जब कश्मीरी पंडित चावल के ड्रम में छुप गया

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जब कश्मीरी पंडित चावल के ड्रम में छुप गया, तो उसी के मु स्लि म पड़ोसियों ने जेहा दियों को बताया कि काफिर चावल के ड्रम में छिपा हुआ है। मारो काफिर को। बीवी गिरिजा टिक्कू जान बचाकर जम्मू आ गयी थी। पर उसी की सबसे अच्छी मु स्लि म महिला दोस्त ने उसे फोन करके कहा-तुम्हारी सैलरी आ गयी है, आकर ले जाओ। और जब वो अपनी सबसे अच्छी दोस्त के घर पहुँचती है, तो उसी के मु स्लि म-महिला-मित्र ने उसे अपने घर में छिपाये आतंकवादियों के हवाले कर दिया। और जेहा दियों ने उसका अपहरण करके लगातार कई दिनों तक उसका बलात्कार करने के बाद बीचों-बीच जिन्दा ही चीरकर मार दिया।
विवेक अग्निहोत्री को एक कश्मीरी पंडित ने बताया था कि जब वो भागने के लिए ट्रक में बैठ रहे थे, तब उनके पड़ोस का मु स्लि म दोस्त अपना बड़ा दिल दिखाते हुए उनकी मदद करने के लिए बाहर आया। उस पंडित की तीन बेटियां थीं। जिसमें दो बेटियों को ट्रक में बिठाने के बाद उस दोस्त ने ट्रक का ढक्कन उठाकर बंद कर दिया और तीसरी बच्ची को दबोचते हुए कहा कि अब ये (माल-ए-गनीमत) मेरी है। मैं इससे निकाह करूँगा। और ट्रक-ड्राईवर को डराकर भगा दिया।
एक हिन्दू प्रोफेसर का दरवाजा पीटा जा रहा था। उनकी पत्नी ने कहा- दरवाजा मत खोलिए, वो आपको मार देंगे। लेकिन प्रोफेसर साहब ने ये कहते हुए दरवाजा खोल दिया कि कुछ नहीं होगा ये तो मेरे स्टूडेंट है। और फिर जानते हैं क्या हुआ? उन्हीं प्रोफेसर के मु स्लि म छात्रों ने उनकी पत्नी (माल-ए-गनीमत) का उनकी आँखों के सामने सामूहिक बलात्कार करके मार दिया।
एक कश्मीरी हिन्दू ने बताया कि वो अपना घर नहीं छोड़कर जाने की जिद पर अड़े थे। लेकिन एक दिन अपने ही पड़ोसियों को अपनी बेटियों (माल-ए-गनीमत) और घर का (जेहाद के बाद) बँटवारा कैसे होगा। इसपर चर्चा करते देखा। ठीक उसी दिन जब वो एक कार से भागने लगे। तब उन्हीं के दोस्तों ने उनपर पथराव करके उन्हें मारने के लिए रोकने की कोशिश की।
कुख्यात जेहादी बिट्टा कराटे ने पहली हत्या उस काफिर हिन्दू की की थी जो उसके बचपन का सबसे अच्छा दोस्त था।
ये तो मैनें बस दो-चार कहानियां बतायी। केवल VivekRanjanAgnihotri जी को 700 से अधिक कश्मीरी हिन्दुओं नें “विश्वासघातीयों”‘ की ऐसी ही आपबीती बतायी।
और आप जानकर आश्चर्यचकित हो जाएँगे कि विवेक अग्निहोत्री ने आजतक न्यूज चैनल पर करोड़ों भारतीयों के समक्ष खुल कर कहा कि “700 से ज्यादा कश्मीरी हिन्दुओं के साथ साक्षात्कार में लगभग सभी ने एक ही बात समान रूप से कही, कि यदि पाकिस्तान से आये बाहरी आतंकवादी हमारे साथ अमानवीय अत्याचार करते, तो भी माना जा सकता था। परन्तु हमारे पड़ोसियों, छात्रों, दोस्तों, सहेलियों, सहकर्मियों ने हमारे साथ ऐसा किया। केवल इसलिए कि हम काफिर थे। और हमारा घर, हमारी सम्पत्ति, और हमारे घर की महिलाएं उनके मजहब के बताए अनुसार उनके लिए “माल-ए-गनीमत” थी। जिन पर उनका पहला हक था। यानी हम ग़लीज काफिरों की माँ, बहन, बेटियों पर उनका पहला हक था।
असल में ऐसी हजारों-लाखों घटनाएँ हैं, (गूगल पर सर्च करें) जहाँ केवल काफिर के नाम पर अपने दोस्त, अपने पड़ोसी,अपने ही सहकर्मी पराये होकर जान के दुश्मन बन गये।
हजारों करोड़ की विकास योजनाएँ चला लो। वज़ीफा दे दो, धार्मिक यात्रा का कोटा बढ़ा दो, तीन तलाक खत्म कर दो, बुर्का खत्म कर दो, फ्री में राशन-नमक दे दो, हर योजना का लाभ दे दो। नतीजा वही निकलेगा जो आज़मगढ़, रामपुर, कैराना, बंगाल, केरल में हुआ।
हम अपने विचार बदलते रह सकते हैं, पर वो अपना लक्ष्य कभी नहीं भूलते।
“रालिव, गालिव, चालिव।
या तो मु स्लि म बन जाओ, या भाग जाओ, या मर जाओ

सुदेश चंद्र शर्मा

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