बाबा जी का टुल्लू‼️

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*श्री सीमेंट और आंदिलनकारियों के बीच मौखिक समझौता!  ये माँगते गए! वो देते गए! ज़ुबानी जमा ख़र्च में जनता को मिला बाबा जी का टुल्लू!!!*

*विधायक राकेश पारीक को दूर रख कर हुआ समझौता बैसाखियों पर चलेगा कितनी दूर???

*वीनू कंवर और सुरेन्द्र राठौड़ की लिस्ट पर ही इलाके का विकास होगा! बेरोज़गारों को नौकरियां मिलेंगी तो विधायक राकेश जी क्या मूंगफलियां बेचेंगे❓️

*सच तो ये है कि कुछ नादान लोगों ने जनभावनाओं को शातिर श्री सीमेंट के ख़ज़ाने में डलवा दिया!!*

*हार गई जनता! जीत गया श्री सीमेंट !*

              *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
                    *फिर एक बार ठग लिया श्री सीमेंट प्रबंधन ने भोले भाले नागरिकों को! जन आंदोलन की मशाल थामने वालों को ! कोहनी में शहद लगाकर ठग लिया गया!!  शहद लगे मीठे आश्वासनों के बीच फैक्ट्री प्रबंधन ने “झांसे का पासा” फेंक कर!! मुठ्ठी तानने वालों के हाथ ही काट लिए !!*
                *पिछले दिनों पर्यावरण की रक्षा !अवैध खनन!! बेरोज़गारों की बढ़ती भीड़!!! बारूदी धमाकों से आसपास के इलाकों में फैली दहशत !!!!  रिहायशी मकानों में पड़ी दरारों !!!! जैसे मुद्दों को लेकर मसूदा के जागरूक नेताओं ने एक अभियान छेड़ा था। मसूदा प्रधान वीनू कंवर और उनके पति सुरेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में जनमानस को संगठित किया गया था।
            *”मसूदा चलो!!”  का नारा गुंजा  कर जन सैलाब को इकट्ठा कर लिया गया था ! ऐसा वातावरण बना दिया गया था कि जैसे इस बार आर-पार की लड़ाई होगी!*
                        *विधायक राकेश पारीक की राजनीतिक ख़ामोशी के ख़िलाफ़ यह आंदोलन शंखनाद ही था मगर ख़ूबसूरत आंदोलन “जंग निरोधक सीमेंट” के साथ, वायदों की बजरी मिलाकर , मौखिक आश्वासन के पानी से ,दीवारों में चुन दिया गया! बंद कमरे में दस बीस “नामधारी नेताओं”  की अगुवाई और मुंह लगे श्री सीमेंट के अधिकारियों की मौखिक क्रांति से समझौता हो गया। आंदोलन की हवा निकाल दी गई ! कुछ नेताओं के आक्रोश को जनाक्रोश बनाने की कोशिश नाकाम हो गई ! “मसूदा चलो” का नारा बिना सार्थक समझौते के मुंह लटका कर वापस मसूदा लौट आया!*
                  *आंदोलन के पुरोधा सुरेंद्र सिंह राठौड़ व उनकी पत्नी वीनू कंवर के पास किसी सवाल का, कोई ठोस जवाब नहीं ! वह कह रहे हैं कि श्री सीमेंट ने उनकी सारी मांगे मान ली है। मैंने पूछा लिखित में कुछ दिया क्या❓️  जवाब था नहीं !!!*
                *अरे वाह !! श्री सीमेंट प्रबंधन!! तुमने तो कमाल ही कर दिया!! वे मौखिक रूप से मांगते गए!! तुम जुबानी जमा ख़र्च के तहत देते गए!! एक शब्द समझौते के तहत लिखकर नहीं दिया गया ।ऐसा ऐतिहासिक समझौता मैंने तो पहली बार देखा जब श्री सीमेंट ने बिना लिखित में कुछ दिए सब शर्तें मान लीं।*
                        *आंदोलन करने वाले सारे नाम धारियों की शायद मति मारी गई थी। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि पब्लिक ने उन पर जो विश्वास किया उसका क्या होगा ❓️*
                     *फिर एक बार लोगों को लूट लिया गया ! ज़रा आप भी देखें कि मुंह ज़ुबानी हुआ समझौता किन बिंदुओं पर हुआ❓️ बारूदी धमाके गायब हो गए !बेरोज़गारी सामने आ गई । श्री सीमेंट के प्रतिनिधियों ने मगरा क्षेत्र के बेरोज़गारों को नौकरी देने का वादा कर लिया। कह दिया कि फैक्ट्री के नए प्रोजेक्ट्स में रोज़गार दे दिया जाएगा! कब और कौन से प्रोजेक्ट होंगे ❓️ कुछ नहीं बताया गया! बेरोज़गारी का मुद्दा ज़ुबानी वादे के साथ ख़त्म हो गया।*🙄
                   *पीड़ित व्यक्तियों को पुनः रोज़गार देने ,मुआवज़ा देने ,एवं दायरे में रहकर खनन करने का आश्वासन दे दिया गया। दायरे में रहकर खनन! हा! हा ! हा !*
                        *उन्होंने कह दिया इन्होंने मान लिया ! दायरे में खनन होगा! मगर दायरे तो खोखले हो चुके हैं ! जितने प्रमाणित दायरे थे सब बहुत पहले से ही खोदे जा चुके हैं ! उस हिसाब से तो फैक्ट्री को बंद ही हो जाना चाहिए था। अवैध खनन के सहारे चल रहा कारोबार अब किस दायरे में रहकर कम होगा ❓️बेरोज़गारों को रोज़गार देगा❓️❓️*
                   *ब्लास्टिंग में जिनके घर क्षतिग्रस्त हुए हैं उन्हें ठीक करवा दिया जाएगा! यह भी कमाल का वादा है! यानि ब्लास्टिंग होती रहेंगी!  घरों को नुकसान होता रहेगा! बस! ठीक कराया जाता रहेगा! कमाल का वादा है !*😨
                  *कुल मिलाकर ब्लास्टिंग नहीं रुकेगी !! उसे जारी रखा जाएगा! नुक़सान की भरपाई कर दी जाएगी! दो चार लोग मर भी गए तो कम्पनी मुआवज़ा दे देगी !*
                        *मुआवज़ा भरपाई पर यह समझौता भी मौखिक रूप से हो गया!जब कि असलियत ये है कि ब्लास्टिंग से जैसे ही घरों में दरार आती हैं ,लोग ख़ुद ब्याज पर पैसा लेकर पहले घर को गिरने से बचाते हैं।मुआवज़े का इंतज़ार नहीं करते!*
                      *मौखिक समझौते की भाषा देखिए! प्रदूषण एवं डस्ट प्रभावित इलाकों में श्री सीमेंट प्रबंधन पानी का छिड़काव करवाएगा ! जैसे मच्छरों को मारने के लिए रासायनिक छिड़काव किया जाता है! यहाँ तो सिर्फ़ पानी का ही छिड़काव होगा! तो चलिए पानी की बौछार से यह पर्यावरण समस्या भी हल हो गई । दमा , टी बी  और अन्य चर्म रोगों का भी इलाज़ हो गया ।*
                         *फिर कहा गया कि पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन के लिए ठोस नीति बनाई जाएगी!  उन्होंने कह दिया। इन्होंने मान लिया । नीति इतनी ठोस होगी कि एक कदम आगे नहीं बढ़ेगी ।*
                      *यदि श्री सीमेंट को पर्यावरण की चिंता ही होती तो पिछले 30 सालों में यह चिंता फलीभूत हो चुकी होती! कब यह जंगल फिर से हरे भरे होंगे ,जिन्हें बारूद से उड़ा दिया गया है❓️ यह सवाल भी यक्ष प्रश्न की तरह अनुत्तरित है।*
                 *कुल मिलाकर खोखले वादों के झांसे में आ गए बेचारे आंदोलनकारी !! बेचारी जनता!
                          *मैं यह तो नहीं कहूंगा कि आंदोलनकारी नेताओं को प्रलोभन के माध्यम से शांत किया गया मगर यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस पूरे आंदोलन को कुछ ज़र खरीद राजनेताओं!  कुछ प्रशासनिक लोगों और शातिर कारोबारियों की चाल के तहत ख़त्म कर दिया गया!
                 *क्षेत्रीय विधायक राकेश पारीक ने एक शब्द इस आंदोलन के समर्थन में नहीं कहा ! वे श्री सीमेंट का जैसे ख़ुद हिस्सा बन गए !  उन्होंने अपने क्षेत्र के इतने बड़े आंदोलन को ख़ामोश रहकर दबने दिया !  क्योंकि उनकी ताक़त जन आंदोलन के साथ नहीं, बल्कि श्री सीमेंट प्रबंधन के साथ रही! क्यों साथ रही यह वही जानें,  मगर इस मामले में भी आर्थिक प्रबंधन सफल रहा ।*
                   *अब सुरेंद्र सिंह राठौड़ और उनकी पत्नी वीनू कंवर ने बेरोज़गारों की दो लिस्ट श्री सीमेंट को सौंपी हैं। विकास कार्यों की भी सूचियां श्री सीमेंट को दी हैं। उन्हें लग रहा होगा कि उनकी सौंपी गई लिस्ट सीमेंट प्रबंधन द्वारा मान ली जाएंगी!  वीनू जी!  सुरेंद्र जी!  आप दोनों बहुत भोले हैं!  यदि आप की लिस्ट से ही विकास हो जाएगा!  लोगों की नौकरियां लग जाएंगी तो जनता आप का गुणगान नहीं करेगी? !! क्या विधायक राकेश पारीक तब चुपचाप आपके वर्चस्व को बढ़ते देखा करेंगे!
                *उनको अगला चुनाव फिर लड़ना है !वो आपको इस तरह का कोई अश्वमेघ यज्ञ नहीं करने देंगे!और श्रीसेमेंट प्रबंधन उनका क्या है ये आप ही नहीं पूरी विधानसभा जानती है।*
               *तो हे! नादानों! तुम ठग लिए गए हो!*

सुरेंद्र चतुर्वेदी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी की साहित्य की कई विधाओं में पचास के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | फिल्मी दुनिया से भी सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी का गहरा जुड़ाव रहा है ,जिसके चलते उन्होंने लाहौर, तेरा क्या होगा जानी, कुछ लोग, अनवर, कहीं नहीं, नूरजहां और अन्य तमाम फिल्मों में गीत लिखे, पटकथा लिखीं. पंजाबी, हिंदी, उर्दू आदि कई भाषाओं पर अधिकार रखने वाले सुरेन्द्र चतुर्वेदी अपने ऊपर सूफी प्रभावों के कारण धीरे-धीरे सूफी सुरेन्द्र चतुर्वेदी के रूप में पहचाने जाने लगे. यों तो उन्होंने अनेक विधाएं आजमाईं पर ग़ज़ल में उनकी शख्सि‍यत परवान चढ़ी. आज वे किसी भी मुशायरे की कामयाबी की वजह माने जाते हैं.उनकी शायरी को नीरज, गुलज़ार, मुनव्वर राणा जैसे शायरों ने मुक्तकंठ से सराहा है. गुल़जार साहब ने तो जैसे उन्हें अपने हृदय में पनाह दी है. वे राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा विशिष्ट साहित्यकार सम्मान एवं अन्य कई सम्मानों से नवाजे गए हैं | कानपुर विश्वविद्यालय से मानद डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित चतुर्वेदी इन दिनों अजमेर में रह रहे हैं |

चौथी कक्षा में जिंदगी की पहली कविता लिखी | कॉलेज़ तक आते-आते लेख और कविताएं तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगीं. जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता, दिनमान, सारिका, इंडिया टुडे आदि |

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