पुष्कर नरक पालिका में बोर्ड भाजपा का ! सल्तनत गठबन्धन की! ग़ज़ब‼️

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*नांद से चल रहा है पालिका का कामकाज!
*अधिकारी पार्षदों को समझते हैं अपनी कांख का बाल!
*विरोधी पार्षदों के वार्डों को नार्किक यातनाओं का बना दिया गया है शिविर!
*बेचारे रवि बाबा को बना दिया गया है बाबा जी का…
                *✒️सुरेंद्र चतुर्वेदी*
                 *पुष्कर में जीना हो रहा है दुष्कर!व्यवस्थाएं हो गयी हैं नश्वर! कई वार्ड तो बन गए हैं  विषकर! पालिका में कुंडली मार कर बैठे हैं अजगर!पार्षद रवि बाबा कह रहे हैं बस कर!
                    *तीर्थ नगरी में बोर्ड भाजपा का तो प्रदेश में सरकार कांग्रेस की, ऐसे में शहर के हालात हो गए हैं बद से बदत्तर!
                           *अधिकारी न तो आम जन की, ना ही चुने हुए जन प्रतिनिधियों की कोई परवाह करते है ना ही सुनवाई। अधिशाषी अधिकारी का रुतबा और ख़ौफ़ ऐसा कि शोले फ़िल्म का डायलॉग याद आ जाए!हां वही..”सौ सौ कोस पर जब कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है चुप हो जा वरना गब्बर आ जाएगा! अधिशासी अधिकारी देखा जाए तो ख़ुद को ख़ुदा से कम नहीं समझते!वज़ह भी साफ़ है कि उनकी  एक जेब में भाजपा बोर्ड है तो दूसरी जेब में नांद नरेश की कृपा!बादशाही रुतबा उन पर इस कदर हावी है कि बेचारे आम फरियादियों की तो क्या पार्षदों से भी उनकी सीधे मुंह बात नहीं होती।
                            *पालिका कार्यालय तो मानो मवेशियों का बाड़ा बना हुआ है! हर कुर्सी पर पोपा बाई का स्टीकर लगा हुआ है।अधिकारी और कर्मचारी कब आते हैं और कब सीट से  गधे के सींग की तरह ग़ायब हो जाते हैं। कुछ पता ही नहीं चलता।
                 *गब्बर सिंह ( हाँ वही सिंह) की आत्मा से प्रेरित अधिशाषी अधिकारी की तो लोगों को शक़्ल देखे ही महीनों बीत जाते हैं।। इन साहब की तो क्या पूछो ! यह अपने आका ( हाँ वही) के अहंकार में इतने अकड़े हुए है कि खुले आम धमकी भरा दावा करते है कि मेरा कोई बाल बांका नहीं कर सकता ! जाओ तुम्हें जो करना है कर लो! इनका और साथ ही इनके मातहतों का भी यही व्यवहार आम जन की जुबां पर छाया हुआ है।
                *पुष्कर तीर्थ की जनता, इन हालातों से बुरी तरह त्रस्त हो चुकी है। वहीं अधिकारी मस्त होकर अपने मन मर्जी के कामों की फाइलों में व्यस्त आम जन की सुख सुविधाओं को पलीता लगा रहे हैं।
                       *अधिकारी ने अपने आस पास चुनिंदा चहेतों का एक मजबूत सिंडीकेट बना रखा है। अधिकारी इन्हीं के इशारों पर सफाई ,सड़क, नाली निर्माण, बिजली के ठेके मर्जी दानों को देता है।जेबें ठुस ठूस कर भरी जा रही हैं।वर्क आर्डर उसे ही मिलेगा जिस पर साहब मेहरबान है। चाहे फाइल तीन तीन महीनों से आलमारी में पड़ी रहें।
               *इसका ज्वलंत उदाहरण गत तीन वर्षो से पुष्कर में अंडर ग्राउंड विद्युत लाइन के कारण संपूर्ण पुष्कर शहर के गली मोहल्लों की सड़के उधड़ी पड़ी हैं। विद्युत विभाग ने रोड कटिंग की राशि बहुत पहले ही पालिका कोष में जमा करवा दी थी। पालिका द्वारा 25 वार्डों की सड़कों को दुरुस्त करने के टेंडर किए तीन माह से अधिक समय हो चुका है लेकिन अधिकारी साहब की मर्जी ऐसी की वार्ड 13 से 25 तक के वार्डो के वर्क ऑर्डर बहुत पहले ही कर दिए लेकिन 1 से 12 वार्ड के वर्क ऑर्डर आज दिन तक नही किए जा रहे है।
                        *इसमें क्या घाला चल रहा है इसका कोई जवाब नहीं है जब कि संबंधित बाबू , सहायक अभियंता ने तीन माह पूर्व ही अपने स्तर से सारी कार्यवाही पूर्ण कर हस्ताक्षर के लिए अधिकारी तक फाइल सरका रखी है।
           *…. मगर साब!!  इन कार्यों के वर्क ऑर्डर पर साइन नहीं कर रहे! करेंगे भी कैसे!जेबों का इशारा नहीं मिल रहा! रडक निकाली जा रही है!खार निकाली जा रही है! विरोधी पार्षदों का मान मर्दन किया जा रहा है!
                  *इस संबंध में पुष्कर के सबसे जागरूक पार्षद रविकांत पाराशर ऊर्फ बाबा ने (वार्ड 12) दो माह पूर्व लिखित में शहर और वार्ड की सड़के दुरुस्त करने के लिए मांग पर पालिका जाकर वर्क ऑर्डर का तकादा जो कर लिया था! लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई! अधिकारी की इस भेदभाव पूर्ण कार्यशैली से पुष्कर का संपूर्ण विकास अवरूद्ध हो गया है। शहर की सड़कों पर आम लोगों का चलना फिरना भी दुष्कर हो गया है। पैदल यात्री ही नहीं दुपहिया वाहन भी हर समय दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं।
                 *सिर्फ़ और सिर्फ़ एक अधिकारी की हठधर्मिता और दादागिरी ने पुष्कर तीर्थ नगरी के हाल बेहाल कर रखे हैं। बड़े आका का सिर पर वरदहस्त जो है। साहब मेहरबान तो गधा पहलवान।

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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