‼️महेश झालानी !! आपने ग्रामीण पत्रकारों पर जो टिप्पणी की वह आपकी सोच के स्तर को दर्शाती है

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राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार महेश झालानी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सीधा पत्र लिखकर राज्य के शहरी पत्रकारों को आवासीय सुविधा दिए जाने पर अपनी तरफ से (अनचाही राय देते हुए) उन्हें आड़े हाथों लिया है ।बड़ी ही चालाकी से उन्होंने गहलोत द्वारा कथित माफ़िया पत्रकारों के गिरोहों को सुविधा दिए जाने का विरोध किया है ।उन्होंने जिस अंदाज़ में जिस भाषा में राज्य के पत्रकारों को वाजिब और ग़ैर वाजिब पत्रकारों की श्रेणी में विभाजित किया है, उससे मुझे कोई विरोध नहीं मगर जब मैंने उनके ब्लॉग ( पत्र ) पर कमेंट करते हुए कहा कि वह सिर्फ़ शहरी क्षेत्र के पत्रकारों को आवासीय सुविधाएं दिलवाए जाने की वक़ालत क्यों कर रहे हैं ❓️क्यों ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले पत्रकारों को दोहम दर्ज़ का मान कर चल रहे हैं ❓️ क्या उनको आवासीय सुविधा नहीं मिलनी चाहिए ❓️ तो उन्होंने ग्रामीण पत्रकारों के लिए जो कहा वह मुझे बर्दाश्त नहीं!🤨
वह शहरी पत्रकारों को कोसते समय भले ही अपनी भाषा में कितना भी तेज़ाब घोलें लेकिन ग्रामीण पत्रकारों को लेकर उनके द्वारा की गई टिप्पणी का मैं पुरज़ोर शब्दों में विरोध दर्ज करता हूँ।🙋‍♂️
महेश झालानी जी ! आप मेरे मित्र हैं ! वरिष्ठ पत्रकार होने के कारण मैं आपका सम्मान भी करता हूँ मगर आप तो स्वयं शहरी क्षेत्र में पत्रकारिता करते रहे हैं ! ग्रामीण पत्रकारों के रूप में आपने कभी ना तो पत्रकारिता की न कभी उनके सुख-दुख से वास्ता रखा! प्रेस क्लब के धुरंधरों से आपका सीधा सम्पर्क रहा होगा तभी आप उनके विचारों को नज़दीकी से पहचानते हैं ।💯
ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों की चुनौतियों से शायद आपका कभी वास्ता नहीं रहा वरना यह नहीं कहते कि “पत्रकारिता की आड़ में शहरों से ज्यादा गांवों और कस्बों में लूटपाट है ।कोई भी क्षेत्र लूटपाट से अछूता नहीं है “।😣
झालानी जी !! शायद कस्बों और गांवों के पत्रकारों को अब तक आपने समझा ही नहीं है।😡
दोस्तों !! झालानी जी ने जो ब्लॉग लिखा उसकी बानगी देखिए। शहरी पत्रकारों को आवासीय सुविधा दिए जाने पर उन्होंने गहलोत के लिए जो ब्लॉग लिखा है वह पढ़ लें ! फिर उस ब्लॉग पर मैंने क्या कहा वह भी पढ़ना ना भूले। ब्लॉग बड़ा है इसलिए मैं वही हिस्से शामिल कर रहा हूँ जो ज़रूरी हैं।💁‍♂️
गहलोत जी को उनका पत्र।👇
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पत्रकारों की आवास समस्या निराकरण की दिशा में आप द्वारा की जा रही पहल निश्चय ही स्वागत योग्य है । वाजिब पत्रकारों को आवास मिले, इस पर किसी को उज्र नही है । लेकिन पत्रकारिता का लबादा ओढ़कर ब्लैकमेलिंग और माफियागिरी करने वालो को किसी भी हालत में प्लाट या फ्लैट नही मिले, आवास योजना का सही मकसद यही होना चाहिए ।
इस हकीकत को नजरअंदाज नही किया जा सकता है कि राजस्थान के पत्रकारों को पथभ्रष्ट और कारोबारी बनाने में आपकी अपरोक्ष भूमिका से इनकार नही किया जा सकता है । आपने अपने पूर्व कार्यकाल में पत्रकारों को रियायती दर पर भूखण्ड देकर उन्हें कामचोर, पथभ्रष्ट, आलसी और शराबी बनाने में अहम भूमिका अदा की है । इसकी पुनरावृति नही हो, इसके लिए लचीले नही, कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है । अन्यथा इस योजना का वाजिब पत्रकारों के लिए कोई महत्व ही नही रहेगा ।
आपकी तत्कालीन सरकार ने पत्रकारों को धोलाई गांव में रियायती दर पर इस आशय से भूखण्ड उपलब्ध कराए थे ताकि पत्रकारों का कल्याण हो सके । हकीकत यह है कि वास्तविक पत्रकार तो भूखण्ड पाने से वंचित रहे और कई माफिया टाइप व्यक्ति भूखण्ड हथियाने में कामयाब रहे । आज इन भूखण्डों में से 80 प्रतिशत भूखण्ड बिककर बिल्डरों के हाथों में चले गए है । ओने-पौने भाव मे बेचे प्लाट से आई राशि को पत्रकारों ने शराब और अपनी अय्याशी में लुटादी है । जिन पत्रकारों ने प्लाट विक्रय किये है, उनमे मैं भी शरीक हूँ ।😉😉😉😛😛😛
उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने साफ तौर पर यह कहकर पत्रकारों को रियायती दर पर भूखण्ड देने से इनकार कर दिया था कि इससे भ्रष्टाचार को ना केवल बढ़ावा मिलेगा, अपितु पत्रकार लोग अपने बुनियादी कार्यो से परे हटकर अपना चरित्र बिल्डरों को बेच देंगे । उनकी यह सोच सौ नही तो 60 फीसदी तो सही थी । ऐसा नही हो, इसलिए बहुत ही कठोर लेकिन व्यवहारिक नियम बनाने की नितांत आवश्यकता है ।
आज मीडियाकर्मी पत्रकारिता कम और दलाली, ट्रांसफर उदयोग को संचालित ज्यादा कर रहे है । कई लोगो का एकमात्र कार्य ही विधायको, मंत्रियों और अफसरों की दलाली करना है । ऐसे माफिया फिर से सक्रिय होकर आगे की योजना को अंजाम देने में सक्रिय होगये है । तभी तो चंद लोगो द्वारा पद हथियाने के लिए सैकड़ो सदस्यों की फीस जमा करवाई जा रही है ।
मान्यवर, आपके वक्त प्लाट की बंदरबांट किस प्रकार हुई, उसकी बानगी देख लीजिए । जिन लोगो के कई जगह से फर्जी संस्करण प्रकाशित होते है, उन्होंने अपने बेटे, बेटियों, भाई, भाभी, दामाद, नौकर, मशीनमैन, साइकिल चालक, ड्राइवर तक को फर्जी पत्रकार बनाकर प्लाट हथिया लिए । आज ये फर्जी पत्रकार आपकी मेहरबानी से लंबी लम्बी गाड़ियों में घूम रहे है और असल पत्रकार प्लाट का सपना ही देखते रह गए ।अगर राज्य सरकार पत्रकारों को भूखण्डों का आवंटन ही करना चाहती है तो आवंटन की प्रक्रिया बहुत ही पारदर्शी व सख्त होनी चाहिए । फर्जी पत्रकार प्लाट पा नही सके और वास्तविक व जायज पत्रकार इससे वंचित नही रहे, इसका पुख्ता बन्दोबस्त होना चाहिए । आवंटन से पूर्व योग्य पत्रकारों की सूची अखबार आदि में प्रकाशित की जाकर उस पर आपत्ति मांगी जाने पर आवंटन में बहुत ज्यादा पारदर्शिता आ सकती है
एक हकीकत यह है कि फील्ड में कार्य करने वाले रिपोर्टर तो आवास पाने में कामयाब हो जाते है लेकिन डेस्क पर कार्य करने वाले सब एडिटर आदि को न तो भूखण्ड मिल पाता है और न ही अधिस्वीकरण । रिपोर्टर और सब एडिटर के बीच यह बहुत बड़ा भेदभाव है । इस खाई को भी पाटना होगा ।
यहाँ तक तो मैं भी सहमत हूँ कि सत्ता को आवासीय भूखंड उन ही पत्रकारों को देने चाहिए जो ज़रूरत के लिहाज़ से ज़रूरत मन्द हों मगर क्या ज़रूरत मंद सिर्फ़ शहर के ही पत्रकार हैं❓️क्या गांव से पत्रकारिता करने वाले इसके हक़दार नहीं❓️😨
मैंने उनके पूरे ब्लॉग को यथोचित सम्मान दिया और अपनी तरफ से जो टिप्पणी की वह भी पढ़ लीजियेगा।👇
“यह पत्र बनाम ब्लॉग ! आपने अपनी बिरादरी और कुनबे से वाबस्ता रहे गुंडे पत्रकारों के लिए लिखा है।ग्रामीण और दूर दराज़ में रहने वाले ईमानदारी से मजदूरी कर रहे पत्रकारों के लिए नहीं लिखा है।मीडिया संस्थानों की दुलत्तियाँ खाकर ये बेचारे ,गांव के बाहुबलियों और हरामी नेताओं के दवाब से लड़ते हुए पत्रकारिता करने वाले मरजीवड़ों के लिए नहीं लिखा है।
काश! आपने एक शब्द भी उनके हितों और भविष्य को ध्यान में रख कर लिखा होता।
शहरी पत्रकारों की गुंडाई और दबंग कहे जाने वाले जुगाड़ियों की फ़ौज को भूखण्डों से लाभन्वित करने से बेहतर है कि इन ग्रामीण पत्रकारों को आप कुछ रियायती भूखंड दिलवाने की सलाह दें।सहरों में लूट पाट बहुत हो चुकी ।अब ज़रा ईमानदारी से हॉकर बनकर समाचार संकलन करने वालों के लिए भी कुछ लिखें।वैसे कल आपके इस पत्र पर मैं भी कुछ लिखूंगा।
दोस्तो!झालानी जी शहरी पत्रकारों की नियत पर जो चाहे कहें!जैसी चाहे भाषा का प्रयोग करें किंतु ग्रामीण पत्रकारों के विरुद्द अपनी राय बदलें।🙋‍♂️
सुविधाओं और साधन के अभावों में,स्थानीय राजनेताओं के दवाबों में, मीडिया घरानों के साथ पल पल समझौते करने में, हॉकर से लेकर समाचार संकलन में, विज्ञापनों के लिए दर दर भटकने में, वेतन के नाम पर न कुछ मिलने के बावज़ूद ग्रामीण पत्रकार यदि घर फूंक कर तमाशा दिखा कर भी पत्रकारिता को ज़िन्दा रखे हुए हैं तो उनके जज़्बे को सलाम किया जाना चाहिए। न कि शहरी पत्रकारिता की तराज़ू में उनको तोलने के।🤷‍♂️
मैं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आग्रह करता हूँ कि वे शहर के पत्रकारों को जी भर के भूखंड बांटे मगर ग्रामीण पत्रकारों को भी सर उठा कर जीने में मदद करें।🙋‍♂️

सुदेश चंद्र शर्मा

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