श्री मद्भगवद्गीता मञ्जरी

0
(0)
क्रमिक ह्रास का सिद्धांत
बल अर्थात शक्ति- आधुनिक विज्ञान से प्रभावित वर्तमान समय समस्त विश्व में बल अथवा शक्ति का मानदण्ड  *अश्व शक्ति* माना जाता है।
क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है ? *शायद नहीं*। चूंकि समस्त विश्व में पाश्चात्य जगत ने शक्ति के मापन का मानदण्ड *अश्व शक्ति* को माना है अतः उनका(अन्धा) अनुसरण करते हुए हमने भी  शक्ति का मापन  *अश्व शक्ति* में ही शुरू कर दिया।
क्या अश्व ही सबसे शक्तिशाली जानवर है ? *शायद नहीं* तो शक्ति का मापन अश्व शक्ति में ही क्यों किया जाता है ?  इसका उत्तर खोजने के लिये हमें इतिहास के पन्नों को खंगालना होगा।
हम सभी ने विश्व को जीतने निकले युनान के राजा (तथाकथित) महान सिकन्दर का नाम तो सुना है,  जिसका सामना राजा पोरस (पौरूष) से हुआ था। हमें यह पढ़ाया गया है कि इस युद्ध में सिकन्दर विजयी हुआ था।
हमें यही पढाया गया है कि इस युद्ध में सिकन्दर विजयी हुआ था और उसने पौरूष को बन्दी बना लिया था किन्तु उसकी वीरता देखते हुए उसे  आजाद कर दिया था।
निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा एक उद्देश्य विशेष से हमारे समक्ष हमारे समस्त इतिहास को इस तरह से  विकृत कर परोसा /  पढाया गया जिससे हमारे मन के अन्दर अपने प्रति, अपने प्राचीन शासकों के प्रति और हमारे धर्म और संस्कृति के प्रति हीन भावना उत्पन्न हो। अगर इस विषय में गहराई से विचार करें तो कुछ प्रश्न मन में उभरते हैं।  अगर वास्तव में सिकन्दर इस युद्ध में विजयी हुआ था तो वह वापस अपने देश को क्यों लोट़ गया ?
इस प्रश्न पर कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उसकी सेना थक गई थी इसलिये सिकन्दर अपने विश्व विजयी अभियान को बीच मे ही छोड़कर वापस अपने देश को लोट़ गया था।
एक विश्व विजयी सेना का भारत के प्रवेश द्वार पर आकर थक जाना और अपने राजा को अपने विश्व विजयी अभियान से वापस अपने देश लोटने के लिये बाध्य कर देना, ऐसे इतिहासकारों के झूठ की पोल खोलता है।
वस्तुतः पर्शियन इतिहासकारों के अनुसार सिकन्दर इस युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ था। उसने इस युद्ध में ऐन वक्त पर रणनीति बदल कर राजा पोरूष को अपने जाल में फंसाने का उपक्रम किया किन्तु अनुभवी राजा पुरूष ने उसकी रणनीति को सही तरीके से भांपते हुए अपने पुत्र को इस आदेश दिया कि शत्रु को जिन्दा पकड़ कर उसके समक्ष  प्रस्तुत किया जाये।
पौरूष के पुत्र और उसकी सेना, जिसमे हाथियों की सेना भी थी, ने असीम वीरता का प्रदर्शन घोड़े पर सवार सिकन्दर और उसकी घुड़सवार सेना को अपनी हस्ती-सेना के बल पर घेर लिया। सिकन्दर और उसकी घुड़सवार सेना ने पहली बार हस्ति सेना को देखा था। उसको सेना के घोड़े डर के मारे इधर-उधर भागने लगे थे। युद्ध के लिये प्रशिक्षित हाथियों और उन पर सवार योद्धाओं ने सिकन्दर की घुड़सवार सेना को बुरी तरह परेशान किया।
सिकन्दर और उसकी सेना का इस तरह की सेना और इसकी वीरता की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।
ऐसे उद्भट योद्धाओं से सिकन्दर और उसकी सेना का पहली बार सामना हुआ था। हस्ति-सेना के प्रहार से सिकन्दर और उसकी सेना हतप्रभ रह गई किन्तु फिर भी उन्होने युद्ध में वीरता दिखाई किन्तु अन्ततः सिकन्दर को बन्दी बना लिया गया और उसे राजा पौरूष के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
राजा पौरूष उसकी वीरता से प्रभावित हुआ और उसने सिकन्दर को वापस अपने देश लोट़ जाने की शर्त पर रिहा कर दिया। इस प्रकार युद्ध की यह घटना हमारे इतिहास की पुस्तकों में वर्णित घटना, (जिसे पढ़कर हम इतने बड़े हुए)  से बिल्कुल उलट थी। राजा पौरूष ने  सिकन्दर को बन्दी बनाया गया था न कि सिकन्दर ने राजा पौरूष को। राजा पौरूष ने ही बड़ा हृदय दिखाते हुए युवक सिकन्दर को रिहा कर दिया।
पर्शियन इतिहास कारों के अनुसार उस दिन रात्रि में सिकन्दर की सेना ने इसका जश्न मनाया।  अन्यथा अपने विजित देशों को लूट कर नष्ट-भ्रष्ट कर देने वाला, वहां की स्त्रियों पर अत्याचार करने वाला सिकन्दर राजा पौरूष को पराजित करने के बाद भी अपना विजयी अभियान छोड़कर अपने देश में चला जाये, क्या यह सम्भव कहा जा सकता है ? कदापि नहीं
राजा पौरूष के हाथों पराजय के पश्चात सिकन्दर अपने देश लोट़ गया किन्तु किन्तु उस रास्ते से नहीं जिस रास्ते वह आया था।
उसको डर था कि अगर वह वापस पर्शिया (वर्तमान ईरान) के रास्ते से वापस लौटेगा तो उसके दुश्मन उसे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। अतः वह दक्षिण दिशा में सिन्ध के रास्ते होते हुए अपने देश लौटा।
रास्ते में अपनी निराशा से उत्पन्न कुंठा में उसने रास्ते में पड़ने वाले छोटे छोटे राज्यों पर हमला किया। कई जगह वह विजयी हुआ तो कहीं कहीं उसे लोहे के चने चबाने पड़े। एक स्थान पर तो स्थानीय सेना ने उसका पीछा भी किया। उनका एक तीर सिकन्दर के पांव पर भी लगा। ऐसा माना जाता है कि इससे उत्पन्न घाव अन्ततः उसकी मौत का कारण बना।
लोटते हुए सिकन्दर ने अपनी सेना के एक भाग को समुद्र के रास्ते से भेजा और स्वयं शेष सेना के साथ कठिन रास्तों को पार कर बड़ी कठिनाई से अपने देश लोट़ा। वह अपनी पराजय से इतना निराश था कि हमेशा शराब के नशे मे रहने लगा और अल्पायु में ही मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसकी इस पराजय का सबसे प्रमुख कारण *राजा पुरूषोत्तम (पौरूष)* की हस्ति- सेना थी।
पश्चिमी देशों में हाथी पाये ही नहीं जाते। वहां घोड़े को ही शक्ति का प्रतीक माना जाता है।  हमारे विचार से इसीलिये पाश्चात्य जगत में शक्ति का मानदण्ड अश्व-शक्ति माना जाता है।
 विगत समय में और बहुत सीमा तक आधुनिक वैज्ञानिक जगत में पाश्चात्य वैज्ञानिकों का ही प्रभुत्व है अतः इस कारण उनके द्वारा प्रचलित वैज्ञानिक मानदण्ड ही  समस्त विश्व में प्रचलित है।
*प्राचीन भारतीय परम्परा में *बल* का मानदण्ड – *हाथी*
हाथी हमारी सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न भाग है। हाथी हमारी संस्कृति में आदिकाल से ही जुडा हुआ है। देव और असुरों द्वारा किये गये *समुद्र-मन्थन* मे विषय और अमृत के अतिरिक्त निकली अन्य वस्तुओं में से एक *ऐरावत हाथी* भी बताया गया है।
प्रथम पूज्य देव *गणेश* का शरीर भी गज (हाथी) जैसा है अतः उनको *गजानन* कहा जाता है। हमारे शास्त्रों में हाथी को बुद्धिमान और शक्तिशाली प्राणी माना गया है। प्राचीन काल से ही उसे ऐश्वर्य और शक्ति का प्रतीक माना गया है। इन्हे राजाओं / सम्राटों द्वारा वाहन के रूप में भी प्रयोग में लिया जाता रहा है।
प्राचीन काल से ही भारत में *हाथियों* को बल अथवा *शक्ति का पर्याय* माना जाता रहा है। हमारे इतिहास ग्रन्थ *रामायण* और *महाभारत* के कुछ ऐतिहासिक पात्रों के *बल* को हाथियों के बल के आधार पर  माना और निरूपित किया  गया है।
त्रेतायुग में राम-रावण युद्ध हुआ था। राम के प्रमुख सलाहकार हनुमान और सेनापति *सुग्रीव* थे। हनुमान को *अतुलित* बलशाली माना गया है।
 सुग्रीव में 10000 हाथियों का बल बताया गया है। इसी तरह सुग्रीव के ही एक साथी *द्विविद* में भी 10000 हाथियों का बल बताया गया है।
द्वापर के अन्त में अर्थात आज से लगभग 5250 वर्ष पूर्व कौरवों और पाण्डवों के मध्य  *महाभारत* संग्राम हुआ था। यह उस समय का सबसे भयंकर विश्व युद्ध ही था जिसमें तत्कालीन लगभग सभी राजाओं ने भाग लिया था।
इसमें बर्बरीक, घटोत्कच जैसे अनेक वीरों ने भी भाग लिया था।
घटोत्कच  महाबली भीम का पुत्र था जो युधिष्ठिर के बाद दूसरे नम्बर का पाण्डव था। महाभारत ग्रन्थ में भीम में  1000 हाथियों का बल बताया गया है। महाभारत युद्ध के दौरान भीम द्वारा एक हाथी को उसकी सूण्ड से पकड़ और उसे घुमाते हुए फेंके जाने का भी उल्लेख आता है। इससे भी उसके बाहुबल का अनुमान लगता है।
वर्तमान युग मे सबसे शक्तिशाली पहलवान प्रोफेसर राममूर्ति नायडू को माना जाता है। उनके शारीरिक बल के करतब देखकर सामान्य जन से लेकर शासक वर्ग तक सभी दाँतों तले उँगली दबाने को विवश हो जाया करते थे।
एक समय में उन्होने पूरे विश्व में तहलका मचा दिया था।  स्वयं ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम व महारानी मैरी ने लन्दन स्थित बकिंघम पैलेस में आमन्त्रित कर सम्मानित किया और * *इण्डियन हरकुलिस*  व  *इण्डियन सैण्डोज* जैसे उपनाम प्रदान किये। क्या प्राचीन काल के इन बलशाली ऐतिहासिक पुरूषों समकक्ष वर्तमान युग में कोई  बलशाली पुरूष है ? अगर आपको इस बारे में जानकारी हो तो अवश्य साझा करें।

सुदेश चंद्र शर्मा

क्या आप इस पोस्ट को रेटिंग दे सकते हैं?

इसे रेट करने के लिए किसी स्टार पर क्लिक करें!

औसत श्रेणी 0 / 5. वोटों की संख्या: 0

अब तक कोई वोट नहीं! इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

Leave a Comment

सिंक्रोनाइज़ ...