भी मिलता है । उत्तरी अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भी इसकी प्रजाति पाई जाती है । इसकी अनुकूलनता बेमिशाल है, हर मौसम में अपने को ढ़ाल लेता है।
कौआ सर्वभक्षी है अर्थात वह रोटी, चावल, दही खाने के साथ माँसाहारी भी है । चुहा, मेंढक, मछली व मृत पशु उसकी पहली पसंद है । वह हमारे लिए सफाई करने वाले (सक्वेंजर) का काम भी करता है । वह हमारा मित्र पक्षी है । वह खड़ी फसल को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता, फिर भी अन्य पक्षीयों को भगाने के लिए किसान ‘कागभगौड़े’ अथवा ‘कनकव्वे’ को खड़ा करते हैं ।
कौआ चुस्ती फुर्ती में अपना विशेष स्थान रखता है । साथ ही वह अपना पेट भरने को हमेशा क्रियाशील रहता है । ‘काक-चेष्टा, बको ध्यानम् …..।’ आप गुलेल से चिड़िया, बटेर व तीतर को मार सकते हो पर कौए का आपका पत्थर, गुलेल कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि एक तो उसकी पैनी नजर आपको निशाना लगाते हुए देख लेगी और दूसरे वह फुर्ती से अपने को आपके अस्त्र से बचा लेगा ।
कहावत प्रसिद्ध है कि पक्षीयों में कव्वा और मनुष्यों में नव्वा सबसे बुद्धिमान होता है । आपने कौए की चतुराई की अनेकों किस्से कहानियां भी पढ़ी होंगी । ‘प्यासा कौआ’ ‘लोमड़ी और कौआ’ पंचतंत्र की विशेष कहानियां हैं । कौए के साथ हमारे सामाजिक जीवन के कई अच्छे व बुरे लोकापवाद भी जुड़े हैं । कहते हैं कि कौआ आपके घर की मुंडेर पर बैठा काँव काँव करता है तो आपके घर कोई मेहमान आने वाला है । कुछ लोग इसको अशुभ और अपशकुनी भी मानते हैं । हाँ, पितृ-पक्ष में कौए की खीर मालपुए से खूब खातिर की जाती है । कौआंश हमारे पितरों तक पहुंचता है, ऐसी मान्यता है
कौए को लेकर हमारे सामाजिक जीवन और साहित्य में अनेक प्रसंग प्रचलित हैं । एक और किस्सा – अकबर बादशाह ने एक दिन बीरबल से एकाएक सवाल कर दिया :
“बताओ बीरबल, दिल्ली में कितने कौए हैं ?”
बीरबल ने बिना सोचे ही कह दिया :
“हुजूर दस हजार आठ सौ चौबीस हैं ।”
अकबर : “कैसे कह सकते हो ?”
बीरबल : “हुजूर शुमारी (गणना) करवा कर देख लीजिये ।”
अकबर : “अगर कुछ ज्यादा हुए तो ।”
बीरबल : “हो सकता है इसी बीच कुछ मेहमान बाहर से आ गये हों ।”
अकबर :”अगर कम निकले तो ?”
बीरबल : “हो सकता है इनमें से कुछ बाहर मेहमानी में उड़ गये हों । पर मौजूदा हैं इतने ही।”
बादशाह और अन्य दरबारी बीरबल की हाजिरजवाबी के कायल हुए ।
हमारी हिंदी फिल्मों में कौए पर कई प्रसिद्ध और सदाबहार गीत भी लिखे गये हैं । फिल्म चिराग का वह गीत ‘भोर होते कागा पुकारे काहे राम…
कौन परदेसी आयेगा मेरे गाम’ आज भी कर्णप्रिय है । फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ का गीत ‘माए नी माए, मुंडेर तेरे पे बोल रहा है कागा ! जोगन हो गई ….’
और फिल्म बॉबी का ‘झूठ बोले, कव्वा काटे…’ कौन भुला सकता है ?
उपर हमने कौए के जीवन के विभिन्न पहलुओं को देखा । कौआ कभी अपना स्थाई घौंसला नहीं बनाता । इसलिए आँधी तुफान और मौसम की मार का भी उसे सामना करना पड़ता है और अक्सर खराब मौसम में वह मारा भी जाता है । कई बार बिजली की तार पर लटकते कौए को हमने देखा है । कई बार कौआ बंदरों से रार ठान लेता है । कुत्ते व बिल्ली से उसकी दुश्मनी भी हो जाती है और दोस्ती भी । इस सर्वगुण संपन्न मित्र पक्षी में एक ही अवगुण विधाता ने दिया और वह है इसकी कर्कश और अनचाही काँव काँव । तभी तो कहा गया है : ‘काक: काक:, पिक: पिक: !!”