नगरा और धौलाभाटा के ग़रीबों को अपना पैसा लौटने की उम्मीदें जागीं‼️

0
(0)

*बी सी संचालक प्रमोद गुप्ता ने बन्द कार्यालय फिर खोला!फिर करना शुरू किया लेनदारों का हिसाब किताब!

*पुलिस कप्तान से लगाई बेनामी क़ारोबारियों से चैक और काग़ज़ात दिलवाने की गुहार!

* अजमेर शहर के कई नामधारियों के नाम आ सकते हैं सामने!

            *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
               *अब वह सुधरना चाहता है मगर माफ़िया और पुलिस का अदृश्य गठबंधन उसे सुधरने नहीं देना चाहता। उसकी मति मारी गई थी जो उसने बीसी का धंधा किया! लोगों का विश्वास अर्जित किया! करोड़ों के वारे न्यारे किए! मगर वह लालची होकर बेनामी कारोबारियों के हत्थे चढ़ गया ! लोगों के ख़ून पसीने की गाढ़ी कमाई सुरक्षित नहीं रख सका !
                         *परन्तु तत्कालीन पुलिस कप्तान जगदीश चंद्र शर्मा ने बेनामी संपत्ति के काले कारोबार का मुकदमा दर्ज होते ही गरीबों की पाई पाई का हिसाब करने की ठान ली।👍पुलिस जांच प्याज की परतों में बदलती चली गई! बेनामी संपत्ति का कारोबार करने वाले सफेद पोशों के चेहरों से नकाब हटने लगी। बोरियों में भर कर बेनामी काग़ज़ात अलवर गेट पुलिस थाने में जमा हो गए।
                     *तत्कालीन पुलिस कप्तान जगदीश चंद शर्मा ने दूरदर्शिता दिखाते हुए अभी बेनक़ाब हुए अधिकारी को बेनामी संपत्ति के दर्ज हुए मुक़दमे की जांच के नज़दीक ही नहीं फटकने दिया था ! फिर पुलिस के जयचंदों और माफ़ियाओं का गठबन्धन हो गया। उच्च अधिकारी भी इस गठबंधन को तरज़ीह देने लगे। नतीज़ा यह हुआ कि एस.पी. शर्मा जी को अप्रत्याशित रूप से रातों रात स्थानांतरित कर दिया गया।
                          *नशीली दवाओं के तस्कर श्याम मूंदड़ा को बचाने वाले महकमे के जयचंदों को खुली छूट मिल गयी। बेनामी धंधे बाज़ करोड़ पतियों को उन्होंने फिर अपने शिकंजे में ले लिया ।जो चेहरा अब उच्च न्यायालय की नज़र में कलंकित हैं और उसे रेंज से बाहर करने के आदेश माननीय उच्च न्यायलय द्वारा दे दिए गए हैं, उन महाशय ने इस मामले में भी अपनी कारगुज़ारी दिखानी चाही थी,मगर एक हद तक उनकी नहीं चली । फिर मामले की जांच अलवर गेट से बदलने का खेल चला। ईमानदार जांच अधिकारी को सिस्टम की दुर्गंध निष्कासित करने वाले तत्वों ने ( विद्वान न्यायाधीश आली जनाब फ़रज़न्द अली साहब की भाषा में)  साज़िश के तहत इस केस से दूर करवा दिया ।फिर खुला खेल शुरू हुआ।
                      *अब सुधरने की इच्छा रखने वाले बी सी संचालक प्रमोद गुप्ता को जेल से आने के बाद फिर से घेरा जाने लगा है । उससे करोड़ों के चेक और काग़ज़ात सफ़ेद पोशों ने ले रखे थे। गरीबों की ज़मीन हड़पने का षड्यंत्र रचा हुआ था । पुलिस के कुछ दबंग चेहरों के माध्यम से वे गुप्ता की जान के दुश्मन बन गए।
                *अब तक की कहानी फ्लैश बैक यानि भूतकाल से जुड़ी है। वर्तमान कहानी अब शुरू हो रही है ।नगरा और धौलाभाटा क्षेत्र के गरीब व मध्यम वर्गीय लोगों का पैसा लेकर बीसी का संचालन करने वाले प्रमोद गुप्ता ने यह तय कर लिया है कि वह आगे  गरीबों की हाय नहीं लेगा ।स्थानीय पार्षद पति और समाजसेवी ईश्वर राजोरिया के सहयोग से वह गरीबों का पैसा लौटाने के लिए अपना बंद पड़ा कार्यालय खोल चुका है ।यहां उसका पुत्र लोगों से बकाया राशि का हिसाब किताब कर रहा है।
                         *मुझे ब्लॉग लिखने की ज़रूरत इसलिए आ पड़ी है कि प्रमोद गुप्ता ने मुझे अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए ये बताया कि शहर के सारे सफेदपोश बेनामी संपत्ति के कारोबारी संगठित हो गए हैं और उसके चैक व संपत्ति के काग़ज़ात लौटाना नहीं चाहते। इस सिलसिले में प्रमोद गुप्ता ने कल पुलिस कप्तान विकास शर्मा के दफ्तर जाकर आवेदन किया। उसने आदर्श नगर थाने में महान नायक महेश गुप्ता के विरुद्ध समझौते पर अमल नहीं करने और धमकाने की रिपोर्ट तो काफी पहले दर्ज करा दी थी। मगर पुलिस वालों ने उस रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं की। उल्टे प्रमोद गुप्ता को ही आपस में बैठकर मामले को सलटाने की बोलकर उसे रवाना कर दिया। पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं करने की पीड़ा लेकर ही वो पुलिस कप्तान के पेश हुआ।
              *जो समझौता महेश और प्रमोद गुप्ता के बीच हुआ था उसके तहत महेश गुप्ता को उसके पास प्रमोद गुप्ता के गिरवी रखे किसी कारखाने के कागजात वापस देने थे । चैक लौटाने थे। कारख़ाने का सामान भी लौटना था । उसकी एवज में प्रमोद गुप्ता ने किशनगढ़ के कोई तीन प्लॉट्स की रजिस्ट्री महेश कबाड़ी के या उसके किसी परिचित के नाम करवानी थी। प्रमोद ने उन तीनो प्लाट की रजिस्ट्री महेश के कहने से पार्षद रवि मोटवानी के नाम करवा दी। पर फिर भी…
               *”समझौता हो गया है”… यह कहकर अधिकारियों ने महेश गुप्ता की गिरफ्तारी तो टाल दी मगर प्रमोद गुप्ता को उसके मूल काग़ज़ात अभी तक वापस नहीं दिलवाए ।
                   *अब जबकि बाहुबली पुलिस अधिकारी रेंज के बाहर भेज दिए गए हैं तो प्रमोद गुप्ता ने खौफ के साये से निकलकर संवेदनशील पुलिस अधीक्षक विकास शर्मा को दफ्तर में समझौता लागू करवाने या आरोपियों को गिरफ्तार करने की बात कही है ।
                       *उसने मुझे फोन पर बताया कि शहर के बहुत से नामधारी बाहुबली और सफेदपोश व्यापारी उसकी सम्पतियों के कागजात लेकर बैठे हुए हैं ।यदि वे कागजात उसे लौटा दें तो उनका और जनता का पैसा वह संपत्ति बेचकर लौटा सकता है ।
                   *मामला क्योंकि गरीबों के पैसे वापस लौटाने से जुड़ा है, इसलिए मेरी सहानुभूति प्रमोद गुप्ता के साथ हो गई है। यह सच है कि बेनामी धंधेबाज़ों ने यदि  कागजात नहीं लौटाए तो प्रमोद गुप्ता चाहते हुए भी किसी भी हाल में जनता का पैसा नहीं लौटा पाएगा और गरीबों का करोड़ों रुपया डूब जाएगा।
                   *प्रमोद गुप्ता ने जिन लोगों के नाम मुझे बताएं मैं फ़िलहाल उनको सामने नहीं लाना चाहता!  हो सकता है  व्यापारी निसरडे हो जाएं! प्रमोद गुप्ता के कागजात और जनता का पैसा डूब जाए!  किंतु यदि ज़रूरत महसूस हुई तो ऐसे लोगों के चेहरे से नक़ाब  मैं ही नहीं पूरा मीडिया सामने लाने में पीछे नहीं रहेगा।
                          *ब्लॉग के अंत में मेरा आग्रह पुलिस प्रशासन ! बेनामी माफियाओं और मीडिया से यही है कि हज़ारों गरीब परिवारों का पैसा डूबने से बचाने के लिए प्रमोद गुप्ता का सहयोग करें ! वाल्मीकि ने डकैती छोड़कर रामायण लिखने का पावन कृत किया तो प्रमोद गुप्ता को भी एक बार फिर से सर उठाने का मौका समाज को देना चाहिए!  बस इतना ही कहना है मुझे आज तो! बाकी फिर किसी ब्लॉग में..!

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

क्या आप इस पोस्ट को रेटिंग दे सकते हैं?

इसे रेट करने के लिए किसी स्टार पर क्लिक करें!

औसत श्रेणी 0 / 5. वोटों की संख्या: 0

अब तक कोई वोट नहीं! इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

Leave a Comment

सिंक्रोनाइज़ ...