मुख्यमंत्री गहलोत इच्छाधारी हैं!जब तक चाहेंगे सत्ता में रहेंगे‼️

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* सोनिया के पास रखा गया “इस्तीफ़ा” अब तक टाईप ही नहीं हुआ! ये बात अलग है!
* मज़हबी ज़हर समाज की रगों में और भ्रष्टाचार ख़ून में घोला जा रहा है!
* अलवर के पूर्व कलेक्टर रिश्वत लेते पकड़ लिए गए!बाक़ी ?
* गहलोत इसलिए सत्ता से नहीं हट सकते क्यों कि हलवा खाने और खिलाने में उनके यहाँ है पूरी सुविधा
              *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                   *राजस्थान के मुख्यमंत्री की राजगद्दी कहीं जाने वाली नहीं!  वे इच्छाधारी हैं! उन्हें प्रभु प्रदत्त सभी वरदान प्राप्त हैं!  सोनिया के पास  उनका इस्तीफा रखा है यह कहकर उन्होंने सिर्फ़ कांग्रेसी प्रजाति के नेताओं पर उपकार किया है, वरना उनका इस्तीफा तो कभी टाइप ही नहीं हुआ ।हस्तलिखित दस्तावेजों से उनका यूं भी साइन के अलावा कोई संबंध नहीं ।
                     *उनके द्वारा नालायक और निकम्मे घोषित पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा सोनिया गांधी से कई बार मुलाकात किए जाने पर मीडिया द्वारा उछाली गई है यह खबर ! कि शीघ्र ही उन्हें हटाकर मुख्यमंत्री का पद सचिन पायलट को दे दिया जाएगा !! बस इसी का जवाब देते हुए गहलोत ने साफ़ कर दिया है कि यह सब अफ़वाह है, जिसके पीछे कोई ठोस कारण नहीं!
                   *सचिन पायलट के प्रति आस्था रखने वाले लोग और कई मीडिया समूह अशोक गहलोत को शायद सोनिया गाँधी के हाथों का झुनझुना समझते हैं!  सचिन पायलट में यदि गहलोत से पंगा लेकर उन्हें परास्त करने की क़ुव्वत होती तो कभी का गहलोत जी को घर बैठा चुके होते!  कदम कदम पर गहलोत के व्यंग बाण सहन नहीं करते !
                   *सचिन पायलट और गहलोत में यही फर्क है कि सचिन पायलट ख़ुद कुछ नहीं कहते! अपने चिलगोज़ों से कहलवाते हैं ! गहलोत जवाब अपने चिलगोज़ों से नहीं दिलवाते बल्कि ख़ुद देते हैं!  इधर सचिन पायलट को गहलोत के विरुद्ध कोई टिप्पणी भी करनी होती है तो वे इतने बड़े फलक पर करते हैं कि सिर्फ़ इशारा ही काफी होता है ! उधर गहलोत साहब मुंहफट हैं।सभ्य शब्दों में इसे बेबाक़ भी कहा जाता है वह सीधे तौर पर टिप्पणियां करने में पीछे नहीं रहते ! जिस अंदाज़ में बाज़ारू शब्दों का इस्तेमाल सचिन के लिए वह करते आए हैं जगजाहिर है।
                  *गहलोत सही मायने में अपने बहुमत को बरक़रार रखकर इस अतिरिक्त विश्वास में हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से कोई नहीं हटा सकता ! ( जब तक वे स्वयं ना चाहें ) स्वयं सोनिया भी नहीं! वे जानते हैं कि उन्होंने सत्ता को अपने चरणों की दासी बना रखा है और दासी कभी बगावत नहीं करती!
                            *राज्य में कानून की धज्जियां उड़ रही हैं। भ्रष्टाचार राज्य में पहली बार इतने निम्न स्तर पर है। कलेक्टर तक रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं ! मज़हबी ज़हर फैलाने में भले ही वे अन्य राजनीतिक दलों से काफी पीछे हों लेकिन जिस तरह से वे एक समुदाय विशेष के लिए राजनीतिक पक्ष लेते नज़र आ रहे हैं ! इससे उनकी छवि दो पैसे की हो गई है। करौली के बाद भी वे पीछे नहीं हट रहे ।वे  समुदाय विशेष के साथ खड़े होकर 36 कौमों को साथ लेकर चलने का दावा कर रहे हैं जो पूरी तरह से नक़ली साबित हो चुका है।
                *दंगे होंगे!  तो कई लोग नंगे होंगे!  जब नेताओं के बीच पंगे होंगे! लोग लड़ेंगे नेता भले चंगे होंगे! दोस्तों !!जहां जहां होता है दंगा! मुसीबत में होता है तिरंगा!
                     *यहां आपको बता दूं कि जो कुछ मुल्क में अभी चल रहा है वह देश के लोकतंत्र को बदनाम कर रहा है ।
                 *दंगों से ही चुनाव आसानी से जीते जा सकते हैं ! यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो रही है और इसलिए दोनों तरफ से दंगों की देखरेख की जा रही है ।
                    *हम अंबेडकर जयंती मनाते हैं बाबा साहब की जय जयकार करते हैं ,मगर उनके बनाए गए संविधान की बेकद्री का कोई मौका नहीं छोड़ते !आख़िर यह सिलसिला कब तक चलेगा❓️
                   *दोस्तों अलवर जिले के निवर्तमान कलेक्टर पहाड़िया जी 5 लाख की रिश्वत लेते पकड़े गए !यह खिचड़ी का एक चावल माना जा सकता है! सच तो यह है कि जो पकड़ा गया वह चोर है, वरना प्रशासनिक अधिकारियों में रिश्वत लेने की बीमारी तो आम हो चुकी है। शायद ही कहीं कोई ईमानदार जिलाधिकारी हो ! रिश्वत का शौक तो हर अधिकारी के ख़ून में करवट लेने लगा है। इसी का परिणाम है कि सरकार द्वारा गरीबों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से जारी स्पष्ट आदेशों के बाद भी गरीबों को ही अपने मकान/ ज़मीन के पट्टे लेने के लिए महीनों भटकना पड़ रहा है। जो सर्वविदित है।
                    *अजमेर की स्मार्ट सिटी योजना को ही लीजिए ! इसके निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार के सरिए, बजरी और सीमेंट लगी हुई है। कितने ही जिला अधिकारी आए और चले गए !भ्रष्टाचार अपनी जगह कायम रहा ! क्या आप सोचते हैं कि अलवर वाले कलेक्टर की तर्ज पर यहाँ कोई रिश्वत नहीं ली जा रही❓️ यदि आप कहते हैं कि भ्रष्टाचार नहीं तो मुझे आपकी राय पर हंसी आती है।
                      *पूरे राज्य में गहलोत सरकार की छत्रछाया में भ्रष्टाचार चार पैरों से दौड़ रहा है!  चाहे कोई भी हो! राजनेता!अधिकारी! कर्मचारी! दलाल ! सब मौज़ उड़ा रहे हैं!  गहलोत सरकार को हटाने वाला है ही कौन ? वे जब तक चाहेंगे मुख्यमंत्री बने रहेंगे। इसी भ्रम में अफसरशाही मौज उड़ा रही है।
                   *दोस्तों अब मैं मेरा व्यक्तिगत आंकलन भी आपको बता दूँ कि मई में होने वाले कांग्रेस के चिंतन शिविर में राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन होना लगभग तय है। जादूगर जी की जादूगरी मुझे तो अब चलती नहीं दिख रही है। बाकी तो.

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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