श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार ब्रह्मा-विष्णु-महेश की उत्पत्ति दुर्गा देवी जी से हुई, और दुर्गा माता सिंदूर भी लगाती हैं, तो इन का पति कौन है?
आसानी से इस बात को समझने के लिए मैं भगवन विष्णु के अवतारों की ओर ले चलता हु | भगवन विष्णु त्रिगुणातीत है | अर्थात वो महाप्रलय के बाद भी रहेंगे और हर कल्प में रहेंगे | फिर भी यशोदा,सुमित्रा कैकयी कौशल्या और यहाँ तक पूतना भी उनकी माता है | क्युकी जब वो जिसके गर्भ से जन्म लेते है तब वही उनकी माता हो जाती है |
माता के जो भी अवतार है वो कभी किसी के गर्भ से नहीं है | चाहे सीता हो, या राधा, रुक्मणि या वैष्णवी हो| क्युकी वो स्वयं अजन्मा है |
अब रही बात उनके पति होने की – तो जब भी वो अपने तीनों रूपों में से किसी से भी अवतरित होती है तो उनका वर भी उनके मूल रूप के पतियों में से ही होता है | उदाहरण से मई ये बात समझाता हु:
१. जब वो कलिका हैं तो शिव उनके पति है |
२.जब लक्ष्मी है तो विष्णु उनके पति है |
३. जब ब्राह्मणी है तो ब्रह्मा उनके पति है |
४. इसी प्रकार जब उन्होंने कौशिकी रूप लिया तो पारवती जी के रूप से जन्मी इस लिए शिव को ही पति माना |
५. जब छिन्नमस्तका और भुवनेश्वरी सहित १० महाविद्याओं के रूप लिए है तो इन रूपों का आधार देवी पारवती है इस कारन इनके पति भगवन शिव है|
माता की अधिकतर कथाएं जो की पौराणिक है हम तक पहुंची है वो महर्षि मार्कण्डेय जी के द्वारा रचित है | मार्कण्डेय जी शिव जी के भक्त थे इस लिए माता पारवती से जन्मे माता के रूपों का अधिक वर्णन उन्होंने किया है | जिस माँ दुर्गा के रूपों का वर्णन मार्कण्डेय जी करते है जिसमे वो सिंह पे सवार है और हाथों में कई शस्त्र लिए है शायद ये रुप महिषासुर मर्दनी का है जिसका आदि स्रोत भगवन शिव का क्रोध है (श्री दुर्गा सप्तशती के अनुसार) या वो देवी कात्यायनी है जिन्हे स्वयं माता पार्वति का अवतार बताया गया है |
अतः इस रूप में जब वो सिंदूर लगाती है तो यहाँ वो शिव की ही शिवा हैं | परन्तु वही जब वो पद्मावती के रूप मे हैं तो वो विष्णु भगवन की वैष्णवी है |
परन्तु यदि आप अदि शक्ति के रूप के बारे में पूछ रहे हो जिस रूप में उन्होंने स्वयं भगवन को उत्पन्न किया मैंने श्री दुर्गा सप्तशती में उस रूप का कोई विस्तार वर्णन नहीं सुना है जिसमे उनके सिंदूर कीबात हो |
मेरे हिसाब से माता का मूल रूप निराकार ही है और पूरी दुर्गा सप्तशती में माता के हर अवतार की कथा के अंत में किसी न किसी रूप में मेधा ऋषि ने उनके अंतरध्यान होने की बात कर के यही बताया है की वो निराकार प्रकृति है |