कार नई है, कुछ खास काम नहीं

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कल मैं पत्नी की कार सर्विस के लिए ले गया था। कार नई है, कुछ खास काम नहीं था, बस सलाना सर्विस भर कराने की ज़रूरत थी, वो भी इसलिए कि कार सर्विस कंपनी से बार-बार फोन आ रहा था कि मैडम आपकी गाड़ी की सर्विस ड्यू है। टाइम पर सर्विस करा लीजिए, गर्मी शुरू हो रही है।
ये बात सही है कि गाड़ी की सर्विस टाइम पर करा लेनी चाहिए। साफ-सफाई के अलावा गाड़ी को जहां तेल-चिकनाई की ज़रूरत हो, उसे मिल जानी चाहिए।
संजय सिन्हा टाइम पर सर्विस स्टेशन पहुंच गए। मैं चाहूं तो कार और सर्विस कंपनी दोनों के नाम लिख दे सकता हूं और बता दे सकता हूं कि किस तरह हमारे देश में धांधली धंधा बन गई है। लेकिन मेरा इरादा फिलहाल उस भ्रष्टाचार की ओर इशारा भर करने का है, किसी कंपनी को घेरने का नहीं। लेकिन ये भी तय मानिए कि मेरी ओर से भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू की गई मुहिम के तहत किसी दिन मैं लिख ही दूंगा कि कार थी मारुति सुजुकी की और मैं गुड़गांव के एक सर्विस सेंटर गया था।
जैसे ही मेरी कार सर्विस स्टेशन पहुंची, एक लड़की सामने आई।
“सर, आपकी कार में बाईं ओर थोड़ा-सा पेंट का काम है। और पीछे बंपर में ये डेंट है।”
मैंने देखा, प्लास्टिक का पिछला बंपर थोड़ा दबा हुआ था। शायद किसी ने हल्के से मोटरसाइकिल से उसे छू लिया था। और बाइं ओर ब्लू पेंट पर थोड़ा सफेद रंग दिख रहा था। मैंने उस लड़की से पूछा कि क्या करना होगा इसके लिए?
“सर, बंपर चेंज होगा। पिछले दरवाजे को भी चेंज कर सकते हैं।”
हांय?  संजय सिन्हा चौंके। “इतनी छोटी-सी बात के लिए इतना कुछ? पर क्यों? ये जो ब्लू कलर पर थोड़ा-सा सफेद रंग दिख रहा है, उसे तो साफ करने के दौरान ही निकाला जा सकता है। और प्लास्टिक का ये बंपर? इसे तो मैंने ‘यू ट्यूब’ पर देखा है कि गरम पानी डाल कर आगे खींच लिया जा सकता है। इसके लिए इसे बदलने की क्या ज़रूरत है। इतना खर्च कराने की क्या ज़रूरत है?”
लड़की मुस्कुराई। “सर, आपकी जेब से कुछ नहीं जाएगा। सारा कुछ हम इंश्योरेंस में कवर करेंगे। आपके पास ज़ीरो डेप इंश्योरेंस है। जीरो डेप अर्थात शून्य भुगतान वाला इंश्योरेंस। आप गाड़ी पर हर साल जो प्रीमियम देते हैं न वो उसी में कवर हो जाएगा। हम इंश्योरेंस कंपनी से पूरा भुगतान ले लेंगे। आपकी गाड़ी नई हो जाएगी और पैसे भी नहीं लगेंगे।”
मैं हैरान था उस लड़की के ऐसा कहने पर।
“माना कि मेरी जेब से नहीं जाएगा, पर है तो ये गलत। बंपर में कुछ हुआ नहीं है। साइड में भी कुछ खास नहीं हुआ है। और आज भले इंश्योरेंस वाले भुगतान कर देंगे लेकिन अंत में प्रीमियम पर लोड तो मुझ पर ही पड़ेगा ही। इस तरह हर ग्राहक इंश्योरेंस का क्लेम बिना ज़रूरत लेता रहे तो इंश्योरेंस तो महंगा ही होता जाएगा। नहीं बहन, ये गलत है। जब तक बहुत ज़रूरी न हो, न आपको हमें फोर्स करना चाहिए इंश्योरेंस क्लेम लेने के लिए, न लोगों को इंश्योरेंस क्लेम से भुगतान लेना चाहिए। बीमा हमारी मुश्किल घड़ी का दोस्त है। हर बात पर आजमाने वाला हथियार नहीं।”
लड़की का दिल टूट गया था। उसने कहा, “करा लीजिए सर, आपका फायदा ही है।”
“बिल्कुल नहीं। ये बीमा का दुरुपयोग है। ये गलत सोच है। ये आपको दिए गए बिजनेस लक्ष्य के तहत दी जा रही गलत ट्रेनिंग है।”
लड़की छोटी ही थी। नई-नई ही नौकरी रही होगी। उसका काम है वहां सर्विस या किसी खराबी के लिए आई गाड़ी को बीमा के माध्यम से ठीक कराने के लिए लोगों को प्रेरित करना।
मैंने लड़की से पूछा कि आपकी शादी हो गई है?
“होने वाली है।”
“बहन, मेरी बात को अन्यथा न लीजिएगा। लेकिन मान लीजिए आपकी शादी हो गई है और आप मां बनने वाली हैं। आप डॉक्टर के पास जाती हैं। डॉक्टर को पता है कि आप नॉर्मल रूप से मां बन सकती हैं लेकिन वो आपसे कहे कि सी-सेक्शन यानी सीज़ेरियन सेक्शन के ज़रिए आपके बच्चे का जन्म होगा क्योंकि इसके बिना मुश्किल है और साथ ही ये भी कि आपके पैसे भी खर्च नहीं होंगे, इंश्योरेंस में सब कवर हो जाएगा तो आप क्या चुनना चाहेंगी? सीजेरियन सेक्शन यानी ऑपरेशन से बच्चे को जन्म देना या फिर नॉर्मल हो सकता है तो नॉर्मल?
“नॉर्मल।”
“डॉक्टर आपको डरा कर, समझा कर, गुमराह करके ऐसा करने को कहे तब? और कहे कि आपकी जान को या बच्चे को कोई खतरा है इसलिए ऑपरेशन ज़रूरी है, जबकि आप समझ रही हैं कि ये ज़रूरी नहीं है, तब?”
लड़की ने मेरी ओर देखा। उसने कहा कि सर ऑपरेशन कोई क्यों कराना चाहेगा?
“इंश्योरेंस है तब?”
“तब भी अगर नॉर्मल हो सकता है तो नॉर्मल ही ठीक रहेगा।”
“अगर डॉक्टर फोर्स करे, उकसाए, समझाए तब?”
“मैं जानती हूं सर, इन दिनों प्राइवेट अस्पतालों में ये बिजनेस हो गया है डॉक्टरों का।”
“आपके साथ ऐसा होगा तो बुरा लगेगा न?”
बस गाड़ी सर्विस और रिपेयर में भी यही बात है। जो ज़रूरी नहीं उसे बेचना ठीक नहीं। सीज़ेरियन सेक्शन की व्यवस्था कई सौ साल पहले रोम में शुरू हुई थी तब जब  मां के गर्भ में कोई वास्तविक समस्या आ जाती थी। कई बार शिशुओं के जन्म के लिए या कभी-कभी मृत भ्रूण को बाहर निकालने के लिए मां के पेट और गर्भाशय में एक या एक से अधिक चीरे लगाए की ज़रूरत पड़ती थी। ये एक अतिआवश्यक परिस्थिति में डॉक्टरों की ओर से उपयोग में लाई जाने वाली शल्य क्रिया है। पर संजय सिन्हा का सवाल वही कि जब तक ज़रूरी न हो क्यों किया जाए ऐसा? माना कि आपके पास हेल्थ का बीमा है। लेकिन क्या ऐसा करना बीमा का दुरुपयोग नहीं? जब वास्तविक ज़रूरत हो तभी डॉक्टर को ऐसा नहीं कहना चाहिए?
उसने कहा, “हां ये सही बात है।”
“बिल्कुल उसी तरह जब तक गाड़ी में वास्तविक रूप से ज़रूरी न हो लोगों को इंश्योरेंस क्लेम के लिए नहीं उकसाना चाहिए। इंश्योरेंस का बिजनेस भरोसे का बिजनेस है। इंश्योरेंस कंपनी नहीं चाहती कि बिना वजह क्लेम लिया जाए। और हम जो बिना वजह क्लेम लेते हैं, उसका खर्चा भले अभी पता न चले लेकिन ये खर्च असल में हमारी जेब पर ही पड़ता है। अगर सभी लोग बिना वजह झूठे क्लेम लेने लगेंगे तो बीमा कंपनी बीमा की राशि भी बढ़ा देगी। यही होता है गाड़ी के इंश्योरेंस में, यही होता है स्वास्थ्य के इंश्योरेंस में।
लड़की धीरे से खिसक गई। समझ गई कि इस कस्टमर को काटा नहीं जा सकता है।
आजकल कस्टमर को काटना एक मुहावरा है। नई एमबीए की ये ट्रेनिंग है, बिजनेस में मुनाफा। अब मुनाफा सिर्फ कार सर्विस कंपनी कमाएं ये तो नहीं हो सकता है। हेल्थ सेक्टर ने कौन-सा पाप किया है? वहां कौन-सा एमबीए नहीं बहाल किए जा सकते हैं? पर बात वही कि जब हम दूसरों को काटते हैं तो बिजनेस। अपने को कोई काटे तो अत्याचार।
असल में सी-सेक्शन या सीजेरियन सेक्शन शब्द काटने से ही बना है। पेट काटने से। गर्भाशय काटने से। ये विद्या प्रचलन में आई ही थी सामान्य रूप से शिशु जन्म की प्रक्रिया में मां या शिशु की जान के खतरे में पड़ने पर उससे बचने के लिए। कालांतर में ये बिजनेस का रूप ले गया। एक आंकड़ा के मुताबिक सबसे अधिक इस जबरन विद्या का प्रयोग चीन में किया जाता है। इसके बाद भारत का नंबर भी काफी ऊपर चला गया है जहां डॉक्टर मां पर दबाव डालते हैं कि काटना ज़रूरी है। अमेरिका, जहां से इंश्योरेंस विद्या दुनिया में पहुंची है वहां काटने की विद्या कम प्रचलित है। अमेरिका में 25 फीसदी महिलाओं को शल्य क्रिया से बच्चे को जन्म देने के लिए उकसाया जाता है, भारत में ये आंकड़ा 46 फीसदी है। बच्चे को जन्म देने के लिए अस्पताल पहुंचने वाली अधिकतर महिलाओं पर ये दबाव होता है। अब क्योंकि जन्म देने के लिए अस्पताल पहुंचने वाली अधिकतर महिलाओं के पास मेडिकल इंश्योरेंस की सुविधा होती है, अपना या कंपनी की ओर से, तो वो राजी-खुशी जबरन के ऑपरेशन के लिए तैयार हो जाती हैं।
कार में भी यही हाल है। हर कार का इंश्योरेंस होता है। नई कार का ज़ीरो डेप वाला इंश्योरेंस। कार सर्विस कंपनी में एमबीए लड़कियां और लड़के हायर किए जाते हैं, यही पाठ पढ़ाने के लिए के लिए कि बंपर थोड़ा-सा पिचक गया है तो बदलवा लीजिेए।
मैंने पास खड़े एक मेकेनिक को बुलाया कि बिना बदले बंपर ठीक हो जाएगा?
“जी, इसे पीछे से मैं धक्का देकर ठीक कर दूंगा।”
 मैं खड़ा रहा, उसने पीछे से बंपर को दबाया, उसका पिचका हिस्सा बाहर आ गया। लो जी दस हज़ार का बंपर बिना चवन्नी खर्च किए ठीक हो गया।
सैकड़ों साल पहले रोमन कानूनी कोड ‘लेक्स सीजेरिया’ से सीजेरियन सेक्शन का जन्म हुआ है। ये कानून बना था इस रूप में कि अगर शिशु जन्म से पहले मां के मरने की नौबत आ जाए तो बच्चे को मां की कोख चीर कर बाहर ले आना चाहिए। ध्यान रहे, कब? जब और कोई विकल्प न बचे तब।
पर हम कर क्या रहे हैं? हम विकल्प को मजबूरी बनाए बैठे हैं।
संजय सिन्हा का ज्ञान- गलत गलत होता है। कभी किसी को बिना वजह काटना नहीं चाहिए। अंत में उसका दंश हम पर ही लौटता है। व्यापार में तरक्की अच्छी बात है, पर व्यवहार से बढ़ कर व्यापार नहीं। नैतिकता से बढ़ कर धंधा नहीं। समाज को रहने देने योग्य बनाना है तो काटने की प्रवृति से मुक्त होना होगा। बीमा का मतलब घर में रखा अग्निशमन यंत्र। अग्निशमन यंत्र का इस्तेमाल घर में आग लग जाने पर किया जाता है, घर में खुद आग लगा कर नहीं।

सुदेश चंद्र शर्मा

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