सिन्धी लोक गीत के पीछे छिपा इतिहास , जो कि बहुत कम लोग जानते हैं

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नरेश राघानी
यह सिन्धी लोक गीत आपने लगभग हर सिन्धी समुदाय के आयोजन में सुना होगा । इस गीत की पहली लाइन है *मुँहिंजो खट्टी आयो ख़ैर सां – हो जमालो …*
 *अधिकांश सिंधी लोगों को भी इस गीत के इतिहास के बारे में पूरा ज्ञान नहीं है। मुझे भी आज ही पता चला तो मैं खुद को आ लोगों तक यह जानकारी पहुंचाने से रोक नहीं पाया।  दरअसल, इस गीत के पीछे एक कहानी है ।
 *सन 1889 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल के दौरान , पूरे देश में रेलवे लाइन डाली गई थी। जिसके तहत अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के सखर शहर के बीच से बहती , सिंधु नदी के ऊपर एक रेलवे ब्रिज बनाया गया ।जब ब्रिज बनकर तैयार हुआ तो उस काल में रेलवे के किसी भी ड्राइवर ने यह हिम्मत नहीं हुई कि उस ब्रिज के ऊपर टेस्ट करने के लिए रेल गाड़ी लेकर चला जाए।* *क्योंकि उस ब्रिज के नीचे तेज गति से बहती सिंधु नदी का बहाव इतना तेज था कि  किसी भी दुर्घटना होने पर निश्चित तौर से उस ड्राइवर की मौत का कारण बन जाए। और इतनी बड़ी धनराशि से बनाया गया यह ब्रिज , मात्र इसलिए काम में नहीं लिया जा रहा था कि उस पर टेस्टिंग होना बाकी था। उस काल की ब्रिटिश सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी सिरदर्दी बन गया था। जिस जमालो खासो बलोच नामक एक कैदी ने ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखा। उस कैदी को ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुना दी थी। पत्र में जमालो ने लिखा कि  मैं बतौर ड्राइवर रेल गाड़ी चला कर उस ब्रिज की टेस्टिंग के लिए अपनी जान का जोखिम लेने के लिए तैयार हूं। शर्त रखी कि यदि मैं रेलगाड़ी ब्रिज के पार लगा देता हूँ तो आप मेरी सजा माफ करेंगे और मुझे जेल से आजाद कर देंगे । जिस पर ब्रिटिश सरकार राज़ी हो गयी। सरकार ने दो महीने का प्रशिक्षण देकर जमालो को रेल गाड़ी चलाना सिखाया। टेस्टिंग वाले दिन जमालो बुजुर्गों के पैर छूकर उस रेल गाड़ी पर ड्राइवर बनकर सवार हो गया।
यह दृश्य देखने के लिए सिंध प्रांत में बसे सैकड़ों लोग जमा हो गए। और जमालो की ज़िंदगी के लिए दुआ मांगने लगे। रेलगाड़ी ने चलना शुरू किया तो लोगों की सांसें थम गईं।जमालो ने ईश्वर का नाम लेकर लिवर खींचा और धीरे-धीरे रेलगाड़ी आगे बढ़ी। एक बार तो लोगों को लगा कि अब जमालो नहीं बचेगा। लेकिन रेलगाड़ी ब्रिज पार कर गई।
जैसे ही जमालो रेलगाड़ी सहित सकुशल ब्रिज के पार लेकर पहुंचा तो वहां मौजूद सारे लोग मारे खुशी के नाचने लगे। *ब्रिज के पार खड़ी अपने पति की जान की दुआ मांगती जमालो की बीवी के मुंह से मारे खुशी के अनायास यही शब्द निकले -*
 *मुँहिंजो खट्टी आयो ख़ैर सां – हो जमालो*
 *जिसका शाब्दिक अर्थ है – मेरा जीत के आया खैर से – हो जमालो*
 *यानी कि मेरा पति सकुशल मृत्यु से जीत कर जिंदगी के इस पार आ गया है* । वहां मौजूद सैकड़ों लोग हो जमालो के नारे लगाने लगे।
तब से यह लोक गीत सिन्धी सम्प्रदाय की संस्कृति में प्रविष्ट  गया। *सदा से सिन्धी समुदाय के लोग खास तौर से इस लोक गीत को जब जब भी कहीं विजयश्री प्राप्त होती है। तब तब यह गीत बतौर शुभ शगुन मान कर गाते हैं । और साथ साथ नाचते भी हैं* ।
*यह गीत और इसके पीछे छिपी यह दंतकथा सिन्धी समुदाय की हिम्मत और जोखिम उठाने की क़ुब्बत का आईना है । जिसके सम्मुख सिन्धी समुदाय का हर व्यक्ति खड़ा होकर गौरवान्वित महसूस कर सकता है।

सुदेश चंद्र शर्मा

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