धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले जब जिहादियों की निंदा क्यों नहीं करते?
4 अप्रैल को भी जिहादियों ने कश्मीर में बालकृष्ण भट्ट के पैरों में गोली मार दी। भट्ट का अब अस्पताल में इलाज चल रहा है। यह उन हिन्दुओं में शामिल हैं जो कश्मीर में अपने मकानों में वापसी कर रहे हैं। हिन्दुओं की वापसी से कश्मीर के मंदिरों में फिर से घंटियां बजने लगी है। सबसे खास बात यह है कि घाटी के आम मुसलमान भी वापस आने वाले हिन्दुओं का स्वागत कर रहे हैं। मकानों के पुनर्निर्माण में लगे लोग मुस्लिम श्रमिकों का कहना है कि अब उन्हें रोजगार भी मिलने लगा है, लेकिन जिहादी प्रवृत्ति के कुछ मुसलमानों को हिन्दुओं की वापसी रास नहीं आ रही है। हालांकि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जिहादी या तो पाकिस्तान लौट गए या फिर सुरक्षा बलों की गोली के शिकार हो गए। लेकिन अभी कुछ जिहादी हैं जो पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर आतंकी गतिविधियां कर रहे हैं। ताजा मामला बालकृष्ण भट्ट के पैरों में गोली मारना है। इन जिहादियों का मकसद हिन्दुओं को फिर से बसने से रोकना है। 1990 के दशक में आतंकी घटनाओं के कारण ही चार लाख हिन्दुओं को अपना घर छोड़कर कश्मीर से भागना पड़ा था। तब सरकारों पर आतंकी हावी थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब आतंकियों को सरकार का संरक्षण नहीं है। देश में अक्सर धर्मनिरपेक्षता की बात की जाती है। धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर ही विशेष अधिकार मांगे जाते हैं, लेकिन जब कश्मीर में हिन्दुओं पर हमले होते हैं तो धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदारों के मुंह पर ताले लग जाते हैं। जिहादियों की निंदा करने और हिन्दुओं की रक्षा के लिए भाजपा के नेता ही आगे आते हैं। सवाल उठता है कि बालकृष्ण भट्ट पर हुए हमले की निंदा कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल क्यों नहीं करते? धर्मनिरपेक्षता के लिए तो कांग्रेस और अन्य दल एकजुट हो जाते हैं, लेकिन जब कश्मीर में हिंदुओं को प्रताड़ित किया जाता है तो धर्मनिरपेक्षता को भुला दिया जाता है। कश्मीर में जिहादियों का आतंक अंतिम सांसे गिन रहा है। आने वाले दिनों में कश्मीर में पहले ही तरह भाई चारा देखने को मिलेगा, क्योंकि आम मुसलमान भी आतंकवाद से तंग आ चुका है।
S.P.MITTAL BLOGGER (05-04-2022)
Website- www.spmittal.in
एस पी मित्तल
वर्ष 2016 में मेरी उम्र 54 वर्ष है और मैं करीब 40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ | पत्रकारिता की घुट्टी जन्मजात है। मेरे पिता स्व.कृष्ण गोपाल जी गुप्ता जो भभक पाक्षिक पत्र निकालते रहे। उससे मैंने पत्रकारिता का सबक सीखा। मेरी पत्रकारिता की यात्रा में दैनिक राष्ट्रदूत, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, दैनिक पंजाब केसरी आदि अखबारों का सहयोग तो रहा ही है, लेकिन वर्ष 2000 में जब मैंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में पहली बार केबल नेटवर्क पर न्यूज चैनल शुरू किया तो मुझे सीखने का जोरदार अवसर मिला। जिलेभर के केबल ऑपरेटरों की मदद से जब एक घंटे की न्यूज का प्रसारण हुआ तो अजमेर सहित राजस्थान भर में तहलका मच गया। हालांकि साधनों के अभाव और बड़े मीडिया घरानों के केबल में कूद पडऩे से मुझे अपना अजमेर अब तक नामक चैनल बंद करना पड़ा। 17 नवम्बर 2005 को जब मैंने देश के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से अजमेर के सर्किट हाऊस में व्यक्तिगत मुलाकात की तो मुझे एक सुखद अनुभूति हुई। यूं तो मेरे लिखे की गूंज राजस्थान विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में हुई है, लेकिन मेरी पत्रकारिता की सबसे बड़ी सफलता यही है कि मैं आज भी नियमित लिख रहा हूँ | यदि किसी पाठक के पास कोई सुझाव हो तो अवश्य दें | आपका एस.पी.मित्तल
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