‘पाकिस्तान’ के ‘सिंध क्षेत्र’ में ‘करांची’ समुद्र के किनारे ‘मनोरा द्वीप’ पर एक हज़ार साल पहले हमने ‘वरुण देवता’ का एक मंदिर बनाया था। ‘सिन्धी’ लोग जिन ‘झूलेलाल’ की उपासना करते हैं उन्हें ‘वरुण देवता’ का ही अवतार माना जाता है; इसलिए हिन्दुओं में से इस मंदिर को लेकर सिंधियों के अंदर बड़ा भावनात्मक लगाव था।
‘भारत विभाजन’ के बाद अनेक तीर्थों की तरह यह भी हमसे दूर चला गया। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे एक शिलालेख पर आज भी देवनागरी लिपि में ॐ, वरुण देव मंदिर अंकित है पर यह अब मंदिर नहीं रह गया है; क्यूंकि अल्पसंख्यकों से घृणा के आधार पर बने मुल्क ‘पाकिस्तान’ ने इस ऐतिहासिक और पवित्र मंदिर के कुछ हिस्सों और कमरों को समुद्रतट पर आने वाले सैलानियों के लिए “सार्वजनिक शौचालय” के रूप में परिणत कर दिया है।
ये स्थिति आज हो गई है ऐसा भी नहीं है, 1950 के आसपास वहां के हिंदू समुदाय ने आखिरी बार वहां सामूहिक पूजन किया था। उसके बाद से इस मंदिर को पर्यटन के लिए आने वालों के लिए मनोरंजन स्थल में बदल दिया गया और जब आज से पंद्रह साल पूर्व वहां के अल्पसंख्यक हिन्दू समाज ने इसके बदहाली के लिए आवाज उठाई तो उन्हें चिढ़ाने के लिए पाकिस्तानी नौसेना के अधिकारियों ने इसे संवारना तो दूर उल्टा इसके एक हिस्से को”शौचालय” में बदल दिया। मंदिर की मूर्तियाँ तो कब की तोड़ दी गई थी, बची-खुची नक्काशी पर प्रेमी-प्रेमिका अपने नाम लिख कर उसे नष्ट कर रहे हैं और तो और मंदिर के एक कोने पर मांस की दुकान खोली गई है जहाँ से मांस, चर्बी और हड्डी मंदिर के कैंपस में फेंके जाते हैं।
दुनिया भर में फैले “सिन्धी समाज” या भारत के हिन्दुओं ने तो इसकी सुध नहीं ली पर हमें आईना दिखाया ‘अमेरिका’ ने और उसने पहल करके सन 2015 में इसमें कुछ मरम्मत करवा कर इसको बचाने का प्रयास किया, मगर स्थानिक लोगों और अधिकारियों ने ये भी नहीं होने दिया।
अब ये मंदिर आये दिन के साथ अपमानित होता हुआ अपने अवशेषों के ‘समुद्र’ में अपनी विलीनीकरण की प्रतीक्षा कर रहा है क्यूंकि जल के देवता ‘वरुण’ को ‘समुद्र देव’ के सिवा कोई अवलंबन नहीं है।
इन मंदिरों के तोड़े जाने, अपमानित किये जाने की ख़बरें जब आती है तो अपने ‘क्लीव’ होने का एहसास होता है, खुद से नज़रें मिलाने में शर्म आती है और लगता है कि सीने में कहीं कुछ चुभ रहा है। मगर हम जब हमारे शासन और प्रशासन के अधीन “तिरुपति तिरुमला” की पवित्र पहाड़ियों का अतिक्रमण, राजस्थान के मंदिरों का ध्वंस और कश्मीर के मंदिरों और तीर्थों का जीर्णोद्धार नहीं कर पा रहे हैं तो फिर पाकिस्तान के मंदिरों की बात ही क्या करना है।