मनुष्य के विकास की प्राचीन भारतीय अवधारणा

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हमने चार्ल्स डार्विन की पुस्तक The Descent of Man के आधार पर विकसित मनुष्य के विकास की आधुनिक और पाश्चात्य अवधारणा की प्राचीन भारतीय संस्कृति के विद्वान पण्डित भगवद्दत्त शर्मा द्वारा की गई आलोचना और खण्डन प्रस्तुत किया।
अब हम प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा मे वर्णित मनुष्य के विकास की अवधारणा प्रस्तुत करते हैं।
प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा में मनुष्य का विकास
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प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा में मनुष्य का विकास आदिदेव (आदि पुरूष) *ब्रह्मा* से माना जाता है। जल प्लावन के पश्चात जब पृथ्वी पानी के ऊपर आयी तो इस पृथ्वी पर यह ब्रहमा आकाश से जन्मा।
*आकाशप्रभवो ब्रह्मा।*
(वाल्मीकि रामायण 110/5)
अब प्रश्न यह है कि आकाश से ब्रह्मा की उत्पत्ति कैसे हुई ?
क्या हमारे धर्म शास्त्रों मे दिये गये इस वर्णन से  – *प्रलय काल में जब समस्त स्थूल सृष्टि का नाश हो जाता है तो  सभी आत्माएं आकाश में चली जाती हैं* – कोई सम्बन्ध है।
क्या इस *सूक्ष्म रूप* से आशय *आधुनिक जैविक कार्बनिक रसायनों* यथा आर एन ए इत्यादि से है जिनसे पृथ्वी पर जीवन सम्भव हुआ ?
इस विषय पर गहन अनुसंधान की आवश्यकता है।
जल प्रलय के पश्चात आदि मनुष्य (ब्रह्मा) पृथ्वी पर अवतरित होता है। इसी आदि मनुष्य के नाम से एक नये युग का आरम्भ होता है।
दो मनुओं के बीच के काल को *मनुअन्तर अथवा मन्वंतर* कहते हैं।
प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार अभी सातवां मन्वंतर चल रहा है। इसके आदि मनुष्य अर्थात ब्रह्मा का नाम *वैवस्वत* है इसलिये वर्तमान मन्वंतर को *वैवस्वत मन्वंतर* कहा जाता है।
अर्थात *वैवस्वत* रूप में यह *ब्रह्मा का सातवां जन्म* है। इसके पहले यह छ: बार जन्म ले चुका है। अर्थात इस पृथ्वी पर *छः बार जल-प्रलय* (जल प्लावन की घटना) हो चुका है।
इस प्रकार रामायण-महाभारत आदि इतिहास  ग्रन्थों, ब्राह्मण ग्रन्थों, उपनिषदों, पुराण ग्रन्थों में वर्णित यह *ब्रह्मा* (कोई काल्पनिक व्यक्ति- तथाकथित पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार) एक ऐतिहासिक व्यक्ति हुए है।
*प्राचीन पाश्चात्य परम्परा में ब्रह्मा*
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यह बात केवल प्राचीन भारतीय वाङ्मय में ही नहीं वरन् यहूदियों और पुरानो बाईबल में भी वर्णित है।
सीरिया अथवा सूर्यदेश के यहूदियों का *आदम* -जिससे सृष्टि की उत्पत्ति बताई जाती है – शब्द *ब्रह्मा* के पर्याय वाची शब्द *आत्मभू* अथवा *आदिदेव* का अपभ्रंश है। यहूदियों ने अपने ग्रन्थों में इस अपभ्रंश को सुरक्षित रखा है।
*पुरानी बाईबल में मनुष्य जाति की सृष्टि*
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पुरानी बाईबल (old testament) में  सृष्टि आदम और हव्वा से हुई है।
परमेश्वर ने मिट्टी से आदम को पैदा किया फिर उसने उसके साथ के लिये एक साथी की आवश्यकता देखते हुए उसकी पसली  से हव्वा को उत्पन्न कर  किया।
इस प्रकार सभी मनुष्यों का आदि पिता *आदम* और आदि माता *हव्वा* हुई।
*भारतीय परम्परा में स्त्री की उत्पति*
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प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा इस सम्बन्ध में पूर्णतः वैज्ञानिक है।
इसमें *अर्धनारीश्वर* की अवधारणा है जिसके अनुसार *शिव* का आधा भाग पुरूष और आधा भाग नारी का है अर्थात मनुष्य शरीर में दोनो ही *लिंग* (प्रजनन संस्थान) उपस्थित है।
*आधुनिक विज्ञान* भी इस बात को स्वीकार करता है कि *मनुष्य के शरीर के भीतर पुरूष और स्त्री – दोनो जननांग उपस्थित रहते हैं*। पुरूष में *पुरूष जननांग* सक्रिय और स्त्री जननांग सुसुप्त अवस्था में रहते हैं इसी प्रकार स्त्री में *स्त्री जननांग* सक्रिय और पुरूष जननांग सुषुप्तावस्था में रहते है।
सक्रिय जननांग के कारण ही एक पुरूष.. पुरूष के रूप में और एक स्त्री.. स्त्री के रूप में जानी जाती है।
इनके शरीर का विकास भी उनके लिंग के अनुसार ही होता है।
*उभयलिंगी* अर्थात किन्नरों की उत्पतति।
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कभी कभी किसी  पुरूष के रूप में विकसित देह में नारीत्व सम्बन्धी हार्मोंस और नारी शरीर में पुरूष सम्बन्धी हार्मोंस के सक्रिय स्राव से पुरूष देह में नारी सुलभ और नारी देह में पुरुषत्व के भाव अधिक सक्रिय होने से वह व्यक्ति *उभयलिंगी* हो जाता है जिसे समाज में किन्नर के नाम से जाना जाता है।
*स्त्री की उत्पत्ति का कारण*
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उपनिषदों में *ब्रह्म* द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का कारण उसका अकेला होना बताया है अतः उसने एक से अनेक होने का निश्चय किया
*एकोऽहं बहुष्यामि*
अर्थात ब्रह्म एक था उसे बहुत होने की इच्छा हुई।
यही भाव *वृहदारण्यक उपनिषद* में इस प्रकार व्यक्त किया गया है….
*स वै नैव रेमे तस्मादेकाकी न रमते।*
वह निश्चय ही रमण नहीं कर सका। अकेला रमण नहीं करता अतः उसने अपने शरीर से भार्या उत्पन्न की।
यह ब्रह्मा विश्वकर्ता  भी है।
उसने अपनी भार्या के साथ सन्तानों की उत्पत्ति की और विश्व के समस्त पदार्थों का नामकरण भी किया । इससे वे विश्व कर्ता भी कहलाये।
*हरिवंश पुराण* में इस सम्बन्ध में लिखा है कि
*नरराम ततो ब्रह्मा प्रभुरेकस्तपश्चरन्।*
*शरीरादर्धमथो भार्या समुत्पादितवाञ्छुभाम्।।*
अर्थात ब्रह्मा नर के रूप में एक ही था उसका साथ देने उसके शरीर के आधे भाग से उसकी भार्या की उत्पत्ति की।
(स्रोत : भारत वर्ष का वृहद इतिहास
पण्डित भगवद्दत्त शर्मा)
*मत्स्य पुराण* के अनुसार ब्रह्मा ने अंगजा ( अंग से जन्म लेने वाली ) नामक एक कन्या उत्पन्न की जिसके शतरूपा, सरस्वती इत्यादि भी नाम थे।
मनु – शतरूपा की कथा
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ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार *शतरूपा स्वाययम्भू मनु अर्थात ब्रह्मा की पत्नि* थी।
*सुख सागर* के अनुसार जब ब्रह्मा को सृष्टि करने का विचार हुआ तो उसने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त कर लिया। उनका नाम *का* और *या* था। उनमें से एक से पुरूष की और दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई।  पुरूष का नाम *मनु* और स्त्री कि नाम *शतरूपा* हुआ।
वायु पुराण के अनुसार ब्रह्मा के दो अंश हुए। एक अंश का नाम शतरूपा था।
प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार इन्ही प्रथम पुरूष *मनु* और प्रथम *स्त्री* शतरूपा से समस्त मानव जाति की सृष्टि हुई।
मनु की संतान होने के कारण ही मानव *मनुष्य* कहलाये।
( स्रोत : विकिपीडिया -मनु और शतरूपा )
इस प्रकार मनुष्य की सृष्टि के उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्राचीन भारतीय विचार मूल और वैज्ञानिक विचार थे।
स्मरण रहे कि प्राचीन ऋषियों द्वारा अर्जित ज्ञान को कथा, कहानियों और रूपकों के रूप में  प्राचीन भारतीय धर्म ग्रन्थों यथा वेद, पुराण इत्यादि में प्रस्तुत किया गया है।
जब तक इस तथ्य को नहीं समझा जाये और अन्य ग्रन्थों का अध्ययन कर उनमें तारतम्य नहीं बैठाया जाये तब तक कथा, कहानियों और रूपकों के भीतर छिपे हुए ज्ञान को नहीं समझा जा सकता।
प्राचीन पाश्चात्य लोगों द्वारा भारतीय ग्रन्थों से प्रेरणा लेकर अपने धार्मिक ग्रन्थों में समतुल्य कथाओं का निर्माण तो कर लिया किन्तु इन कथाओं मे अन्तर्निहित ज्ञान को न जानने  और समझ पाने के कारण  वे इन कथाओं के मूल में स्थित ज्ञान को आत्मसात नहीं कर पाये। ऐसी हमारी मान्यता है।
उन्होने प्राचीन भारतीय विचारों से प्रभावित होकर स्त्री की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपनी स्वतन्त्र कथा तो विकसित कर ली किन्तु शास्त्र ज्ञान के अभाव में इसे वैज्ञानिक नहीं बना सके।

सुदेश चंद्र शर्मा

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