स्मार्ट सिटी योजना के धुरंधर अविनाश शर्मा क्यों जाना चाहते हैं मूल विभाग पी डब्ल्यू डी में ?

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दयानद विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक शिव दयाल सिंह शेखावत क्यों हटाकर भेजे गए मूल विभाग में?
क्या दोनों अधिकारियों की मानसिकता और कार्यशैली में कोई समानता है?
राज्यपाल कलराज जी और सांसद किरोड़ी लाल मीणा मुझसे क्यों चाहते हैं इनकी असलियत जानना ?
              *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                 अजमेर शहर में मौसम सिर्फ़ वातावरण में ही नहीं विभागों में भी गर्म है। जहाज डूब रहे हैं और चूहे भाग रहे हैं। एक तरफ़ स्मार्ट सिटी योजना को अपने सर पर लादकर उछल कूद मचाने वाले अविनाश शर्मा इतने घबरा गए हैं कि उन्होंने मानसिक संतुलन अवसाद ग्रस्त होने की दुहाई देकर मूल विभाग में जाने की इच्छा जाहिर की है।दूसरी तरफ महर्षि दयानद विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक शिव दयाल सिंह को कुलपति महोदय ने पद से हटा कर मूल विभाग में रवाना कर दिया है। दोनों को लेकर ही मैंने पिछले दिनों एक दो ऐसे ब्लॉग लिख दिए थे ।दोनों के ही शरीर का रक्तचाप बढ़ गया। अविनाश शर्मा ने  लंबा अवकाश ले लिया है। वे अब स्मार्ट सिटी के दायित्वों से मुक्ति चाह कर अपने मूल विभाग पीडब्ल्यूडी में जाने के लिए तड़प उठे हैं।
                       उधर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में परीक्षा नियंत्रक और महान जुगाड़ बाज़ परीक्षा प्रभारी शिव दयाल सिंह को लेकर मैंने दो ब्लॉग लिखे। उनका पसीना भी गर्म होकर इतना तेज़ी से बाहर आया कि उन्होंने भी परीक्षा नियंत्रक पद छोड़कर जाना स्वीकार कर लिया।
                  नाना प्रकार के घपलों में लिप्त शिवदयाल सिंह शेखावत को विश्वविद्यालय के कुलपति ने अपने मूल अर्थशास्त्र विभाग का रास्ता दिखा दिया है मगर असलियत यह है कि अर्थशास्त्र विभाग भी उनका मूल विभाग नहीं!  वह जनसंख्या अध्ययन विभाग के हैं! विश्वविद्यालय में विस्मयकारी जुगाड़ बाज़ी कर के अर्थशास्त्र के मुखिया बने हुए हैं ।
                 शिवदयाल सिंह और अविनाश शर्मा दोनों ही अपने-अपने तरीके से तेज़ तरार अधिकारी माने जाते हैं ।दोनों मौकापरस्त और उड़ता तीर लेने में माहिर हैं। यहां एक बात बता दूँ कि अविनाश शर्मा को ईमानदार कहलाने का बड़ा शौक़ है। विभिन्न माध्यमों से वे अपनी ईमानदारी प्रचारित करते नज़र आते हैं । हर आने वाले उच्चाधिकारी को वे तरह तरह से अपनी ईमानदारी का यक़ीन दिला देते हैं। वे जिस तरह स्मार्ट सिटी योजना के कार्यवाहक बने रहे और लोगों को हलवा खिलाते रहे! उनकी आंखों के सामने भ्रष्टाचार होता रहा और वे आंखें मूँद कर बैठे रहे ! उन्हें देखकर लगता है कि वे कोयले की खान में अपने आपको सफ़ेद पोश होने का भ्रम पाले रहे हैं। इनसे सम्बंधित बहुत सी जानकारियां सबूत सहित मेरे पास हैँ जो मैं अगले ब्लॉग में दूंगा।
                 इधर महर्षि दयानद विश्वविद्यालय के  शिवदयाल सिंह शेखावत ने अपने सफ़ेद पोश होने का कोई भ्रम नहीं पाला ।वे हलवा खाते भी रहे और खिलाते भी रहे। उन्होंने तो इतना हलवा खा लिया कि अब उनका खाया हुआ हलवा !मलबा बन कर विश्वविद्यालय में देखने को मिल रहा है।
                          अब कुछ सवालों की लिस्ट है जो मेरे सूत्रों ने मुझे भेज दी है। कहा है कि विश्वविद्यालय के कुलपति यदि बेईमान अधिकारियों के साथ नहीं मिले हुए हैं तो उन्हें इस मामले की जानकारी दे देनी चाहिए ।
               बताए गए सवाल विश्वविद्यालय से पूछुं इससे पहले बता दूँ कि राज्यपाल सम्मानीय कलराज मिश्र के दफ्तर से मेरे पास फोन आया था और शिवदयाल सिंह के कारनामे सबूत सहित भेजे जाने को कहा गया था।
                           *उधर भाजपा के सशक्त! प्रभावी! और सर्वाधिक सक्रिय नेता किरोड़ी लाल मीणा ने भी मुझसे इस बारे में संपर्क किया ! दोनों को ही मैंने कुछ सवाल भेज दिए हैं!
             ज़रा आप भी जान लें कि वे सवाल क्या हैं ❓️
                मेरा विश्वविद्यालय के कुलपति से आग्रह है कि वह मुझे शिवदयाल सिंह शेखावत से जुड़े कुछ सवालों की जानकारी व दस्तावेज़ उपलब्ध करा दें ! यदि वह नहीं कराते या किसी भी प्रकार के बहाने बनाते हैं तो मैं समझूंगा कि वे भी उनके प्रभा मंडल का हिस्सा रहे हैं!
 *पहला सवाल : विश्वविद्यालय में शिवदयाल सिंह को कब नियुक्त किया गया❓️
*दूसरा सवाल : उनको किस विभाग में किस पद पर नियुक्ति दी गई❓️
 *तीसरा सवाल: उन्होंने किस अवधि तक जनसंख्या अध्ययन विभाग में काम किया❓️
*चौथा सवाल : किस आदेश से उनका मूल विभाग बदला गया और उन्हें अर्थशास्त्र विभाग में ले लिया गया❓️
*पांचवा सवाल:  किसके आदेश से  उनको अर्थशास्त्र विभाग में आचार्य पद से नवाजा गया❓️
*छठा सवाल:  विश्वविद्यालय के किस नियम के कारण उनका विभाग बदल दिया गया❓️
*सातवा सवाल : विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा विभाग परिवर्तन और भी किसी का हुआ क्या ❓️
*आठवां सवाल :किस  प्रबंध  मंडल ने उनके विभाग परिवर्तन का समर्थन किया❓️
*नौवां सवाल: आर पी एस सी परीक्षा में किस आधार पर उनको परीक्षा प्रभारी बनाया गया❓️
*दसवां  सवाल : उस परीक्षा में कापियों में क्या धांधली  हुई और उसकी जांच हुई या नहीं? हुई तो उसकी पत्रावली कहां है ❓️
                       *मित्रों!! मुझे पता है कि मेरी जानकारियों को विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध नहीं करवाया जाएगा क्योंकि इन्हीं सवालों से जुड़ी जानकारियों में कई कुलपतियों के हाथ काट सकते हैं!!!! कई आरपीएससी के अधिकारियों के असली चेहरे सामने आ सकते हैं!!! घपले में कई लोग शामिल रहे और कोई भी जांच होने पर शिवदयाल सिंह शेखावत को चाह कर भी बचा नहीं पाएगा। उन्हें अभी तो परीक्षा नियंत्रक पद से हटाया गया है अभी और कई कारणों में उन्हें सज़ाओं से गुज़रना पड़ सकता है !
                   *राज्यपाल परम आदरणीय मिश्र साहब और राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने मेरे हर सवाल से जुड़े दस्तावेज़ विश्वविद्यालय और आरपीएससी से मांग लिए हैं मिलने पर उनका हश्र भी कोई अच्छा नहीं होगा यह मैं जानता हूं।
                    *अंत में मैं समस्त प्रदेशवासियों को रामनवमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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