फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। आमलकी एकादशी इस बार 14 मार्च 2022 सोमवार को है। हर साल यह एकादशी होली से कुछ दिन पहले आती है इसलिए कई जगहों पर इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है।
आमलकी एकादशी के दिन आंवले का विशेष महत्व होता है। आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है और उन्हें आंवले का वृक्ष बेहद प्रिय भी है। ऐसे में अगर आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर विष्णु जी का पूजन किया जाए तो भक्त जन को सैकड़ों तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य फल प्राप्त होता है और मोक्ष भी मिलता है. पद्म पुराण के अनुसार, आमलकी एकादशी के दिन व्रत रखने और पूरे विधि विधान के साथ विष्णु जी की पूजा करने से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और भक्त जन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
आमलकी एकादशी कथा महात्म्य –
मान्धाता बोले – हे ब्रह्मन् ! हे महाभाग ब्रह्मयोने ! यदि आपकी मेरे ऊपर कृपा हो तो ऐसे व्रतको बतलाइए जिससे मेरा कल्याण होवे ॥१ ॥
वसिष्ठ बोले – रहस्य और इतिहासके सहित सब प्राणियोंको फल देनेवाले और सब व्रतोंमे उत्तम व्रतको इस समय तुमसे कहता हूँ ॥ २ ॥
हे राजन् ! आमलकी एकादशीका व्रत बड़े – बड़े पातकों को नष्ट करनेवाला है , सब लोगोंको मोक्ष और सहस्र गोदानके फलको देनेवाला है ॥ ३ ॥
हिंसामे लगा हुआ शिकारी भी मुक्तिको प्राप्त हो गया , इसका यहाँ प्राचीन उदाहरण देते है ॥ ४॥
हृष्टपुष्ट मनुष्योसे युक्त तथा चारों वर्गों – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्रसे शोभायमान वैदिश नाम का नगर था ॥ ५॥
हे राजसिंह ! उस सुन्दर नगरमें कोई नास्तिक तथा बुरी वृत्तिवाला मनुष्य न था वह नगर हमेशा वेदध्वनिसे शब्दायमान होता रहता था ॥ ६ ॥
उस नगरमे शशविन्दु नामका राजा प्रसिद्ध था , उसीके चन्द्रवंशमे चैत्ररथ नामका धर्मात्मा और सत्यवादी राजा उत्पन्न हुआ ॥७ ॥
वह राजा दश हज़ार हाथियोंके समान बलशाली , लक्ष्मीसे सम्पन्न तथा शस्त्र – शास्त्रों को जाननेवाला था। हे प्रभो ! उस धर्मात्मा और धर्मज्ञ राजाके शासनकालमे ॥ ८ ॥
कही भी कृपण और निर्धन दिखाई नहीं देते थे , हमेशा मुभिक्ष , क्षेम और आरोग्यका ही साम्राज्य था ॥ ९ ॥
उसके राज्यमे प्रजा विष्णुभक्ति और शिवभक्तिमे रत थी और विशेषकर राजा भी उनकी भक्तिमे तत्पर था ॥ १० ॥
शुक्लपक्षकी तथा कृष्णपक्षको द्वादशीयुक्त एकादशीमे मनुष्य भोजन नहीं करते थे और सब धर्मोको छोडकर विष्णुकी भक्तिमे ही विशेषतः
तत्पर रहते थे ॥ ११॥
हे राजश्रेष्ठ ! इस प्रकार सुरवपूर्वक विष्णुभक्तिमे लीन मनुष्योंके बहुतसे वर्ष व्यतीत हो गये ॥ १२ ॥
इसके बाद कुछ समय बीतनेपर फाल्गुन शुक्लपक्षकी आमलकी नामकी द्वादशीयुक्त पुण्य तिथि एकादशी आई ॥ १३ ॥
हे नृप ! एकादशीके आनेपर बालक तथा वृद्ध सब मनुष्योंने नियमपूर्वक उपवास किया ॥ १४ ॥
उस व्रतको महा फलप्रद जानकर राजा नदीमें स्नान करके मनुष्योके सहित भगवान् के मन्दिरमे गया ॥ १५॥
वहाँ राजाने छाता, जूता तथा पञ्चरत्नोंसे युक्त सुन्दर गन्धसे सुगन्धित कलशको स्थापित किया ॥१६ ॥
हे धात्रि ! हे ब्रह्मासे पैदा होनेवाली ! हे सब पापोंको नष्ट करनेवाली ! हे आमलकि ! तुमको नमस्कार तुम मेरे अर्धको ग्रहण करो ॥१७ ॥
हे ब्रह्मासे उत्पन्न ! तुम ब्रह्मस्वरूप हो और रामने तुम्हारी पूजा की है , परिक्रमा करनेसे तुम मेरे सब पापोंको हर लो ।। १८ ॥
वहाँ सब मनुष्योंने भक्तिपूर्वक जागरण किया, उसी समय वहाँ कोई शिकारी आ गया ॥ १९ ॥
वह भूख और परिश्रम से युक्त , बडे भारी बोझसे दुःखी , जीवों को मारनेवाला सब धर्म से बहिष्कृत था ( अर्थात् बाहर निकाल दिया गया था ) ॥२० ॥
वह भूखा व्याध वहाँ आमलकी एकादशी के जागरणको और दीपमालाओसे युक्त उस स्थानको देखकर वहीपर बैठ गया ।। २१ ॥
और यह क्या है ऐसा विचार कर आश्चर्यको प्राप्त हो कर उसने वहॉपर स्थापित कलशके ऊपर दामोदर भगवान् को देखा ॥२२ ॥
और वहाँ ऑवलेके वृक्षको तथा दीपकों को देखा और कथा पढ़नेवाले मनुष्योसे विष्णु भगवानकी कथा सुनी ॥ २३ ॥
और भूखसे पीडित व्याधने एकादशी का माहात्म्य सुना तथा आश्चर्यको प्राप्त हुए उसकी रात्रि जागते हुए ही बीत गई ॥ २४ ॥
प्रातःकाल के समय सब मनुष्य नगर को चले गये , और व्याधने भी घर आकर प्रेमके साथ भोजन किया ॥ २५ ॥
तत्पश्चात् बहुत समय बीतनेपर वह व्याध मर गया , एकादशीको कृपासे तथा रात्रिमे जागरण करनेसे ॥ २६ ॥
उस व्याधने अगले जन्म मे चतुरंगिणी सेनासे युक्त राज्य प्राप्त किया और वह जयन्ती नामकी नगरी मै विदूरथ नामका प्रसिद्ध राजा हुआ ॥ २७॥
उस राजाके चतुरंगिणी सेनासे युक्त तथा धनधान्यवाला , महाबली , वसुरथ नामका पुत्र पैदा
हुआ ॥ २८ ॥
सूर्यके समान तेजस्वी , चन्द्रमा के समान कान्तिवाला और निर्भय वह पुत्र दश सहस्र ग्रामोंपर राज्य करता था ॥ २ ९ ॥
वह पराक्रम में विष्णुके समान तथा सहनशीलतामे पृथ्वी के समान था और धर्मात्मा, सत्यवादी तथा विष्णुकी भक्तिमे तत्पर था ॥ ३० ॥
वह राजा ब्रह्मज्ञानी , अच्छे कर्म करनेवाला तथा प्रजाके पालनमे तत्पर था, शत्रुओ के अभिमानको चूर – चूर करनेवाला तथा अनेक प्रकारके यज्ञोंका कर्ता था ॥ ३१ ॥
वह हमेशा अनेक प्रकारके दान करता था, एक समय वह राजा शिकार खेलने गया और दैवयोगसे मार्ग भूल गया ॥ ३२ ॥
वहाँ उसे दिशा इत्यादिका ज्ञान न रहा तब वह अकेला गहन वनमे अपनी भुजा शिरके नीचे रखकर सो गया ॥३३ ।।
अत्यन्त थका हुआ वह राजा भूखा ही सो गया, इसके बाद पर्वतपर रहनेवाला मेच्छोंका गण ॥ ३४ ॥
वहॉपर आया जहॉ कि शत्रु के बल को मर्दन
करनेवाला वह राजा सो रहा था, राजासे वैर करनेसे वह म्लेच्छ गण राजाके द्वारा सदा दुखी रहता था ॥ ३५ ॥
इसके बाद उस मेच्छगणने उस भूरिदक्षिण राजाको घेर लिया, पहले वैररो विरुद्ध बुद्धिवाला वह गण ‘ राजाको मारो – मारो ‘ इस प्रकार कहने लगा ॥३६ ॥
पहले इस राजाने हमारे पिता , भाई , पुत्र , पौत्र , भानजे और मामा वगैरहको मारा है ॥ ३७॥
अपने स्थान से निकाले गये हम लोग दशों दिशाओं मे फैल गये , इस प्रकार कहकर वे सब राजाको मारने को तैयार हो गये ॥३८ ॥
अपने हाथों मे लिए हुए पाश , पट्टिश , तलवार और धनुषपर चढ़ाये हुए वाणोसे वह शत्रुगण चारों तरफसे राजाको मारनेके लिए तैयार हो गया ॥ ३ ९ ॥
राजा के ऊपर छोड़े हुए सब शस्त्र राजाके शरीरमें न घुस सके, तब सब नष्ट हो गये हैं शस्त्र जिनके ऐसे वे म्लेच्छ मृतकके समान हो गये ॥४० ॥
वे शत्रुगण वहाँ एक पद भी न चल सके और नष्ट चित्तवाले उन सबके शस्त्र खोटे हो गये ।। ४१ ॥
जो राजाको मारनेके लिए आये थे वे सव दीन हो गये, और उसी समय राजाके शरीरसे ॥ ४२ ॥
दिव्यगन्धसे युक्त तथा सुन्दर गहनोंसे सुशोभित और सव अङ्गोंसे सुन्दर एक कन्या निकली ॥४३ ॥
सुन्दर वस्त्र धारण किये हुए , क्रोध से भौहे चढ़ाये हुए और नेत्रोसे चिनगारियाँ बरसाती हुयी वह ऐसी लग रही थी मानो बहुतसी अग्नि उगल रही हो ॥ ४४ ॥
दूसरी कालरात्रि के समान क्रोधित होकर तथा हाथमे चक्र लेकर वह उन दुःखी म्लेच्छोंपर दौड़ी ॥ ४५ ॥
जब कुकर्म मे लगे हुए म्लेच्छ उस स्त्रीके द्वारा मारे गये तव राजा उठा और उसने बड़े भारी इस अद्भुत् कार्य को देखा ॥ ४६ ॥
मरे हुए म्लेच्छगणोंको देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ , और बोला कि मेरे अत्यन्तवैरी इन म्लेच्छों को यहाँ किसने मारा है ॥ ४७ ॥
हमारे किस हितैपी ने यह बड़ा भारी कार्य किया है , ऐसा : राजाके कहने के समय ही ॥४८ ॥
निष्काम और आश्चर्ययुक्त राजाको देखकर आकाशवाणो हुई कि केशव भगवान् के अतिरिक्त कोई दूसरा रक्षक नहीं है ॥ ४६ ॥
वह धर्मात्मा राजा वनसे कुशलपूर्वक घर आया और उसने पृथिवी : पर इन्द्रके समान राज्य किया ॥ ५० ॥
वसिष्ठ जी बोले – हे राजन् ! जो उत्तम पुरुष इस आमलकी एकादशीका व्रत करते हैं वे विष्णुलोक को जाते हैं यह बात विना विचारे ही सत्य है ॥५१ ॥
।। इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे फाल्गुन शुक्लैकादश्यामलकीमाहात्म्यं समाप्तम् ॥
एकादशी तिथि का प्रारंभ – 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 21 मिनट से।
एकादशी तिथि समाप्त – 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 05 मिनट तक।
एकादशी व्रत पारण का समय – 15 मार्च को सुबह 06:31 बजे से 08:55 बजे तक।