नक़ली नेताओं के नाम असली ब्लॉग‼️

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*आनासागर में मुर्दा मछलियों की ये बदबू ! कहीं इन नक़ली नेताओं के जिस्मों से तो नहीं आ रही❓

*देवनानी!भदेल!ब्रजलता हाड़ा! की सियासत कहीं जलकुंभी में तो साँसें नहीं ले रही❓

*जनता के धैर्य की नहीं आपके ईमान की परीक्षा ले रही हैं ये मुर्दा मछलियाँ‼️

*अगले चुनावों में एक -एक मरी हुई मछली तुमको वोट देने आएगी‼️देखते रहना

             *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                 *आनासागर आंसू बहा रहा है और इसके आंसुओं का बहीखाता लंबे अरसे से मैं अपने ब्लॉग्स में लिखता आ रहा हूँ। जितना इस झील के दर्द को मैंने अपने क़लम से लिखा!  शायद ही किसी पत्रकार ने लिखा हो ! इस ऐतिहासिक झील पर, हर पल हुए आक्रमण को मैंने आप लोगों के सामने समय समय पर प्रस्तुत किया।आज फिर कर रहा हूँ।
                      *स्मार्ट सिटी के नाम पर सीमेंट और सरियों का जिस तरह जाल बिछाया गया ! जिस तरह बाहर से करोड़ों टन मिट्टी डालकर इसके पानी पर कृत्रिम ज़मीन बनाई गई! पाथवे के नाम से आना सागर के पानी की जिस वहशियाना अंदाज़ में हत्या की गई!  सब का नज़ारा मैं आपके सामने पेश करता रहा! आनासागर की हत्या के सारे हत्यारे  किरदारों को आपके सामने  कटघरे में खड़ा करता रहा…. मगर इलायची बाई के इस शहर में!  कोई पर्यावरणविद!  कोई बुद्धिजीवी ! कोई राजनेता! कोई अधिकारी! कोई सामाजिक संस्था सामने नहीं आई ।
                  *आना सागर में हज़ारों बार!! करोड़ों मछलियां तड़प तड़प कर दम तोड़ती रहीं! मच्छरों की आबादी से आसपास के लोगों का जीना हराम होता रहा!  एशिया का सबसे बड़ा ट्रीटमेंट प्लांट आनासागर के पानी को साफ और स्वच्छ करता रहा!  हर महीने लाखों रुपए लगाकर काई और जलकुंभी हटाई जाती रही ! करोड़ों रुपए की बंदरबांट होती रही !! मगर किसी भागीरथ ने अजमेर की झील को आकर नहीं संभाला!*
                  *आना सागर की चीख़ और मेरे ब्लॉग के दर्द को किसी ने महसूस नहीं किया !!! मगर अब अचानक जागृति आ गई है!!!
                *भारतीय जनता पार्टी के बरसों से अजमेर की सीटों पर काबिज़ नेताओं के दिल पिघलने लगे हैं । विधायक वासुदेव देवनानी और अनीता बधेल के कलेजे मुर्दा मछलियों की लाशों और उनकी बदबू को महसूस करने लगे हैं ! नगर निगम की मेयर ब्रजलता हड़ा के हाडों में कंपकपी छूटने लगी है! हर तरफ से आना सागर के लिए चिंताओं के झरने फूट रहे हैं! आखिर यह चमत्कार कैसे हो गया❓
                   *जिंदा मछलियों की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया मगर उनके मरने से लाशों पर राजनीतिक जाज़म बिछाई जाने लगी है।
                   *मछलियों को कैसे जीवित रखा जाए इस विषय पर भारतीय जनता पार्टी का एकमात्र नेता धर्मेश जैन शुरू से रोता पीटता रहा! मगर किसी ने उसकी आवाज़ नहीं सुनी ! अब देवनानी !भदेल!  और न जाने कितने नेता आम आदमी को सड़क पर उतरने की बात कर रहे हैं ‼️
                      *जनता के कलेजे पर लंबे अरसे से सियासत की मूंग दलने वाले विधायक देवनानी, ने तो यहां तक कह दिया है कि जनता के धैर्य की परीक्षा न लें! वह टूट गया तो ग़ज़ब हो जाएगा !
               *अरे क्या खाक ग़ज़ब हो जाएगा ‼️मोटी खाल के नेताओं‼️ जब मछलियों को मारे जाने के लिए ज़िला प्रशासन ऑक्सीजन के सारे रास्ते बंद कर रहा था तब तुम्हारे धैर्य कहां चला गया था❓
                   *आज मछलियों की मौत पर मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हो!! जनता की जिम्मेदारियों को भुनाना चाहते हो!! जनता से धैर्य और जिला प्रशासन से कार्यवाही की  भीख मांगने वाले…………!!  तुमने अगर मछलियों की ज़िंदगी बचाने के लिए ये भीख मांगी होती तो मछलियों की दुआओं से तुम्हारी झोलियाँ भरी हुई होतीं !उनमें मुर्दा मछलियों की लाशें न होतीं! ज़रा बताओ ! कि अब तक तुमने मछलियों की लाशों को गिनने का इंतजार क्यों किया❓
                    *मेयर बृज लता  हाड़ा ने बड़ी चालाकी से अपनी जिम्मेदारी का दुशाला उतारकर मत्स्य विभाग और सिंचाई विभाग के कंधे पर रख दिया है!  उनकी पार्टी के नेता उनकी फीत उतारने के लिए बुरी तरह आमादा हैं।मानो ब्रजलता उनकी नहीं किसी और पार्टी की नेता हों!  समझ में नहीं आ रहा कि भारतीय जनता पार्टी की अंतर कलह और कहां जाकर खत्म होगी❓
                      *निगम की साधारण सभा में काश!! कोई विधायक!! सांसद आता और मछलियों की दुर्गंध का बखान करता मगर तब सब मछलियों के जालों को बिछाने की कूटनीति रच रहे थे! अब वे अपनी ही पार्टी की मेयर को इस जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं!*
               *मजेदार बात यह है कि भाजपा बोर्ड की मेयर ब्रज लता की खाल उतारने के लिए किसी कांग्रेसी नेता को आगे आने की ज़रूरत नहीं पड़ रही!  इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ही काफी है!
                           *अगले विधानसभा चुनावों में मरी हुई मछलियां वोटों में तब्दील होंगी !!! एक एक मुर्दा मछली एक एक वोट में ज़िन्दा होगी! जनता के जिस धैर्य की बात कर रहे हो न!  देखना बाहुबली नेताओं!!  चुनाव में यही धैर्य टूटेगा!! सब्र का इम्तहान होगा और जनता तुम्हें इस बार सबक देने में नहीं चूकेगी! पहली बात तो पार्टी सोच समझकर तुम्हें टिकट देगी!  अगर टिकट पाने में तुम कामयाब हो भी गए तो सियासत का ठप्पा इस बार तुम्हारे नामों के आगे नहीं लगेगा ! यह तय है! आनासागर का धैर्य टूट चुका है ! तुम्हार ईमान मुर्दा मछलियों की बदबू में बदल चुका है! अब आनासागर की बर्बादी ही तुम्हारा भविष्य लिखेगी।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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