भगवान  बहुत  दयालु  हैं

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*भगवान हमारी कई मुसीबतों को बहुत हल्का कर के हमें उबार लेता है या उनके सहने की शक्ति दे देता है। पर ये तो हम ही नाशुकरे हैं जो धन्यवाद न करते हुए उसे ही गुनहगार ठहरा देते हैं, मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ, मेरा क्या कसूर, आज जो भी फसल हम काट रहे हैं ये दरअसल हमारी ही कभी बोई हुई है, बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ से होये। और बबुल से अगर आम न मिला तो गुनहगार भी हम नहीं हैं, इसका भी दोष हम किसी और पर मढेंगे,  कोई और न मिला तो भगवान तो है ही! आइए समझते हैं अगली कहानी से:*
*एक राजा का एक विशाल फलों का बगीचा था! उसमें तरह-तरह के फल होते थे और उस बगीचा की सारी देखरेख एक किसान अपने परिवार के साथ करता था! वह किसान हर दिन बगीचे के ताज़े फल लेकर राजा के राजमहल में जाता था!*
*एक दिन किसान ने पेड़ों पर देखा नारियल अमरुद, बेर, और अंगूर पक कर तैयार हो रहे हैं, किसान सोचने लगा आज कौन सा फल महाराज को अर्पित करूँ, फिर उसे लगा अँगूर करने चाहिये क्योंकि वो तैयार हैं इसलिये उसने अंगूरों की टोकरी भर ली और राजा को देने चल पड़ा!*
 *किसान जब राजमहल में पहुचा, राजा किसी दूसरे ख्याल में खोया हुआ था और नाराज भी लग रहा था किसान रोज की तरह मीठे रसीले अंगूरों की टोकरी राजा के सामने रख दी और थोड़े दूर बैठ गया, अब राजा उसी खयालों-खयालों में टोकरी में से अंगूर उठाता एक खाता और एक खींच कर किसान के माथे पर निशाना साधकर फेंक देता।*
*राजा का अंगूर जब भी किसान के माथे या शरीर पर लगता था, किसान कहता था, ‘भगवान बड़ा दयालु है’ राजा फिर और जोर से अंगूर फेंकता था किसान फिर वही कहता था ‘भगवान बड़ा दयालु है’!*
*थोड़ी देर बाद राजा को एहसास हुआ की वो क्या कर रहा है और प्रत्युत्तर क्या आ रहा है वो सम्भल कर बैठा , उसने किसान से कहा, मैं तुझे बार-बार अंगूर मार रहा हूँ , और ये अंगूर तुंम्हे  लग भी रहे हैं, फिर भी तुम यह बार-बार क्यों कह रहे हो कि ‘भगवान बड़ा दयालु है’!*
*किसान ने नम्रता से बोला, महाराज, बागान में आज नारियल, बेर और अमरुद भी तैयार थे पर मुझे भान हुआ क्यों न आज आपके लिये अंगूर् ले चलूं, वैसे लाने को मैं अमरुद और बेर भी ला सकता था पर मैं अंगूर लाया। यदि अंगूर की जगह नारियल, बेर या बड़े बड़े अमरुद रखे होते तो आज मेरा हाल क्या होता? इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि  ‘भगवान बड़ा दयालु है’!*
*कथा  सार–*
*इसी प्रकार भगवान भी हमारी कई मुसीबतों को बहुत हल्का कर के हमें उबार लेता है पर ये तो हम ही नाशुकरे हैं जो शुकर न करते हुए उसे ही गुनहगार ठहरा देते हैं, मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ , मेरा क्या कसूर, आज जो भी फसल हम काट रहे हैं ये दरअसल हमारी ही बोई हुई है, बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ से होये। और बबुल से अगर आम न मिला तो  गुनहगार भी हम नहीं हैं, इसका भी दोष हम किसी और पर मढेंगे, कोई और न मिला तो भगवान तो है ही ।*
*आज हमारे पास जो कुछ भी है अगर वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर देखेंगे तो वास्तव में हम इसके लायक भी नही हैं पर उसके बावजूद मेरे भगवान ने मुझे जरूरत से ज़्यादा दिया है और बजाय उसका शुकर करने के हम उसे हमेशा दोष ही देते रहते हैं। पर वो तो हमारा पिता है हमारी माता है किसी भी बात का कभी बुरा नहीं मानता और अपनी नेमतें हम पर बरसाता रहता है। अगर एक बार उसकी बख्शिसों की तरफ देखेंगे तो सारी उम्र के भी शुकराने कम पड़ेंगे!*

सुदेश चंद्र शर्मा

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