बिना कोई खेल जाने, खेल जगत की महान हस्ती बन गए धनराज चौधरी की हुई शिक़ायत‼️

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*मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखे पत्र में हुए कई चौंकाने वाले ख़ुलासे
*कैसे अव्यवसायिक कॉम्प्लेक्स से की जा रही है कमाई❓️जाँच के बाद ही सच आ सकता है सामने!!!*
               *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                          *बिना कोई खेल को जाने ,खेल जगत की ऊंचाइयों को छूने वाले अजमेर के धनराज चौधरी पर अब सवाल उठाए जाने लगे हैं।पटेल स्टेडियम से लगे स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स पर एकाधिकार से हुक़ूमत चलाने वाले धनराज चौधरी की पोल टेबल टेनिस से जुड़े केरल के एक पदाधिकारी ने खोली है।
                   *राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर उन्होंने कई विवादस्पद जानकारियों के साथ तीखे सवाल उठाए हैं।
                *आइए पत्र में दी गयी जानकारियों को केंद्र में रख कर जान लिया जाए कि धनराज चौधरी ने क्या क्या गुल खिलाए हैं।
                    *कोचिन के एस ए एस नवाज़ जो केरला टेबल टेनिस फेडरेशन के अध्यक्ष रह चुके हैं और इंडियन रिवेन्यू सर्विस सेवा के पूर्व अधिकारी हैं ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिख कर धनराज चौधरी के कारनामों की जांच किये जाने को कहा है।शिक़ायत में गौर करने वाली बात यह है कि एलआईसी जैसी अर्द्ध सरकारी संस्था में जूनियर क्लर्क के पद पर नौकरी करने वाला कैसे टेबल टेनिस खेल के सर्वोच्च पद तक पहुंच जाता है ।यहीं नही वरन् साउथ एशिया, एशिया और विश्व की टेबल टेनिस संघ में पद भी प्राप्त कर लेता है ।
                     *आप लोग सोचेंगे इसमें क्या बुराई है ? मगर दोस्तों! ऐसे पदों के लिए अदानी, अंबानी जैसे दिग्गज कमलेश मेहता, शरद कमल जैसे खिलाड़ी ! बड़े-बड़े राजनेता ! बड़े-बड़े आईएएस अधिकारी ! लाइन में हर व्यवस्था लेकर खड़े रहते हैं  उनको धराशाही करते हुए कैसे एक एलआईसी का बाबू सर्वोच्च पद पर पहुंच जाता है❓️
                    *इसकी कहानी तब शुरू होती है जब फोन भी ट्रंक कॉल से बुक हुआ करते थे उस ज़माने में खेलों के प्रति कोई विशेष जागरूकता नहीं थी, छोटे-मोटे खेल संघ रेवड़ियों की तरह बांटे जाते थे जिसमें टेबल टेनिस भी ऐसा ही खेल था।
                     *ऐसे समय में अजमेर की धरती से दो नायाब खेल पदाधिकारी पैदा हुए जिनके नाम थे मूलचंद चौहान और एम एल जादम, दोनों एक ही जाति और समुदाय से ताल्लुक रखते थे  ।दोनों ही जुगाड़बाज़ी में बहुत प्रतिभाशाली थे।जादम साहब तो रेलवे में मामूली से कर्मचारी थे। साम, दाम, दंड ,भेद की नीति अपनाकर या मुंबई की भाषा में कहिए “एडा बनकर पेड़ा खा कर” दोनों खेल पदाधिकारियों ने तकरीबन तीन दशक तक अपना जीवन भारत के खेल संघों पर राज करके बिताया ।
                     *जहां मूलचंद चौहान दिल्ली के स्तर पर सभी भारतीय खेल पदाधिकारियों को पृथ्वीराज चौहान का वंशज बताते हुए राज कर गए।जबकि वे माली थे। चौहान वंश से उनका कोई लेना देना नहीं था। बाद में उनके ही पद चिन्हों पर चलकर उनके कथित दत्तक पुत्र धनराज चौधरी भारत टेबल टेनिस फेडरेशन के अध्यक्ष चौटाला जी को खुद को जाट बता कर 10 साल तक भारत के सचिव पद पर रह कर मलाई खाते रहे।भले ही वे वास्तव में चौधरी यानि जाट नहीं थे।
                       *यही नहीं वर्तमान में भी वे अपने प्रभाव से टेबल टेनिस फेडरेशन में सी ई ओ का असंवैधानिक पद बनवा कर ख़ुद उस पर वेतन लेकर काबिज़ हो रखे हैं।इसकी ही शिक़ायत केरल टेबल टेनिस संघ के पूर्व अध्यक्ष नवाज ने माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी को की है।उन्होंने उसकी कॉपी डीजी राजस्थान व एसपी अजमेर को भी प्रेषित की है।
                    *नीचे से उठ कर ऊपर तक पहुंचने का सफ़र इन लोगों ने कांग्रेस व भाजपा जैसी कई पार्टियों के नेताओं और  बिंद्रा जैसे आई पी एस को टोपी पहना कर तय किया है।और तो और राजस्थान में सरकार किसी भी पार्टी की भी रही हो यह उनके मुख्यमंत्री को अपने ऊंचे रसूखदार से वार्ता करवा कर सेट कर ही लेते थे। धनराज चौधरी के आका मूलचंद चौहान ने तत्कालीन नगर परिषद अजमेर के आयुक्त को पार्षद शंकर गुरु के साथ मिलकर ऐसा फॉर्मूला फिट किया कि निगम कि ज़मीन पर आज तक इनडोर स्टेडियम चल रहा है और इनके घर फल फूल रहे हैं।
                    *अतिरिक्त्त समझदार दिमाग की इंतहा देखिए की एक इनडोर स्टेडियम कमेटी बनाई जाती है जिस का पदेन अध्यक्ष जिलाधीश रहेगा और कमेटी में मूलचंद चौहान के विश्वासपात्र शामिल कर लिए जाते हैं । इनडोर स्टेडियम को जनप्रतिनिधियों के अनुदान व सरकारी अनुदान से बनाया जाता है और मालिक  जागीरदार लोग बन जाते हैं।
                              *उक्त कमेटी ने जब अपना संविधान सब रजिस्ट्रार ऑफिस, अजमेर में जमा कराया तब शर्तों में यह लिखा था कि यह संस्था बिना व्यवसायिक गतिविधियों के चलाई जाएगी, इनडोर स्टेडियम कमेटी सिर्फ खेलों का निशुल्क संचालन करेगी… जबकि आज की वर्तमान परिस्थिति में इनडोर स्टेडियम में शानदार वीआईपी रूम से लेकर सेमिनार हॉल है।एक शानदार शादी समारोह स्थल और साथ ही साथ वेज और नॉनवेज का शानदार रेस्टोरेंट है । जो भी आई ए एस अधिकारी अजमेर आता है वह अपने बाल बच्चों सहित इनका लाभार्थी रहता है ।ऐसे में  सुप्रीम कोर्ट के वकील की तरह जो भी जिलाधीश अजमेर आता है इनसे सेट हो जाता है।
                *बास्केटबॉल के पुराने अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बिना अपने नाम बताने की शर्त पर बताते हैं कि मूलचंद चौहान ने दिल्ली में जीसीए के 5 ओलंपिक बास्केटबॉल खिलाड़ियों का नाम देखकर अजमेर में इनडोर बास्केटबॉल कोर्ट की स्थापना की स्वीकृति ली थी जिसे बनने के बाद टेबल टेनिस और बैडमिंटन के हॉल में बदल दिया गया ।फिर धीरे-धीरे बैडमिंटन को बाहर कर पूरा एकाधिकार टेबल टेनिस का कर लिया गया।
                 *टेबल टेनिस के भारत के सचिव होने के नाते मूलचंद चौहान ने इनडोर स्टेडियम में पेट्रोलियम स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड द्वारा बनाई गई टेबल टेनिस अकैडमी की एक ब्रांच लड़के और लड़कियों की अजमेर में स्थापित की जो आज तक धनराज चौधरी के सानिध्य में चल रही है ।
                *इसके पीछे की कहानी यह है कि पेट्रोलियम स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड अजमेर की एकेडमी के लिए तकरीबन एक से दो करोड़ रुपए इनडोर स्टेडियम कमेटी को देते हैं ।यानी सारा रखरखाव का पैसा जब इनडोर स्टेडियम को पेट्रोलियम दे देती है तो फिर इनडोर स्टेडियम कमेटी उपरोक्त व्यवसायिक उपयोग के बाद भी नो लॉस नो प्रॉफिट में कैसे रह सकती है ।
                *यह ऑडिट का विषय है ।यही नहीं इनडोर स्टेडियम में जितने भी कर्मचारी हैं वे अधिकतर एक ही जाति समुदाय से हैं या फिर धनराज चौधरी के नज़दीकी हैं। यह भी जांच का विषय है ।
                 *इनडोर स्टेडियम कमेटी के अंतर्गत लॉन टेनिस व स्विमिंग पूल भी आता था ।दोनों में सीखने के लिए बच्चों से ₹1000 प्रतिमाह लिया जाता था ।स्विमिंग पूल में अप्रैल से अगस्त तक 300 लोग प्रतिदिन स्विमिंग करते थे तो फिर ऐसी क्या वजह थी कि स्विमिंग पूल के ठेकेदार से बहुत कम राशि इनडोर स्टेडियम कमेटी को दी जाती थी ❓️
                 *यही हाल लॉन टेनिस का है जहां मई-जून में 50 बच्चे प्रतिदिन आते थे तो फिर 50 हजार कलेक्शन होने के बाद भी मात्र ₹5000 ही क्यों इंडोर स्टेडियम कमेटी लेती थी!यह भी जांच का विषय है।
                           *इनडोर स्टेडियम में जो वीआईपी रूम्स बनाए गए हैं उनमें दिल्ली से आने वाले वीआईपी व राजस्थान सरकार के मंत्री सब फ्री में मौज़ करते हैं ,जबकि राष्ट्रीयखिलाड़ियों तक के लिए यहाँ कोई रियायत नहीं दी जाती।यह भी जांच का विषय है। 👍(जबकि अब ये रूम्स दुर्दशा के शिकार हैं।)
                              *इंडोर स्टेडियम कमेटी द्वारा संचालित तंदूर रेस्टोरेंट मूलचंद चौहान ने राष्ट्रीय स्तर के बेरोजगार खिलाड़ी को दिया था लेकिन वर्तमान में धनराज चौधरी व कुछ लोगों की सांठगांठ से यह यशपाल सिंह चुंडावत के नाम करवा रखा है । जबकि इसका संचालन कोई और कर रहा है जो माद्यमिक बोर्ड का कर्मचारी है। इसमें न्यूनतम किराया जगह के हिसाब से इतना क्यों कम है यह भी जांच का विषय है।
                   *सेमिनार हॉल दोनों राजनीतिक पार्टियों को फ्री में उपलब्ध कराया जाता है यही वह वजह है इनडोर स्टेडियम कमेटी का विरोध करे तो कौन करें ❓️
                        *यही नहीं रेस्टोरेंट्स से नव नियुक्ति आने वाले बड़े-बड़े अधिकारियों के घर सेट होने तक लंच और डिनर की व्यवस्था इंडोर स्टेडियम कमेटी द्वारा की जाती है और उनकी ज़बान बढ़िया खाना खाकर सिर्फ होंठों पर आकर रुक जाती है।
                          *सत्ता के लोगो और बड़े-बड़े आईएएस अधिकारी जो खेलों की जानकारी बिल्कुल नहीं रखते हैं उनके समक्ष यह ऐसा व्यवहार प्रस्तुत करते हैं कि उनको लगता है कि इनसे बड़ा खेलों का हितेषी कोई नहीं है।
                   *इसी बात का फायदा उठाकर धनराज चौधरी ने स्मार्ट सिटी के पटेल स्टेडियम डेवलपमेंट के सभी कार्यों को अपने और खेलों का ज्ञान न रखने वाली अपनी टीम के अधीन कर पूरा सत्यानाश कर दिया। सवाल उठता है कि आजाद पार्क में जो मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाई गई क्या वह मूलचंद चौहान इंडोर स्टेडियम वाली बिल्डिंग को तोड़कर नहीं बनाई जा सकती थी❓️
                  *आजाद पार्क में पार्क की वह जगह मरीजों और उनके परिजनों के लिए बचाई जा सकती थी। धनराज चौधरी अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल प्रशासक बन कर अधिकारियों को खेल ज्ञान बांट रहे थे तो स्विमिंग पूल के लिए 12 महीने स्विमिंग करने वाला प्रोजेक्ट क्यों नहीं दिया ❓️यह भी जांच का विषय है।
                      *कुल मिलाकर अगर जांच निष्पक्ष की जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा तभी लोगों को यकीन होगा कि खुदा के घर देर तो है पर अंधेर नहीं है।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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