एक जोड़ा कपोत और कपोतिनी उस बर्फीली गुफा के अंदर उपर की ओर एक चट्टान के ऊपर बैठा था। वज्रनाभ कपोत मंत्रमुग्ध सा कपोतिनी सुलक्षणी की सुंदर सुडोल ग्रीवा को देखता तो कभी कपोतिनी कपोत के सुगठित शरीर को देख रोमाँचित हो उठती थी। वे दोनों थोड़े थोड़े अंतराल के बाद एक दूसरे को अपनी चोंच मार कर मानो अपने प्रेम का प्रदर्शन भी कर रहे थे। सुलक्षणी ने कहा: “प्रिय वज्रनाभ कोई ऐसी कहानी सुनाओ आज कि तन मन प्रसन्न हो जाए और आत्मा तृप्त!”
वज्रनाभ :”प्रिये ! मैं समझ गया, क्यूँ ये भाव आज आपके मन में आये हैं, यह स्थान ही ऐसा है। इसी पवित्र गुफा में कभी देवाधिदेव, नाथों के नाथ, भोलेनाथ ने माता पार्वती को अमरत्व का संदेष दिया था। इस पुण्यदायक कथा को हमारे ही पूर्वज एक कपोत ने सुन लिया था जो बाद में महर्षि शुकदेव के रूप में इस धरा पर अवतरित हुए और मानवता को धर्म और मर्यादा का पाठ पढ़ाया था।”
“अच्छा ! “सुलक्षणी ने आश्चर्य चकित होते हुए कहा।
“तो मुझको भी वही कथा सुनाओ ना, आज।”
“नहीं सुलक्षणी, समय के प्रभाव से हमारे वंश के वह सभी अर्जित पुण्य क्षीण हो गये हैं। मैं उस कथा को सुनाने में असमर्थ हूँ पर मैं तुम्हें एक ऐसे प्रदेश के बारे में बताऊंगा जहां पर आज भी शिवत्व प्रकट है जन जन के हृदय में।”
“तो बताइये ना!” सुलक्षणी ने आँखें मटकाते हुए कहा।
वज्रनाभ : “तुम मुझे ऐसी दृष्टि से ना देखा करो, मेरे हृदय में प्रेम का ज्वार ठाठें मारने लगता है।”
“चलो, अब नहीं देखूँगी, सुनाओ कहानी।” नजरें नीचे करती सुलक्षणी बोली।
वज्रनाभ : “हाँ तो मैं बात कर रहा था पंचनद प्रदेश की। आर्यावर्त के उत्तरी भाग में स्थित सिंधु और यमुना नदियों के मध्य का प्रदेश है, जहां पर आज भी शिव पार्वती की कथा को बड़े मन से कहा और सुना जाता है। कनपटे नाथ साधु, जंगम जोगी आज भी सारंगी और इकतारे की धुन पर शिव पार्वती, गौरी, सती की कहानियों को गाते फिरते हैं।” शिव के तांडव को आज भी डमरू और मृदंग की संगति के साथ अभिनय किया जाता है। यहीं पर राधा कृष्ण की प्रेम गाथा और रास लीला सूफी और कृष्ण भक्त गाते आये हैं, गांव दर गांव मंचन करते हैं इन अमर प्रेम की कथाओं का।”
“हूँ! आगे कहो, रुक क्यूँ गये?” सुलक्षणी ने अपने दायें पंजे को उठाते हुए कहा।
“और बताऊँ सुलक्षणी, इस धरती पर नदियों में जल नहीं प्रेम प्रवाहित होता है। यहां की अनेक प्रेम कथाएं इतिहास में दर्ज हो गयी हैं। हीर राँझा, शश्शी पुन्नू, सोहनी महीवाल, सीरी फरहाद, लीलो चमन,बीजा सोरठ और ना जाने कितनी प्यार की कहानियां समय समय पर बनती रही इस धरती पर। मैं पिछले वर्ष उसी धरती पर था। मैं कई वर्षों से तुम्हें उसी धरती पर ढ़ूँढ़ रहा था पर… “
सुलक्षणी व्यथित हो कर: “पर.. क्या?”
वज्रनाभ : “काश तुम मुझे उस समय मिल जाती जब मैं तुम्हारी तलाश में दिन रात एक कर रहा था। तुम मिली भी तो यहां, अब इस आदिम बर्फीली रहस्यमयी गुफा में।”
सुलक्षणी ठंडी आह भरते हुए:
“हाँ! शायद तुम ठीक कहते हो। मैं स्त्रीजात हूँ ना। संशय और भय की मारी इसी गुफा में प्रतीक्षा करती रही तुम्हारी, पर तुम नहीं आये। लज्जा की बेड़ियां मेरे पैरों में बंधी थी। मेरा सब्र का बाँध टूटने ही वाला था कि तुम एकाकी आ गये। मैं अब तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगी।”
सुलक्षणी ने अनुनय करते हुए कहा।
वज्रनाभ : “नहीं सुलक्षणी, अब देर हो चुकी है, मुझे जाना ही होगा। मैं पंचनद की नदियों का पानी पी चुका हूँ। मुझे पिछली वसंत में ही एक सहचरी मिल गयी थी माघी मेले में, मैं अपना हृदय नीलग्रीवा ‘सुगंधा’ को दे चुका हूँ, मुझे उसके पास जाना ही होगा। मैं वचनबद्ध हूँ।”
सुलक्षणी ने अपना रोष दिखाते हुए अपने पंख फड़फड़ाये और कहा कि वह अपने प्राण त्याग देगी यदि वह चला गया तो।
वज्रनाभ : “और यदि दो दिन तक मैं सुगंधा के पास नहीं पहुँचा तो वह अपनी जान दे देगी, मुझे जाना ही है।”
सुलक्षणी : “गुफा से बाहर सब कुछ हिमाच्छादित हो चुका है और भयंकर शीत है। मैं तुम्हें अपने प्राण संकट में नहीं डालने दूँगी।” वह अपने दोनों पंजों पर खड़ी हो गई रास्ता रोक कर।
वज्रनाभ ने पंख फैलाए और गुफा के भीतर उड़ते हुए एक गोल चक्कर लगाया। और फिर हवा में लहराता हुआ गुफा के मुख्य द्वार से बाहर निकल गया। कपोतिनी सुलक्षणी के मुँह से चीत्कार निकला और वह गश खा कर बर्फीले शिवलिंग पर धड़ाम से गिरी। उसके प्राण पखेरु उड़ गये और फिर वही अनंत प्रतीक्षा आरंभ, कब दोबारा जन्म लेंगे, मिलेंगे या ना मिलेंगे। जय भोलेनाथ! जय बाबा बर्फानी!
आज भी दो श्वेत कपोतों को इस गुफा में आने वाले भक्तगण और श्रद्धालु देखते हैं। शायद ये वही कपोत कपोतिनी हैं जो वर्षों पहले बिछुड़ गये थे, शायद कई बार जन्म ले चुके और कई बार बिछुड़ चुके हैं। कुछ दिनों के लिए यह रहस्यमयी गुफा खुलती है, भोलेबाबा के भक्त आते हैं श्रद्धा के साथ जैकारा लगाते हुए और फिर वही सन्नाटा और सुनापन रह जाता है। हर हर महादेव की प्रतिध्वनि गुफा के वातावरण में घुल जाती है और कोई अकेला कपोत या कपोतिनी अपने साथी की प्रतीक्षा में एकाकी समय बिताने के लिए पता नहीं कब और कहाँ से आ जाता है।