*विकल्प दोनों नेताओं के पास हैं❗सचिन राष्ट्रीय स्तर पर ज़िम्मेदारी ले सकते हैं तो वसुंधरा कई विकल्पों के बीच चुनाव के इंतज़ार में
*वसुंधरा को राजनीतिक पंडित मौलवी हलवा न समझें*
*✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
*सचिन पायलट और वसुंधरा राजे का भविष्य निर्धारित करने के क़यास इन दिनों चर्चाओं में हैं। कांग्रेस में सचिन पायलट के क़द को राष्ट्रीय स्तर पर क़द्दावर बनाए जाने के सुझाव सामने आ रहे हैं, जबकि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के पर क़तर कर उनका क़द बौना करने के लिए भी उनके दुश्मन संगठित हो रहे हैं।*
*दोनों ही नेताओं के लिए यह खेल 5 राज्यों के हाल ही में हुए चुनाव परिणामों के बाद और तेज़ हो गया है ।कांग्रेस पार्टी अपने सफाए के बाद यह सोचने पर मजबूर है कि राष्ट्रीय नेतृत्व किसी नए चेहरे को दिया जाए, जबकि राजस्थान में वसुंधरा राजे को अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा ना बनाए जाने पर भी उथल पुथल मची हुई है ।*
*आइए ! पहले सचिन पायलट पर बात कर ली जाए! पिछले 2 सालों से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनके पर क़तर रखे हैं। वसुंधरा के मुख्यमंत्री काल मे उन्होंने कांग्रेस को मजबूत किया। पर हाई कमान ने क़ामयाबी की फसल काटने के लिए ज़िम्मेदारी अशोक गहलोत को सौंप दी ।यधपि उनको उपमुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष भी बना रहने दिया गया। मगर दोनों के बीच भावनात्मक लगाव पहले दिन से नज़र नहीं आया। उनके व्यवहार से तंग आकर जब सचिन पायलट ने ज़ुबान खोलनी शुरू की तो गहलोत ने उनको नकारा कह कर बाहर का रस्ता दिख दिया। दोनों नेताओं ने अपने अपने समर्थकों के साथ बाड़ेबंदी का टूर्नामेंट शुरू कर दिया।सचिन अपने भीडुओं को लेकर तो अशोक गहलोत अपनी सरकार लेकर बाड़े में चले गए।जब जनता कोरोना की चपेट में आ रही थी तब दोनों के बीच अखाड़ेबाजी हो रही थी।
*कांग्रेस के लिए ये बुरा वक़्त था।कई बड़े नाम कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके थे। मान कर चला जा रहा था कि सचिन भी पाला बदल लेंगे।भाजपा के कुछ कुटिल नेता इसके लिए चौसर भी बिछा चुके थे।वो तो संख्याबल में सचिन मात खा गए वरना मुख्यमंत्री वे भी हो सकते थे।चाहे कांग्रेस से नहीं।
*अब वे फ्री हैं।समय उनके अनुकूल है।वे कांग्रेस के स्टारनेता हैं। ख़ूबसूरत हैं।जवान पीढ़ी की पसंद हैं।पढ़े लिखे हैं।राजनीति उनके ख़ून में शामिल है।
*पांच राज्यों के चुनाव में हार के बाद बुजुर्ग कांग्रेसी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को हटा देना चाहते हैं ।ऐसे में सचिन पायलट कांग्रेस के लिए सर्वाधिक उपयुक्त नेता हैं।भाई बहन भी सचिन को लेकर सकारात्मक होंगे। यूँ कुछ चपरकनाती अशोक गहलोत की भी राष्ट्रीय नेतृत्व में लाने की वक़ालत कर रहे हैं मगर गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ कर नहीं जाएंगे। मुख्यमंत्री बने रहने की लालसा उनको राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखेगी ।ऐसे में सचिन पायलट ही शतप्रतिशत राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालेंगे। सचिन के पास भी इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
*……तो चलिए बात की जाए रानी वसुंधरा जी की! चुनाव परिणाम से पहले जन्मदिन मनाकर उन्होंने जिस बेहतरीन रणनीति से शक्ति प्रदर्शन किया व केंद्रीय भाजपा को ठोस संदेश दिया कि “वह नहीं तो कोई नहीं।”
*राज्य के भाजपा नेताओं के बीच उनकी मौजूदगी इतनी प्रभावशाली थी कि अरुण सिंह जैसे दिग्गज को उनके विरुद्ध बोलना पड़ा ।हालांकि हाल के चुनाव परिणामों के बाद कुछ पंडित मौलवी कह रहे हैं कि अब राष्ट्रवाद और मोदी चेहरा ही अगले चुनाव का चेहरा होगा मगर जो लोग इस तरह की लफ़्फ़ाज़ी कर रहे हैं वे शायद यह नहीं जानते कि वसुंधरा सिर्फ़ घुर्राना ही नहीं जानती ।
*यदि हाईकमान उन्हें संतुष्ट किए बिना किसी मुगालते में राष्ट्रवाद या मोदी का चेहरा सामने ले आया तो परिणाम भी भुगत ही लेगा ।वसुंधरा कोई हलवा नहीं जिसे हाईकमान चट्ट कर जाएगा।
*यदि भाजपा हाईकमान के पास वसुंधरा के कई विकल्प हैं तो वसुंधरा के पास भी दो चार तो होंगे ही!!
*चलिए मैं भी बता ही देता हूं! इसमें वसुंधरा या उसके राय चंदों की राय शामिल नहीं है।यह मेरा निजी क़यास है।
*”आप” पार्टी राजस्थान में पूरी तरह क़ब्ज़े के मूड में है ।आम आदमी पार्टी के पास कोई जादुई चेहरा नहीं! केजरीवाल चाहते हैं कि सचिन पायलट या वसुंधरा जैसा जादुई चिराग उनकी पार्टी को हाथ लग जाए!!
*यदि ऐसा कोई चेहरा मिल जाता है तो अगले चुनाव में भाजपा या कांग्रेस को वे दुलत्ती मार सकते हैं। सचिन पायलट जी के पास भी विकल्प हैं। वसुंधरा जी के पास भी! वसुंधरा जी तो अपनी अलग पार्टी भी बना सकती हैं ।
*…..तो ऐसा नहीं मान लेना चाहिए कि जो लोग उनके जन्मदिन पर साथ थे उनका नशा अगले चुनावों तक उतर जाएगा।
*मगर मेरा ऐसा मानना है कि अरुण सिंह आज भले ही कुछ भी कहें केंद्रीय नेतृत्व ऐसा कोई रिस्क वसुंधरा को लेकर नहीं लेगा।राजस्थान में उनको कोई चेहरा तो सामने रखना ही होगा।कोरा राष्ट्रवाद!मज़हबी ध्रुवीकरण !या केन्द्रिय चेहरा! यहाँ चुनाव नहीं जिता पाएगा!यदि कोई चेहरा सामने रखना ही हुआ तो वसुंधरा के अलावा भाजपा के पास उन जैसा ताक़तवर चेहरा दूसरा नहीं होगा! यू पी जैसा ध्रुवीकरण राजस्थान में मुमकिन नहीं।