झूठ व मक्कारी पर positivity की चासनी चढाकर और सच को Negative घोषित कर घंटों तक कंधे उचका कर भाषण झाङने वाले कथित life coach and motivational speaker लोगों को नागवार लग सकती है यह पोस्ट क्योंकि सच सदैव मीठा हो यह जरूरी नहीं है।
आगे बढते रहना मनुष्य का मौलिक स्वभाव है। तरक्की के बिना मनुष्य का जीवन उत्साहित नहीं रहता। तरक्की से ही सभ्यताओं का विकास होता रहा है। जीवन के लिए हर क्षेत्र में आगे बढ़ना अनिवार्य है। परंतु आगे बढने का मार्ग और तरक्की की मंजिल मिलने के पश्चात का आचरण कैसा हो ?
आइए, एक प्रयोग स्वयं पर ही करते हैं। हम सबने भी अपने भूतकाल की स्थिति में बदलाव करते हुए कुछ तरक्की अवश्य ही की होगी।
तरक्की के बाद हमने स्वयं को किस रूप में पाया ?
विचार करें कि क्या तरक्की मिलने पर हमारे गुण,कर्म और स्वभाव में इस तरह के मनोभाव उत्पन्न हुए हैं?
क्या तरक्की मिलने के पश्चात भी हम अपने मित्रों, रिश्तेदारों, सहकर्मियों व अन्य लोगों के साथ पूर्ववत व्यवहार ही कर रहें हैं ?
सच तो यही है कि नहीं ।
सच तो यही है कि “हम बदल जाते हैं”
महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि क्या तरक्की से मनुष्य की आत्मा मर जाती है ?
क्या तरक्की से मनुष्य सत्य से डरने लग जाता है ?
क्या तरक्की से मनुष्य पक्षपाती हो जाता है ?
क्या तरक्की मिलने पर मनुष्य निर्दयी और क्रूर बन जाता है ?
क्या तरक्की मिलने पर मनुष्य अपने साथ काम करने वाले लोगों को गुलाम समझने की मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जाता है ?
क्या तरक्की मिलने पर मनुष्य को दूसरों के दुख दर्द का एहसास नहीं होता ?
क्या तरक्की के लिए एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्राणों की आहुति लेने से भी नहीं हिचकता ?
क्या तरक्की मनुष्य को इतना निर्बल बना देती है कि एक मनुष्य अपने ही साथी की असमय मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए भी डरता है ?
क्षमा याचना के साथ स्पष्ट करना चाहूँगा कि जो तरक्की इन सब जीवन मूल्यों को नष्ट कर मनुष्य को पशु से भी गया गुजरा संवेदनहीन नरपशु बना दे, ऐसी तरक्की व्यक्ति, समाज,संगठन और राष्ट्र सबके लिए घातक है। जिन्हें इस कीमत पर चाहिए उन्हें मुबारक।
जो तरक्की सच को सच कहने का साहस समाप्त कर दे, जो तरक्की स्वयं की नजरों मे ही हमें गिरा दे, जो तरक्की आत्मा की आवाज को ही खत्म कर दे, एक मनुष्य के तौर पर ऐसी तरक्की किसे चाहिए ?
हैरानी होती है कि इतने सब दुर्गुण आते हैं तो भी मनुष्य को तरक्की के हर तरह के हथकंडे अपनाते देखा जा सकता है।
ईश्वर की कृपा से मेरी तो यही प्रार्थना है कि
“साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ,
साधु न भूखा जाय ।।
दुर्भाग्य है कि हम एक ऐसे युग में जिसे कैरियर ओरियेन्टेड युग कहा जाता है, जी रहें हैं जिसमें इन सब बातों को बकवास माना जाता है। आज के युग में जीवन की सफलता का एक मात्र पैमाना तरक्की ही रह गया है, फिर वो किसी भी कीमत पर क्यों न हासिल करनी पङे।
तरक्की के लिए सब कुछ जायज माना जाता है।