क्या करवट लेगी राजस्थान की राजनीति ?

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*सचिन की तरह क्या वसुंधरा को भी नाप दिया जाएगा ?
*क्या राजनीतिक प्रलोभन रानी साहिबा को क़ब्ज़े में ले पाएंगे ?
*क्या राजस्थान को छोड़ पाएंगी वसुंधरा जी ?
               *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                         *राजस्थान की राजनीति हर लिहाज़ से रजस्वला है।कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही राजनितिक दल शय्या के नीचे सो रहे हैं।किसी काम के नहीं माने जा रहे। दोनों ही दल वर्जनाओं के दौर से गुज़र रहे हैं।*
                       *एक तरफ़ आपसी रिश्तों में खटास का स्वाद हावी है ,दूसरी तरफ़ नेता लोग एक दूसरे को देखना पसंद नहीं कर रहे।*
                      *काँग्रेस की अंतर्कलह और भाजपा की अंतर्कलह में कोई अंतर नज़र नहीं आ रहा।कभी किसी फ़िल्म का गाना सुना था।”एक को मनाऊं तो दूसरा रूठ जाता है।शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है।”*
                  *यही गाना आज कल दोनों पार्टियों में चल रहा है।दोनों ही पार्टी को दुश्मनों की ज़रूरत नहीं।अंदरूनी नेता ही हमलावर होकर पार्टी का चीर हरण करने पर आमादा हैं।कौन पांडव हैं? कौन कौरव ? समझ मे नहीं आ रहा।*
                 *चुनाव सामने हैं।बस समझ लो कि आ ही गए हैं ,मगर इन नेताओं की करतूतें पार्टी की मट्टी पलीत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहीं।दोनों ही दल के नेता दलदल में कूदे हुए हैं। आप भी कहेंगे कि आख़िर मुझे हो क्या गया है? मैं कहना क्या चाह रहा हूँ।*
                    *मित्रों !आज मैं पूरी तरह से चुहलबाजी के मूड में हूँ।सचिन पायलट की तरह!अशोक गहलोत और वसुंधरा की तरह!और उन सब नेताओं की तरह जिनके आचरण ज़िम्मेदार राजनेताओं जैसे नहीं लग रहे।
                    *राजस्थान की राजनीति में इतने ग़ैर ज़िम्मेदार नेता तो कभी नहीं हुए थे।जिसे देखो वह सत्ता को अपनी दासी बना कर सेज सजाना चाहता है।बस एक बार सत्ता उनके हत्थे चढ़ जाए फिर वे यह दिखा देंगे कि सत्ता पर सवारी कैसे की जाती है।
                          *भाजपा में वसुंधरा राजे इन दिनों पूरी तरह फॉर्म में हैं।एक बार वे। दूसरी बार गहलोत। एक बार भाजपा ।दूसरी बार कांग्रेस। इस बार भाजपा की बारी है।यही वज़ह है भाजपा में आंतरिक उछल कूद ज़ियादा हो रही है।
               *कांग्रेस में जहाँ अशोक गहलोत बनी हुई परम्परा को तोड़ने की ताबड़तोड़ कोशिश कर रहे हैं वहीं वसुंधरा राजे यह सोच कर बैठी हुई हूं कि परम्परा क़ायम रहे।भाजपा फिर सत्ता में आए और उनके क़ब्ज़े में ही रहे।
                *कांग्रेस में खेल साफ़ है।ऊपर से नीचे तक गहलोत ही गहलोत हैं।स्टार प्रचारक सचिन पायलट के तेवर हलवाई का घेवर बन चुके हैं। मुख्यमंत्री बनने के उनके ख़्वाब गहलोत के धोबी पटक दांव के बाद धराशाही हो चुके हैं।
                  *”हम थे जिनके सहारे , वे हुए न हमारे।डूबी जब अपनी कस्ती सामने थे किनारे।” वाला गाना उनके कानों में बजता रहता है।
                 *कांग्रेस में दूर दूर तक गहलोत के हाथ से कस्ती की पतवार छीनने वाला कोई नहीं। सोनिया,राहुल,प्रियंका पूरी तरह से जादूगर के पिटारे से बाहर झांक रहे हैं।
                   *हाँ,भाजपा में मामला दूसरा हो गया है।मोदी और शाह की नाराज़गी से लोहा ले रही निहत्थी वसुंधरा विगत तीन सालों से उपेक्षा का दंश झेलती रहीं मगर चुनाव नज़दीक आते ही फिर से पार्टी बाज़ों के होश ठिकाने लगाने के लिए सक्रिय हो गई हैं।
                  *मेरे एक मित्र ने कहा दिल्ली में जितने दिग्गज नेता हैं उनमें से एक नेता ऐसा नहीं जो महारानी के पक्ष में हो।अकेला चना कैसे भाड़ फोड़ देगा। मित्र को मैंने बताया कि अकेला चना भले ही भाड़ न फोड़ सके मगर भड़भूँजे की आँख तो फोड़ सकता है।
                      *रानी साहिबा ऐसा ही चना बन चुकी हैं।ओम जी बिड़ला को अगला मुख्यमंत्री बनाने के लिए अमित शाह भले ही  साम, दाम, दंड, भेद की चालें चल लें लेकिन बिना महारानी को रस्ते से हटाए उनके टोने टोटके काम नहीं आने वाले। 💯तीन साल पूरी तरह से रानी जी को पेंदे बैठाने में न तो वे न उनके कोई गुर्गे क़ामयाबी पा सके हैं। डॉ सतीश पूनिया जैसे उनके पियादों ने सब कुछ करके देख लिया। अरुण सिंह,चंद्र शेखर सभी के राजमन्त्र फेल हो गए और अब दिल्ली के मंत्रोच्चार में बदलाव लाना ही मजबूरी बन चुका है।
                     *जिस तरह वसुंधरा से मिलकर उनको राजनीतिक प्रलोभनों से गुज़ारा जा रहा है ,उसे देख कर यह तो तय हो चुका है कि पाँच राज्यों का मायाजाल अलग था।यहां महामाया कुछ टिपिकल है।
                     *क़यासों की कसरत चल रही है।कोई कह रहा है रानी जी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया जाए इसके लिए उनको उपराष्ट्रपति बना दिया जाएगा।कोई कह रहा है किसी राज्य का राज्यपाल बना दिया जाएगा।कोई उनके पुत्र को केंद्रीय मंत्री बनाए जाने का क़यास लगा रहा है।पर सवाल यह है कि ये क़यास क्या रानी साहिबा को टस से मस कर पाएंगे❓️
                *मित्रों!चुहलबाज़ी के ही मूड में आपको आज बता देता हूँ कि सारे क़यास!सारे प्रयास!बेकार जाने वाले हैं।
                      *मैथलीशरण गुप्त की वह कविता ही जीतेगी जिसके बोल थे “मैं तो वही खिलौना लूँगा, मचल गया दीना का लाल।”
                     *रानी साहिबा पूरी तरह मुख्यमंत्री पद से कम किसी प्रलोभन को स्वीकार करने के मूड में नहीं। देखना यह है कि दिल्ली के दरबार में उनकी इस ज़िद का क्या हश्र होता है❓️
                    *क्या उनकी हालत भी कांग्रेस के सचिन पायलट जैसी होती है या वह अलग अंदाज़ में अपने वज़ूद को साबित कर पाती हैं।*
                   *जहाँ तक मेरा अनुमान है मुझे लग रहा है कि भले ही चुनाव मोदी को सामने रख कर लड़े जा रहे हैं। मगर राजस्थान में स्थिति अलग है और यहाँ पर तो टिकिटों के बंटवारे में भी वसुंधरा की राय को नज़र अंदाज़ नहीं किया जाएगा।💯*
                *ऊप्पर वालों के शातिर दिमाग़ धोखा देने में माहिर हैं और यह बात रानी जी विगत तीन सालों में अच्छी तरह समझ चुकी होंगी। बस!अब उनकी ही समझदारी देखनी है।

सुदेश चंद्र शर्मा

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